लेखक की कलम

जेल से चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि

बिहार विधायक अनंत सिंह को लेकर एक बार यह बहस फिर छिड़ गयी है कि हमारे जन प्रतिनिधि कैसे होने चाहिए। संविधान के अनुसार चुनाव में जिसको बहुमत मिलता है, वही जन प्रतिनिधि बन जाता है। इसीलिए अपराध जगत से जुड़े लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग भी उठी थी। यह तब तक संभव नहीं है जब तक केन्द्र सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बनाती। बिहार की मोकामा सीट चुनाव से पहले ही चर्चा का विषय बन गयी थी क्योंकि यहां बाहुबलियों में मुकाबला हो रहा था। सत्ता रूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जद-यू) की तरफ से बाहुबली नेता अनंत सिंह प्रत्याशी बनाए गये थे और उनके विरोध में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की तरफ से बाहुबली नेता सूर्यभान सिंह की पत्नी वीणा देवी चुनाव मैदान में थीं। यहां पर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी का प्रचार कर रहे एक पूर्व बाहुबली दुलार चंद्र यादव की चुनाव प्रचार के दौरान हत्या हो गयी थी। दुलार चंद्र के परिजनों ने अनंत सिंह पर हत्या करवाने का आरोप लगाया था और पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार भी कर लिया। इस प्रकार हत्या जैसे गंभीर आरोप का एक आरोपी जेल में रहकर चुनाव लड़ा और जीत गया। उनकी पार्टी का नेता ही मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। अनंत सिंह जेल में रहकर ही विधायक पद की शपथ लेंगे। इससे पहले भी वह इसी तरह शपथ ले चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में चर्चित रहे जम्मू-कश्मीर के इंजीनियर रशीद और खालिस्तानी समर्थक अमृत पाल सिंह ने भी जेल से आकर शपथ ली थी। सवाल है कि लोकतंत्र में क्या ऐसे जनप्रनिधियों पर गर्व किया जा सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हुए चर्चित दुलारचंद यादव हत्याकांड के आरोपी और (जद-यू) के टिकट पर मोकामा से चुनावी मैदान में उतरे अनंत सिंह, इलेक्शन की बाजी तो जीत गए लेकिन सवाल ये है कि अनंत सिंह कैद से नहीं छूटे तो है वह शपथ कैसे लेंगे। अनंत सिंह को कितने दिनों के अंदर शपथ लेनी होगी और अगर वह इससे चूक गए तो क्या उनकी विधायकी चली जाएगी। अगर जेल में बंद कोई उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है तो उसको पद एवं गोपनीयता की शपथ कैसे दिलाई जाती है। मोकामा में जब से अनंत सिंह की जीत हुई है तब से उनके समर्थक नारा लगा रहे हैं जेल के ताले टूटेंगे, अनंत भाई छूटेंगे। लेकिन सवाल है कि अनंत सिंह कब और कैसे छूटेंगे और विधायक पद ग्रहण करने से पहले शपथ कैसे लेंगे। जैसा कि उनके ऊपर हत्या का आरोप है तो क्या वह विधानसभा की कार्रवाई में हिस्सा ले पाएंगे या फिर उनके सदन की कार्रवाई में शामिल होने पर रोक रहेगी।
पहले तो ये समझ लीजिए कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 188 के मुताबिक, राज्य की विधानसभा या विधान परिषद के प्रत्येक सदस्य को अपना पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेनी होगी और उस पर अपने हस्ताक्षर करने होंगे। गौरतलब है कि जेल में बंद उम्मीदवार जमानत पर छूटकर या पैरोल लेकर शपथ ले सकते हैं। साल 2020 में भी जब अनंत सिंह चुनाव जीते थे तो उन्होंने जेल से आकर ही शपथ ली थी। उन्हें कोर्ट की तरफ से पैरोल दी गई थी। इसी तरह अनंत सिंह इस बार भी शपथ ले सकते हैं। अगर ऐसे अन्य लोगों की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2024 में चर्चित नाम रहे जम्मू-कश्मीर के इंजीनियर रशीद और खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह ने भी जेल से बाहर आकर शपथ ली थी।
हालांकि, चुनाव जीतने के बाद कब तक विधायक का शपथ लेना जरूरी है, इसको लेकर कोई सीमा निर्धारित नहीं है। अनंत सिंह अगले 6 महीने में कभी भी शपथ ले सकते हैं। चूंकि, अनंत सिंह जेल में बंद हैं तो वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। ऐसे में उन्हें अपने अनुपस्थित होने की सूचना सदन को देनी होगी क्योंकि कोई भी विधायक एकसाथ 59 दिनों के लिए गैरमौजूद नहीं रह सकता है। बाकी अगले 6 महीने में अनंत सिंह जेल से बाहर आकर कभी भी शपथ ले सकते हैं। मोकामा विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने जेल में बंद होने के बावजूद 28 हजार 206 वोटों से चुनाव जीत लिया। जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह ने 91 हजार 416 वोट हासिल किए। जबकि उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी वीणा देवी 63 हजार 210 वोटों पर सिमट गईं। चुनाव के दौरान, दुलारचंद यादव जन सुराज पार्टी के जिस प्रत्याशी को समर्थन दे रहे थे, उन पीयूष प्रियदर्शी को महज 19 हजार 365 वोट मिले थे।
दुलारचंद यादव जिसके लिए प्रचार-प्रसार कर रहे थे, कहा जा रहा था कि यादव और धानुक जिसे वोट देंगे, उस प्रियदर्शी पियूष को मात्र 15 वोट मिले। दरअसल दुलारचंद यादव की हत्या का आरोप अनंत सिंह पर लगा था, जिसके बाद शव यात्रा के दौरान अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया, जिसका मोकामा समेत आसपास की सीटों पर असर पड़ा। इसके बाद माना जा रहा था कि यादव और धानुक समाज के लोग अनंत सिंह के विपरीत मतदान करेंगे, लेकिन रिजल्ट के बाद आए आंकड़ों ने सबको चैंका दिया। तारंतर गांव के आसपास के बूथों पर टक्कर देखने को मिली। राजद प्रत्याशी वीणा देवी को 226 और 227 नंबर बूथ पर अनंत सिंह से ज्यादा वोट मिले। 226 नंबर बूथ पर अनंत सिंह को 206 वोट, वहीं वीणा देवी को 483 वोट मिले। वहीं 227 नंबर बूथ पर अनंत सिंह को 103 वोट और वीणा देवी को 635 वोट मिले।
बिहार चुनावों से पहले, केंद्रीय मंत्री ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। यह एफआईआर एक वीडियो सामने आने के बाद दर्ज की गई, जिसमें वह कह रहे थे कि चुनाव के दिन बिहार में विपक्षी नेताओं को उनके घरों से बाहर नहीं निकलने देना चाहिए।राजद ने एक्स पोस्ट में लिखा कि केंद्रीय मंत्री ललन सिंह चुनाव आयोग की छाती पर बुलडोजर चढ़ाते हुए कह रहे हैं कि गरीबों को वोटिंग के दिन घर से निकलने नहीं देना है। घर में बंद कर देना है और अगर ज्यादा हाथ-पैर जोड़ेगा तो अपने साथ ले जाकर वोट गिराने देना है। इसके साथ ही, राजद ने चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस ने एक्स पर ललन सिंह का वीडियो शेयर करते हुए लिखा, मोदी सरकार के मंत्री ललन सिंह का कहना है कि जो लोग भाजपा-जदयू के खिलाफ वोट करने वाले हैं, चुनाव के दिन उन्हें घर से निकलने मत दो। वहीं मोकामा नगर परिषद के मोदनगाछी वार्ड नंबर 4 में लोगों ने सड़क और नाले को लेकर विरोध जताया था, लेकिन वहाँ भी 176, 177 नंबर बूथ पर अनंत सिंह को 333, 192 वोट मिले और वीणा देवी को 274, 213 वोट मिले।
दुलारचंद यादव हत्याकांड में मोकामा से (जद-यू) कैंडिडेट अनंत सिंह बेऊर जेल में हैं। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने उनके प्रचार की कमान संभाली थी। उनके साथ डिप्टी सीएम सम्राट चैधरी भी थे। दोनों प्रमुख नेता ओपन जिप्सी में सवार होकर पंडारक से मोकामा तक 30 कि.मी. लंबा रोड शो कर रहे थे। ललन सिंह मोकामा में लोगों से मिल रहे हैं और बाहुबली को जिताने की अपील कर रहे थे वहीं, पूरे मोकामा में बीएसएफ लगातार फ्लैग मार्च कर रही थी। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने मोकामा में अनंत सिंह के समर्थन में रोड शो करने के बाद सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अब हर व्यक्ति अनंत सिंह बनकर चुनाव लड़े। जब अनंत बाबू बाहर थे, तब हमारी जिम्मेदारी कम थी, लेकिन अब जब वे जेल में हैं, तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। सवाल यह है कि ऐसे ही हालात रहे तो राजनीत को अपराध से मुक्त कैसे किया जा सकेगा।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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