रण व नीति दोनों में फेल प्रशांत

चुनावी रणनीति के महापंडित रहे प्रशांत किशोर ने जब राजनीति में सक्रियता दिखाई तो रण व नीति दोनों में वह असफल साबित हुए। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जब भाजपा ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया था और यह माना जा रहा था कि भाजपा यहां सरकार भले न बना पाए लेकिन ममता बनर्जी को करारी टक्कर देगी। राज्य की 294 विधानसभा सीटों मंे भाजपा को सवा सौ के आसपास सीटें मिलने की उम्मीद थी लेकिन प्रशांत किशोर ने तब दावा किया था कि भाजपा दो अंकों से ज्यादा नहीं बढ़ पाएगी। उस समय प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार हुआ करते थे। चुनाव के बाद 3 मई को जब नतीजे घोषित हुए तब भाजपा के नेता ही नहीं राजनीति के पंडित भी आश्चर्य मंे पड़ गये। भाजपा को सिर्फ 77 विधायक मिल पाये थे। ममता बनर्जी को 213 विधायक मिले थे और प्रचंड बहुमत से उन्होंने सरकार बनायी। वहीं, प्रशांत किशोर बिहार में पूरी तरह फेल हो गये। उनकी पार्टी को एक भी विधायक नहीं मिल पाया है। कुछ जगहों पर वह विपक्षी महागठबंधन की पराजय का कारण जरूर बने हैं। उन्होंने कहा था कि नीतीश की पार्टी 25 से ज्यादा विधायक नहीं पाएगी लेकिन उसे 85 विधायक मिले हैं।
राजनीति का अध्याय बदलने वाले लोकसभा चुनाव 2014 से लेकर देश के विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कई दिग्गज नेताओं के लिए प्रशांत किशोर जिताऊ चुनावी रणनीतिकार रहे। वह जिस भी नेता के साथ गए, उसे जिताने का उनका स्ट्राइक रेट 100 फीसदी रहा। साल 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने से लेकर 2020 के बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव की आरजेडी को मजबूत बनाने और 2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को बंगाल में सत्ता दिलाने तक पीके की चुनावी रणनीतियां हमेशा चर्चा का केंद्र रहीं। लिहाजा चंद समय में प्रशांत किशोर पीके के नाम से मशहूर हो गए। उनकी गणना देश के मुख्य चुनावी रणनीतिकारों में होने लगी, लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में जब वह खुद अपने सियासी दल के साथ मैदान में उतरे तो उनकी जन सुराज पार्टी (जसुपा) एक भी सीट नहीं जीत सकी। इतना ही नहीं, अधिकांश सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। यानी दूसरों को चुनाव जिताने वाले प्रशांत ने जब बिहार की सियासत में जोर आजमाइश की तो वह इसमें असफल साबित हुए।
पीके और उनकी पार्टी की यह करारी हार न सिर्फ उनकी भविष्यवाणियों को झुठला रही है, बल्कि उन्हें राजनीति में अपरिपक्व साबित कर रही है। आईआईटी कानपुर से ग्रेजुएट और संयुक्त राष्ट्र में काम करने वाले प्रशांत किशोर ने 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन से राजनीतिक रणनीति की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने 2012 में गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए काम किया, जहां उनकी चाय पे चर्चा कैंपेन ने बीजेपी को 182 सीटों पर पहुंचा दिया और 2014 लोकसभा में फिर वह मोदी के ही साथ रहे। इस बार राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कंपेनिंग कराई। किशोर की सिटिजंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) ने डेटा एनालिटिक्स और ग्राउंड लेवल कैंपेन से चमत्कार कर दिखाया।
प्रशांत ने 2014 में पीएम मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने के बाद 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश-लालू गठबंधन के लिए काम किया, जहां उन्होंने महागठबंधन को जीत दिलाई मगर 2017 में नीतीश के साथ उनका मतभेद हो गया और किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (आईपीएसी) लॉन्च की। आईपीएसी के बैनर तले किशोर ने 2019 में आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी को सत्ता दिलाई और जगन मोहन रेड्डी को सीएम बनवाया। इसके बाद 2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए घर-घर तृणमूल कैंपेन चलाकर टीएमसी को 213 सीटों पर जीत दिलाकर सत्ता दिलाई फिर उसी साल बिहार उपचुनाव में तेजस्वी यादव की आरजेडी को चारों खाने चित्त कर दिया।
प्रशांत किशोर को लगा था कि ग्रामीण स्तर पर डोर-टू-डोर कैंपेन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके वह मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ लेंगे। लिहाजा विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले उन्होंने 2022 में बिहार में जन सुराज अभियान शुरू किया, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर केंद्रित था। फिर अक्टूबर 2024 में इसे पार्टी का रूप दिया। पीके ने दावा किया कि 2025 चुनाव में सभी 243 सीटों पर लड़ेंगे। इस चुनावी घोषणा के साथ किशोर ने बड़े-बड़े दावे किए। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की जेडीयू 25 सीटों से ज्यादा नहीं जीतेगी और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन भी कमजोर पड़ेगा। जन सुराज 75 से ज्यादा सीटें जीतेगी, बिहार की राजनीति बदल देगी। इसके बाद पार्टी ने 234 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और खुद पीके बक्सर से लड़े, लेकिन 14 नवंबर को जब चुनाव के नतीजे आए तो पीके की पार्टी का कहीं खाता तक नहीं खुला और उनके अधिकांश उम्मीदवारों को 10 फीसदी से भी कम वोट मिले यानी जमानत जब्त हो गई। इससे पीके के रणनीति को बड़ा झटका लगा। बिहार विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त झेलने के बाद प्रशांत किशोर ने कहा, यह शुरुआत है, हम सीखेंगे।
बिहार विधनासभा चुनावों के परिणाम 14 नवबंर को आए। इस दौरान एनडीए ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया है। वहीं महागठबंधन को 35 सीटें मिली। प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज की बुरी तरह हार और पार्टी के प्रदर्शन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। चुनाव में करारी हार के बाद जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने चुनाव परिणामों के लेकर एनडीए पर पैसे बांटने पर आरोप लगाए हैं। उदय सिंह ने कहा कि इसमें कोई दिक्कत नहीं है। जब हमारा वोट बैंक अपनी बुद्धिमानी से एनडीए की तरफ चले गए, सीटें नहीं आई इसमें घबराने की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि इतिहास में ऐसा बहुता बार हुआ है और आगे भी होगा। हार की मुख्य वजह बताते हुए उन्होंने कहा हमारी हार के दो मुख्य कारण रहे। चुनाव के बीच जिस तरह से जो पैसों का बांट हुआ है, यह ठीक नहीं था। वहीं अपनी हार का दूसरा कारण बताते हुए उन्होंने कहा, आरजेडी के सत्ता में आने के डर से जो जनसुराज का वोट बैंक था वह एनडीए में चला गया। चुनाव में मुस्लिम वोटरों का समर्थन न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा, जिस तरह से हमें उम्मीद थी, इस बार मुसलमान भाई हमारे साथ उस तरह नहीं जुड़े। उन्होंने आगे कहा कि हम प्रयास करते रहेंगे और आज न कल जरूर होगा। उन्होंने कहा कि हमारा मुद्दा जो था, वह है और रहेगा। उस मुद्दे में कोई बदलाव नहीं होगा।
बहरहाल, एक तरफ बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन को बंपर जीत मिली है तो वहीं दूसरी तरफ प्रशांत किशोर के बड़े बोल की चर्चा होने लगी है। दरअसल, प्रशांत किशोर ने चुनाव के पहले दावा करते हुए कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) 25 से ज्यादा सीटों पर नहीं जीत पाएगी। पीके ने दावा करते हुए कहा था कि अगर नीतीश की पार्टी को 25 से ज्यादा सीटें मिली तो वह राजनीति छोड़ देंगे। ऐसे में अब यह साल उठाया जा रहा है कि क्या प्रशांत किशोर अपनी बात पर कायम रहते हुए राजनीति से संन्यास लेंगे? पीके ने अपनी पार्टी जनसुराज की संभावित सीटों के बारे में भी बताया था। उन्होंने कहा था कि या तो उनकी पार्टी 150 से ज्यादा सीटें जीतेगी या फिर 10 से भी कम। अगर यह बात सच नहीं हुई तो वो (प्रशांत किशोर) राजनीति छोड़ देंगे। उन्होंने कहा था कि लिखकर ले लीजिए किसी भी हालत में एनडीए की सरकार नहीं आने वाली है। नवंबर के बाद नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। बिहार में नया मुख्यमंत्री आएगा। प्रशांत किशोर के दावे गलत निकले हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



