राजनीति

बिहार विधानसभा के स्पीकर प्रेम कुमार

बिहार में डा. प्रेम कुमार को विधानसभा का स्पीकर बनाया गया है। प्रेम कुमार भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और राजनीति में उनका व्यापक अनुभव है। इससे पहले भाजपा के नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चैधरी को गृह विभाग सौंपा गया था। आमतौर पर गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते हैं लेकिन बिहार मंे सहयोगी दल भाजपा को 89 विधायक मिले हैं और सदन मंे वह सबसे बड़ी पार्टी है। नीतीश कुमार ने भाजपा के महत्व को समझते हुए ही दोनों महत्वपूर्ण पद उसे सौंप दिये हैं। विपक्षी गठबंधन के पास 35 विधायक हैं, इसलिए डा. प्रेम कुमार को कोई समस्या नहीं होगी लेकिन गृहमंत्री के रूप मंे सम्राट चैधरी को कानून-व्यवस्था सुधारने मंे काफी मशक्कत करनी होगी। उधर, 3 दिसम्बर को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राज्यपाल अभिभाषण देंगे। उस समय प्रेम कुमार की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। इसके बाद 5 दिसम्बर को सत्र के आखिरी दिन द्वितीय अनुपूरक व्यय विवरणी पर बहस होगी। विनियोग विधेयक भी पेश होगा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रेम कुमार सर्वसम्मति से बिहार विधानसभा के 18वें स्पीकर चुने गए हैं। उन्हें विपक्षी विधायकों का भी समर्थन मिला। प्रेम कुमार ने 1 दिसम्बर को अध्यक्ष पद के लिए नामांकन किया था। वे अकेले ही इस पद के लिए दावेदार थे इसलिए उनका निर्विरोध चुना जाना तय माना जा रहा था। विजय कुमार सिन्हा और नंदकिशोर यादव के बाद प्रेम कुमार ऐसे तीसरे नेता हैं जो भाजपा कोटे से स्पीकर बने हैं। इसके पहले जदयू के दो स्पीकर उदय नारायण चैधरी और विजय कुमार चैधरी रह चुके हैं। प्रेम कुमार का जन्म 5 अगस्त 1955 को हुआ था। वह एक भारतीय राजनीतिक हैं। वे बिहार विधान सभा के गया टाउन विधानसभा क्षेत्र से आठ बार निर्वाचित हुए हैं। उन्होंने 1999 में मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की थी। अक्टूबर 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद गठित बिहार विधानसभा में कुमार विपक्ष के नेता चुने गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव खुद प्रेम कुमार को अध्यक्ष की कुर्सी तक लेकर गए और उन्हें बैठाकर बधाई दी। तेजस्वी यादव ने कहा कि दल और लालू प्रसाद यादव की ओर से भी उन्हें शुभकामनाएं हैं। तेजस्वी ने कहा कि प्रेम कुमार ज्ञान और मोक्ष की धरती से आते हैं, इसलिए उस धरती को भी नमन है। तेजस्वी ने उम्मीद जताई कि नए अध्यक्ष सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को साथ लेकर चलेंगे और अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए किसी को निराश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि पूरा विपक्ष उनके साथ खड़ा है। गया टाउन से लगातार नौ बार चुनाव जीत चुके डॉ. प्रेम कुमार बिहार की राजनीति में एक मजबूत और भरोसेमंद चेहरा माने जाते हैं। सन् 1990 से लगातार चुनाव जीतना किसी भी नेता के लिए बड़ी उपलब्धि है, और इसी वजह से वे बिहार विधानसभा के सबसे अनुभवी विधायकों में शामिल हैं। इस बार उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई है। यह जीत उनके ऊपर जनता के भरोसे और उनकी लोकप्रियता को और मजबूत करती है। 69 वर्षीय प्रेम कुमार का प्रशासनिक अनुभव भी बेहद लंबा और प्रभावशाली रहा है। वे कई अहम विभागों का नेतृत्व कर चुके हैं जैसे कृषि, पशुपालन, पर्यटन, सहकारिता, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण आदि।
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में, भाजपा के डॉ. प्रेम कुमार ने गया टाउन सीट पर बड़ी जीत दर्ज की है। उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी, कांग्रेस के अखौरी ऑनकार नाथ को 26,423 वोटों के निर्णायक अंतर से हराया। चुनाव में डॉ. प्रेम कुमार को कुल 90,878 वोट मिले। यह जीत उनकी एक और महत्वपूर्ण सफलता है, जिससे इस सीट पर सबसे लंबे समय तक प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं में उनका स्थान पक्का हो गया है।
18वीं बिहार विधानसभा का पहला सत्र सोमवार 1 दिसंबर से शुरू हो रहा है। इस शीतकालीन सत्र से बिहार विधानसभा में एक नया युग शुरू हुआ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि पहली बार पूरी कार्यवाही डिजिटल माध्यम में संचालित होगी। सरकार ने सभी विधायकों को टैबलेट उपलब्ध कराए हैं, जिनका उपयोग सवाल पूछने, कार्यसूची देखने और नोटिंग के लिए किया जाएगा। यह कदम विधानसभा को पेपरलेस बनाने और प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और परफेक्ट बनाने की दिशा में अहम माना जा रहा है। प्रेम कुमार का संबंध चंद्रवंशी जाति से है, जो महाभारत के समय के क्षत्रिय वर्ण है। बिहार में नीतीश मंत्रिमंडल के बीच विभागों के बंटवारे के साथ ही 28 नवम्बर को बड़ा बदलाव देखने को मिला। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग 20 वर्षों के बाद गृह विभाग छोड़ दिया और यह जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री सम्राट चैधरी को सौंप दी। नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से हर कार्यकाल में गृह विभाग अपने पास ही रखा था। कानून-व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था, और प्रशासनिक नियंत्रण जैसे संवेदनशील मामलों को वे सीधे तौर पर मॉनीटर करते रहे। इसे हमेशा नीतीश के “मजबूत प्रशासन” की पहचान माना जाता था। लेकिन, इस बार गृह विभाग किसी और को सौंपना यह संकेत देता है कि वे सरकार में अधिक जिम्मेदारियों को वितरित करना चाहते हैं।
सम्राट चैधरी वर्तमान में उपमुख्यमंत्री हैं और भाजपा के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक के रूप में तेजी से उभरे हैं। उनकी आक्रामक राजनीतिक शैली, संगठनात्मक पकड़ और बड़ी जातिगत समीकरणों में स्वीकार्यता ने उन्हें शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद चेहरों में शामिल किया है। वहीं बिहार चुनाव में उनकी बड़ी भूमिका देखने को मिली। इसके साथ बीजेपी के बड़े आयोजन में सम्राट ने मजबूती से काम किया। गृह मंत्रालय मिलने के बाद सम्राट अब बिहार में कानून-व्यवस्था, पुलिस प्रशासन और आंतरिक सुरक्षा के प्रमुख चेहरे बन गए हैं। यह न केवल उनकी ताकत को बढ़ाता है बल्कि विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की राजनीतिक हिस्सेदारी को भी मजबूत संदेश देता है। नीतीश कुमार और भाजपा के बीच मौजूदा साझेदारी में विभागों का बंटवारा एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है। अब निगाहें इस बात पर होंगी कि सम्राट चैधरी गृह मंत्री के रूप में कैसा प्रदर्शन करते हैं और क्या वे अपराध नियंत्रण, महिलाओं की सुरक्षा, पुलिस सुधार और नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम उठाते हैं। एक बात स्पष्ट है- गृह मंत्रालय का यह परिवर्तन बिहार की सत्ता संरचना में नया अध्याय लेकर आया है। नीतीश कुमार ने अपने सबसे महत्वपूर्ण विभाग की कमान जब सम्राट को सौंपी है, तो यह भरोसे, जिम्मेदारी और बदलते राजनीतिक समीकरणों का संकेत है। आने वाले महीनों में यह बदलाव राज्य की प्रशासनिक दिशा तय करेगा और शायद बिहार की राजनीति भी बदल दे।
3 दिसंबर को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राज्यपाल अभिभाषण देंगे। इसमें सरकार अगले पांच वर्षों की विकास प्राथमिकताओं, बजट अनुमान, कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक सुधारों का खाका पेश करेगी। खास तौर पर डिजिटल विधानसभा को लेकर उठाए गए कदमों और आगामी योजनाओं का उल्लेख होने की संभावना है। 4 दिसंबर को राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होगी। इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बहसबाजी और गर्मागर्मी की उम्मीद है। चर्चाओं के बाद सरकार सदन के सवालों के जवाब देगी। 5 दिसंबर को सत्र के आखिरी दिन द्वितीय अनुपूरक व्यय विवरणी पर बहस होगी और इसके बाद संबंधित विनियोग विधेयक पेश किया जाएगा। माना जा रहा है कि वित्तीय प्रावधानों पर चर्चा के दौरान विपक्ष सरकार को बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगा। जहां सरकार डिजिटल और विधायी एजेंडा के साथ तैयार दिख रही है, वहीं महागठबंधन ने भी अपनी रणनीति बनाने में देर नहीं की है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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