लेखक की कलम

चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति की खोज

विज्ञान का क्षेत्र असीमित है। चिकित्सा के क्षेत्र मंे भी नित नई-नई खोजें हो रही हैं। इस बार 2025 के चिकित्सा क्षेत्र मंे नोवेल पुरस्कार विजेताओं की घोषणा हुई है। इनकी खोज चिकित्सा क्षेत्र मंे क्रांति ला सकती हैं। टाइप-वन डाइबिटीज जैसी बीमारी के इलाज की भी उम्मीद जगी है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी की मैरी ई. ब्रनको और फ्रेड रैमनडेल के साथ जापान के शिमोन साकागुची ने खोज की है कि हमारा शरीर खुद कई बीमारियों से लड़ने मंे सक्षम है। इसके साथ ही उन बीमारियों के इलाज की राह दिखाई है जिनसे दुनिया भर के करोड़ों लोग पीड़ित हैं। पेरिफेरल इम्यून टालरेंस पर किये गये उनके अध्ययन से टाइप-1 डायबिटीज, ल्यूपस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, रुमैटाइड और आर्थराइटिस जैसी आॅटोइम्यून बीमारियों के उपचार मंे बड़ा बदलाव आ सकता है। यह खोज चिकित्सा विज्ञान मंे उसी तरह की क्रांति ला सकती है जैसी 20 साल पहले कैंसर के इम्यूनोथेरेपी उपचार से आयी थी। इससे भविष्य में डायबिटीज और ल्यूपस जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए भी सटीक और दीर्घकालिक इलाज विकसित किया जा सकेगा। इन वैज्ञानिकों का शोध बताता है कि अगर हम प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को संतुलित रखें तो शरीर खुद ही बीमारियों से लड़ेगा।
वैज्ञानिकों के संयुक्त शोध के अनुसार पेरिफेरल इम्यून टालरेंस वह जैविक प्रक्रिया है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अपनी कोशिकाओं पर हमला करने से रोकती है। सामान्य स्थिति में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हमें वायरस और वैक्टीरिया से बचाती है लेकिन कभी-कभी वह शरीर के ऊतकों को भी बाहरी (शत्रु) मान लेती है। यह स्थिति आॅटो इम्यून रोगों जैसे टाइप-1 डायबिटीज, ल्यूपस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस का कारण बनती है। अब इनका इलाज संभव हो सकेगा।
गत 6 अक्टूबर को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार की घोषणा की। साल 2025 के लिए यह पुरस्कार अमेरिका के मैरी ई. ब्रनको, फ्रेड रैमनस्डेल और जापान के शिमोन साकागुची को मिला। नोबेल ज्यूरी ने कहा, उन्हें यह सम्मान प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित रखने से जुड़ी रिसर्च के लिए दिया गया। यह खोज चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। बता दें इन तीनों को ये पुरस्कार परिधीय प्रतिरक्षा सहिष्णुता यानी पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस से संबंधित खोजों के लिए मिला है। नोबेल ज्यूरी की परंपरा के अनुसार हर साल चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल से ही पुरस्कारों की शुरुआत होती है। इसके बाद विज्ञन,साहित्य, अर्थशास्त्र और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार की घोषणा होती है। शेष पुरस्कारों की घोषणा आने वाले दिनों में की जाएगी।
चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल विजेताओं का चयन स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट मेडिकल यूनिवर्सिटी की असेंबली द्वारा किया जाता है। इस पुरस्कार को पाने वाले विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन यानी (1.2 मिलियन डॉलर) की धनराशि के साथ स्वीडन के राजा द्वारा एक मेडल भी दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा कि, उनकी खोजों ने रिसर्च के एक नए क्षेत्र की नींव रखी दी है। इससे कैंसर और एंटी इम्यून रोगों के उपचार में मदद मिलेगी।
चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जिसे आम तौर पर ‘फिजियोलॉजी या मेडिसिन’ के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार कहा जाता है। यह सम्मान आज से करीब 125 साल पहले से दिया जा रहा है। 1901 से 2024 के बीच 229 वैज्ञानिकों को उनके रिसर्च के उत्तम काम के लिए ये पुरस्कार दिया जा चूका है। पिछले साल की बात करें तो ये पुरस्कार अमेरिकी नागरिक विक्टर एम्ब्रोस के साथ गैरी रुवकुन को दिया गया था। उन्हें ये पुरस्कार सूक्ष्म राइबोन्यूक्लिक एसिड पर की गई एक खोज के लिए दिया गया था।
चिकित्सा के क्षेत्र में अनोखी रिसर्च करने वाले 3 वैज्ञानिकों को मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार दिया गया है। यूएस की मैरी ब्रन्को, फ्रेड रैमेन्सडेल और जापान के शिमोन सकागुची को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया गया है। इन तीनों वैज्ञानिकों ने इंसानी इम्यून सिस्टम की कार्यप्रणाली को बेहतर तरीके से समझने में क्रांतिकारी खोज की है। यह खोज पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस से संबंधित है। यह रिसर्च बताती है कि हमारा इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर की हेल्दी सेल्स पर हमला क्यों नहीं करता है। इन वैज्ञानिकों की रिसर्च से न केवल ऑटोइम्यून डिजीज के इलाज के नए रास्ते खुलेंगे, बल्कि कैंसर और ऑर्गन ट्रांसप्लांट में भी मदद मिलेगी।
रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक जापान के वैज्ञानिक शिमोन सकागुची ने 1990 के दशक में रेगुलेटरी टी-सेल्स (टी-रेग्स) की पहचान की थी। ये टी-सेल्स हमारे शरीर में इम्यून सिस्टम की गतिविधियों को कंट्रोल करती हैं, ताकि स्वस्थ कोशिकाओं पर अनावश्यक हमला न हो। ये कोशिकाएं इम्यून सिस्टम के शांति रक्षक के रूप में काम करती हैं और असंतुलन को रोकती हैं। इनकी भूमिका ऑटोइम्यून बीमारियों को रोकने में अहम मानी जाती है। अमेरिका की मैरी ब्रन्को और फ्रेड रैमेन्सडेल ने यह खोज की कि टी एण्ड रेग्स के कार्य के पीछे एफओ यूपी-3 नामक जीन का योगदान होता है। अगर इस जीन में कोई खराबी होती है, तो इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर के अंगों पर हमला करने लगता है, जिससे कई गंभीर ऑटोइम्यून रोग हो सकते हैं। इस खोज ने वैज्ञानिकों को ऐसी बीमारियों की पहचान और उनके उपचार की दिशा में नई समझ दी है। इन रिसर्च का उपयोग अब कैंसर इम्यूनोथेरेपी, ट्रांसप्लांट रिजेक्शन और अन्य ऑटोइम्यून डिजीज के इलाज में हो रहा है। इस रिसर्च की मदद से मरीजों को ज्यादा सटीक इलाज मिल सकता है, जिसमें कम साइड इफेक्ट्स होंगे। यह चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
वर्तमान में दुनियाभर में करोड़ों लोग ऐसे ऑटोइम्यून रोगों से पीड़ित हैं, जिनमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली ही शरीर पर हमला करती है। इन बीमारियों में इलाज कठिन होता है और मरीज की जिंदगी मुश्किल हो जाती है। वैज्ञानिकों की यह खोज यह समझने में मदद करती है कि इम्यून सिस्टम कैसे अपनों को दुश्मन नहीं समझता है। नोबेल पुरस्कार 2025 न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि का सम्मान है, बल्कि यह आने वाले समय में लाखों लोगों के लिए एक नई उम्मीद भी है। यह खोज एक उदाहरण है कि बुनियादी शोध कैसे जटिल बीमारियों के ट्रीटमेंट के नए रास्ते खोल सकता है। इन वैज्ञानिकों की मेहनत ने इम्यून सिस्टम की जटिलता को सरल किया है
और चिकित्सा जगत को एक नई दिशा दी है। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो ऑटोइम्यून डिजीज को लेकर वैज्ञानिकों की रिसर्च काफी महत्वपूर्ण हैं और भविष्य में इन रिसर्च के
आधार पर नए ट्रीटमेंट डेवलप किए जा सकेंगे। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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