नीतीश बने 10वीं बार बिहार के सीएम

नीतीश कुमार एक ऐसे नेता हैं जो सियासत को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। राजनीति में सफल वही है जो सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने में सक्षम है। इस दृष्टि से नीतीश कुमार का कोई विकल्प नहीं है। वह आज 20 नवम्बर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडी गठबंधन के तहत बिहार के 10वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन इसी कुर्सी के लिए वह भाजपा को किनारे भी कर चुके हैं। इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव आशंकाओं से भरे थे। आज भले ही जद(यू) और भाजपा के नेता उपलब्धियों का गुणगान कर रहे हैं लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महा गठबंधन और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी राजनीति के पंडितों को ऊहापोह में रखे थी। बहरहाल, एनडीए गठबंधन को 243 सदस्यीय विधानसभा में 202 विधायकों का समर्थन मिला और नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) भी 2020 की अपेक्षा दो गुनी सीटों अर्थात 85 सीटों पर विजयी हुई। इसलिए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक भी नहीं सकता था। उन्होंने अपनी सरकार में 26 मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी है जो सभी जातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सबसे ज्यादा सीटें अर्थात 89 सीटें जीतने वाली भाजपा के सम्राट चैधरी और विजय सिन्हा समेत 14 मंत्री हैं। जद (यू) से 8, लोजपा से 2 और जीतनराम मांझी के हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा व राष्ट्रीय लोक मोर्चा से एक-एक मंत्री बनाए गये हैं। नीतीश ने बहुत संतुलित मंत्रिमण्डल बनाया है।
जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने 10वीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित भव्य समारोह में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने नीतीश कुमार को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। नीतीश कुमार पहली बार साल 2000 में मुख्यमंत्री बने थे, हालांकि उस समय उनकी सरकार सिर्फ 8 दिन ही चल पाई थी। इसके बाद 2005 से 2014 तक वे लगातार मुख्यमंत्री रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन कुछ महीनों बाद फिर सत्ता में वापसी की। नीतीश ने इससे पहले आखिरी बार जनवरी 2024 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, जब उन्होंने और उनकी पार्टी ने एनडीए में वापसी की शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित एनडीए के कई बड़े नेता मौजूद रहे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू, राजस्थान के भजनलाल शर्मा और महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस भी शपथ स्थल पर मौजूद थे।
बीजेपी नेता सम्राट चैधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सम्राट चैधरी और विजय सिन्हा पिछली सरकार में भी उपमुख्यमंत्री के पद पर ही थे। वहीं, इस मौके पर लखेंद्र कुमार रौशन, श्रेयसी सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार, संजय कुमार, संजय कुमार सिंह और दीपक प्रकाश के साथ लेसी सिंह, नितिन नबीन, मदन साहनी, राम कृपाल यादव, संतोष कुमार सुमन, सुनील कुमार, मोहम्मद जमा खान, संजय सिंह टाइगर, अरुण शंकर प्रसाद, सुरेंद्र मेहता, नारायण प्रसाद और रमा निषाद ने भी मंत्री पद की शपथ ली। वहीं, विजय कुमार चैधरी, बिजेंद्र प्रसाद यादव, श्रावण कुमार,
मंगल पांडे, डॉ. दिलीप जायसवाल और अशोक चैधरी भी मंत्रियों की लिस्ट में शामिल हैं।
सम्राट चैधरी ने मंत्री के रूप में शपथ ली। पिछली सरकार में वह उपमुख्यमंत्री थे। नई सरकार में उन्हें फिर से मौका मिला है। भाजपा नेता विजय सिन्हा ने भी मंत्री के रूप में शपथ ली। पिछली सरकार में वह डिप्टी सीएम थे। नई सरकार में उन्हें दोबारा मौका मिला है। दिलीप जायसवाल, विजय चैधरी, अशोक चैधरी, बिजेन्द्र प्रसाद यादव और मंगल पांडे ने भी पटना के गांधी मैदान में शपथ ली।
उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश ने भी मंत्री पद की शपथ ली। दीपक कुशवाहा अभी विधायक नहीं है। बाद में उन्हें विधानसभा में भेजा जाएगा। उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता कुशवाहा सासाराम से चुनाव जीती हैं लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने उनकी जगह बेटे को मंत्री बनाने का फैसला किया है। मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव, मिथिला के सुपौल से विधायक हैं। वह सुपौल सीट से लगातार 9वीं बार जीते हैं। नीतीश कुमार के बेहद करीबी हैं। पिछली सरकार में ऊर्जा मंत्री थे। 2005 से नीतीश सरकार में मंत्री हैं। मंत्री लखेंद्र पासवान, वैशाली की पातेपुर सीट से चुनाव जीते हैं। वह आरजेडी की पारंपरिक सीट से जीते हैं। वह बीजेपी के युवा विधायकों में शामिल हैं। वह दलित और सवर्ण को एकजुट करने में कामयाब रहे।
नीतीश कुमार की अगुवाई वाली नई सरकार में दलित वर्ग से सबसे ज्यादा पांच मंत्री बनाए गए हैं। नए मंत्रियों में सुनील कुमार, अशोक चाधरी, लखविंदर रोशन, संजय पासवान, संतोष सुमन दलित वर्ग से आते हैं। वैश्य वर्ग से चार चेहरे, दिलीप जायसवाल, नारायण प्रसाद, प्रमोद कुमार और अरुण शंकर प्रसाद मंत्री बनाए गए हैं। श्रेयसी सिंह, संजय सिंह, संजय सिंह टाइगर और लेसी सिंह के रूप में चार राजपूत मंत्री हैं। वहीं, तीन मंत्री कुशवाहा (लव) और सीएम नीतीश की जाति कुर्मी (कुश) से एक मंत्री बनाया गया है। सम्राट चैधरी, सुरेंद्र मेहता, दीपक प्रकाश कोइरी वर्ग से आते हैं। वहीं, श्रवण कुमार कुर्मी कुर्मी जाति से आते हैं। भूमिहार (विजय चैधरी और विजय सिन्हा), निषाद समाज (मदन सहनी, रमा निषाद) और यादव (राम कृपाल यादव और बिजेंद्र यादव) से दो-दो मंत्रियों को नीतीश सरकार में जगह दी गई है। ब्राह्मण (मंगल पाण्डेय), कायस्थ (नितिन नवीन) के साथ ही मुस्लिम समाज (जमा खान) से एक-एक मंत्री बनाए गए हैं।
नीतीश कुमार बिहार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिन्होंने 10 बार सीएम पद की शपथ ली है। उनके नाम बिहार में सबसे लंबे समय पर सत्ता में रहने का रिकॉर्ड पहले से ही है। देश के अब तक इतिहास को देखें तो सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वालों की सूची में नीतीश कुमार का नाम भी शामिल है। इसके साथ ही वह पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिसने नौ बार इस पद की शपथ ली है। अब उन्होंने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ सबसे पहला नाम सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे पवन कुमार चामलिंग का आता है। वह 1994 से 2019 तक लगभग 24 वर्षों तक सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे। इन्होंने कुल पांच बार पद की शपथ ली। वह सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता हैं। इस सूची में दूसरा नाम नवीन पटनायक का आता है। वह बीजू जनता दल से 24 वर्ष 99 दिनों तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। नवीन पटनायक ने पांच बार पद की शपथ ली थी।
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु 1977 से 2000 तक लगभग 23 वर्ष बंगाल के रहे। उन्होंने ने भी पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग हैं, जिनका पहला कार्यकाल 1980 से 1999 तक और फिर दूसरा कार्यकाल 2003 से 2007 रहा। उन्होंने कुल पांच बार पद की शपथ ली थी। लेकिन इस दौरान वह लगातार पार्टी बदलते रहे।
इसके बाद मिजोरम के लाल थनहवला का नाम है, जो तीन अलग-अलग कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहे। वह कांग्रेस पार्टी से 1984 से 1986, 1989 से 1998 और 2008 से 2018 तक 22 वर्ष मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद हिमाचल प्रदेश के वीरभद्र सिंह जो 21 वर्ष मुख्यमंत्री रहे, त्रिपुरा के माणिक सरकार जो 19 वर्ष से ज्यादा मुख्यमंत्री पद पर रहे।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



