पति की दीर्घायु कामना का व्रत

भारतीय समाज में एक स्त्री के लिए उसके पति से बढ़कर कोई नहीं होता। इसीलिए सुहाग की सलामती का पर्व करवा चैथ मनाया जाता है। पंचांग के मुताबिक, करवा चैथ का व्रत 10 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 09 अक्टूबर की रात 10.54 बजे से शुरू होगी इसलिए करवा चैथ का व्रत 10 अक्टूबर को रखा जाएगा।
करवा चैथ का पर्व भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मुख्य रूप से मनाया जाता है। करवा चैथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। करवा चैथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है, परंतु इनमें करवा चैथ का सर्वाधिक महत्त्व है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। सुहागिन महिलाओं को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा की पूजा करके अपने व्रत का पारण करना चाहिए।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव और द्रोपदी ने पांडवों के लिए इस व्रत को रखा था। इस व्रत के प्रभाव से सुहागिन महिलाओं को अखंड सुहाग प्राप्त होता है। करवा चैथ के दिन सबसे पहले सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रहना चाहिए। इस दिन शाम को पूजा के समय 16 श्रृंगार करके महिलाओं को करवा की पूजा करनी चाहिए।
करवा चैथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसके बाद पति द्वारा पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तोड़ा जाता है। शास्त्रों के अनुसार करवा चैथ के दिन सुहागिन महिलाओं को सफेद रंग के वस्त्र धारण नहीं करना है, सफेद रंग सौम्यता व शांति का प्रतीक होता है, लेकिन करवा चैथ व्रत में इस रंग के वस्त्र धारण करने से आपको बचना होगा। इसके साथ ही करवा चैथ व्रत में काले रंग के वस्त्र भी धारण नहीं करना है। सुहागिनों को मान्यता के अनुसार सिर्फ मंगलसूत्र के काले दाने के अलावा किसीका प्रयोग नहीं करना चाहिए। पंचांग की गणना के अनुसार लखनऊ में 10 अक्टूबर को रात 8 बजकर 13 मिनट पर चन्द्रोदय होगा। अलग-अलग स्थानों पर समय बदलेगा।
असल में यह करवा नाम की एक दूसरी स्त्री की कहानी है, जिसने सावित्री की ही तरह अपने पति के प्राण यमराज से बचा लिये थे। तब यमराज ने करवा को उसकी पति के प्रति श्रद्धा देखकर वरदान दिया था कि इस विशेष दिन को तुम्हारे नाम के व्रत से जाना जाएगा और जो स्त्री ऐसा व्रत करेगी उसका अखंड सुहाग बना रहेगा। करवा चैथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खींचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे में ऐसा बंधा कि टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे। करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया।
इसलिए करवा चैथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना। करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रखा था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।
एक अन्य कहानी इस प्रकार है-एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चैथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अघ्र्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अघ्र्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चैथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।
साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। सुहागन महिलाएं इसीलिए निर्जला रहकर करवा चैथ का व्रत करती हैं।(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)