अखिलेश का बिहारी आकलन

बिहार के विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गये। अगले साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और पाण्डुचेरी में चुनाव होंगे लेकिन उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लग रहे हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में 37 सांसद जुटाकर भाजपा को सीधे चुनौती दी थी लेकिन उसके ठीक बाद लगभग एक दर्जन विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने सपा को धूल चटा दी थी। अखिलेश यादव यूपी में कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ेंगे, यह घोषणा की है लेकिन कांग्रेस ने दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार में भी़ड़ भले ही जुटाई लेकिन मतदाता नहीं जुटा पाये। सपा प्रमुख अखिलेश यादव बहुत बारीकी से 2027 के चुनाव की तैयारी कर रहे हैं और सबसे ज्यादा जोर बिहार के आकलन पर है। बिहार में कांग्रेस ही नहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) भी जमीन पर औंधे मुंह गिरी है। वर्ष 2020 में 73 सीटें जीतने वाली राजद को सिर्फ 25 विधायक मिल पाये हैं। अखिलेश यादव ने इस पर बहुत बारीकी से विचार किया है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को निर्देश भी दिये हैं।
पहला निर्देश तो यह कि हुड़दंग से दूर रहें। समाजवादी पार्टी की छवि अब तक गुंडागर्दी से उबर नहीं पायी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर सदन में इस बात का ठेना भी देते हैं। अखिलेश यादव को बिहार में यह सच्चाई देखने को मिली। बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के समर्थन में गानों की भाषा राजनीतिक मुद्दा बन गयी थी। अखिलेश यादव कहते हैं कि बिहार में तेजस्वी यादव के चुनाव हारने की एक बड़ी वजह उनकी पार्टी के समर्थकों का हुड़दंग रहा। तेजस्वी यादव की रैली में जिस तरह आरजेडी के समर्थक सड़कों पर हुड़दंग करते हुए पहुंच रहे थे, खासकर यादव समुदाय के लोग, इसके चलते दूसरे समाज के लोगों ने दूरी बना ली। अखिलेश यादव ने अपने समर्थकों से हुड़दंग न करने की विशेष रूप से अपील की है।
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार को देखकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव पूरी तरह अलर्ट हो गए हैं। बिहार स्टाइल के बवाली गानों से लेकर रैलियों में हुड़दंग करने वाले लोगों को अखिलेश ने सियासी संदेश देना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, एसआईआर पर अपनी राजनीतिक स्टाइल भी बदली है। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत ने उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा चिंता समाजवादी पार्टी की बढ़ा दी है जो 2024 के लोकसभा चुनाव के आधार पर सत्ता में वापसी की उम्मीद देख रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव बिहार के नतीजे के बाद अलर्ट हो गए हैं और कार्यकर्ताओं और नेताओं को लेकर हिदायत देना भी शुरू कर दिया है। अखिलेश यादव ने अपनी यूपी की रणनीति में बदलाव किया, क्योंकि बिहार में बवाली गाने, आरजेडी की रैलियों में युवाओं का हुड़दंग और एसआईआर जैसे मुद्दों ने महागठबंधन के सारे सियासी समीकरण को बिगाड़ दिया था। यही वजह है कि अखिलेश सतर्क हो गए हैं और बिहार में महागठबंधन जैसी गलती यूपी में वह नहीं दोहराना चाहते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को कहा कि बिहार जैसे गाने मत बना देना। इसके साथ
़ही उन्होंने मीडिया से भी कहा कि किसी भी गाने को हमारी पार्टी से मत जोड़ देना।
उल्लेखनीय है कि बिहार में आरजेडी के समर्थन में गानों की भाषा सियासी मुद्दा बन गई थी, जिसे लेकर लोगों में काफी नाराजगी देखने को मिली थी। गाने में दबंगई और कट्टे जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। इसे लेकर पीएम मोदी ने कहा था कि जंगलराज वाले सत्ता में आने के लिए बेचैन हैं। इन्हें जनता की सेवा नहीं करनी बल्कि ये जनता को कट्टा दिखाकर लूटना चाहते हैं। पीएम मोदी ने कहा था कि आरजेडी-कांग्रेस की रैलियों और प्रचार में गाना चल रहा है, मारब सिक्सर के, 6 गोली छाती में। कट्टा, छर्रा, दुनाली ही इनका तौर-तरीका और प्लान। मोदी की बात जनता को पसंद आयी थी।
अखिलेश यादव ने कहा कि मैं अपने कलाकारों से कहूंगा कोई ऐसा बिहार वाला गाना मत बना देना और हम अपने प्रेस के साथियों से कहेंगे कि कोई गाना कैसा भी बनाए हमारा मत बता देना। एआई का जमाना है, क्योंकि आजकल सबकुछ बहुत जल्दी तैयार हो जाता है। अखिलेश जानते हैं कि इस तरह के गानों को बीजेपी सियासी मुद्दा बनाकर उनके खिलाफ सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है। यूपी चुनाव से पहले अखिलेश यादव कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। इसीलिए नुकसान से बचने के लिए अखिलेश यादव ने पहले ही तैयारी कर ली है और अपने समर्थकों को नसीहत दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि अगर उस तरह का कोई एक गाना भी आया तो उसे सपा के शासन काल और सपा के समर्थकों से जोड़ दिया जाएगा।
तेजस्वी यादव के चुनाव हारने की एक बड़ी वजह, उनकी पार्टी के समर्थकों का हुड़दंग रहा। तेजस्वी यादव की रैली में जिस तरह आरजेडी के समर्थक सड़कों पर हुड़दंग करते हुए पहुंच रहे थे, खासकर यादव समुदाय, उसके चलते दूसरे समाज के लोगों ने दूरी बना ली थी। बिहार के लोग आरजेडी की रैलियों में तेजस्वी के समर्थकों की आक्रामकता देखकर कहते थे कि भैया, अभी चुनाव है…. अभी सत्ता में नहीं आए हैं, तब यह हाल है, सत्ता में आ गए तो क्या हाल होगा? इसका वीडियो शेयर करते हुए अखिलेश यादव ने अपने समर्थकों को सियासी संदेश देने की कवायद की थी।
अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में अपने बड़बोले समर्थकों और उनकी हुड़दंगी के चलते सत्ता में आते-आते रह गए थे। यही वजह है कि अखिलेश अभी से अपने नेताओं को सतर्क करना शुरू कर दिया है ताकि 2027 के चुनाव में नुकसान न हो सके।
बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया की गई थी, जिसे लेकर आरजेडी और कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया था। इसके बावजूद महागठबंधन को सियासी लाभ नहीं मिला, जिसके चलते सपा ने यूपी में अपनी रणनीति में बदलाव किया। एसआईआर प्रक्रिया का पहले सपा ने विरोध किया, लेकिन अब अखिलेश यादव ने अपने वरिष्ठ नेताओं की पूरी फौज उतार दी है। अखिलेश यादव ने एसआईआर प्रक्रिया में खामियां गिनवाते हुए चुनाव आयोग और बीजेपी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि जानबूझकर एसआईआर के द्वारा मतदाताओं से वोटिंग का अधिकार छीना जा रहा है। सपा अब गांव-गांव में पीडीए प्रहरी नाम से एक प्रोग्राम चला रही है, जिसमें एसआईआर प्रक्रिया में लोगों को फार्म भराने और नाम जोड़े जाने, घटाए जाने पर नजर रख रहे हैं।
सपा सांसद राजीव राय ने कहा कि एसआईआर के जरिए पिछड़े दलितों का वोट काटने की साजिश हो
रही है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि अखिलेश यादव के निर्देश
पर हम पीडीए प्रहरी के नजरिए से
सभी सबूतों को इकट्ठा कर साजिशों
को चुनाव आयोग के सामने लाएं और जिनके नाम हट गए हैं कि उनके नाम वापस जोड़े जाएं और किसी के नाम न काटे जाएं।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



