इंडिगो के संकट से सरकार पर भी सवाल

सरकार को नियम बनाने और उनको लागू करने के लिए व्यावहारिक अड़चन का भी ध्यान रखना चाहिए और नियमों को आमजन की समस्या को ध्यान रखते हुए लागू करना चाहिए। पिछले पांच दिनों से देश के तमाम एयरपोर्ट पर जो दृश्य दिखाई दे रहा है, वह भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए एक बड़े संकट का संकेत है, वहीं सरकारी स्तर पर बेहद अपरिपक्वता भरे फैसले का नतीजा है। देश की सबसे भरोसेमंद और सफल एयरलाइन मानी जाने वाली इंडिगो अचानक अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। 2000 से अधिक उड़ानें रद्द होना, कोई साधारण प्रशासनिक गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक ऐसी जटिल स्थिति है, जिसने भारत के एविएशन मॉडल की कमियों को उजागर कर दिया है। अगर देखा जाए तो ऑपरेशनल ब्रेकडाउन ने भारत की उड़ान व्यवस्था की विश्वसनीयता, नियामकीय क्षमता और यात्री हितों के प्रति प्रतिबद्धता तीनों को कठोर प्रश्नों के घेरे में ला दिया है। यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन की गलती नहीं, बल्कि उस पूरे ढांचे की कमजोरी है जो वर्षों से बढ़ती मांग, सीमित संसाधन और अपर्याप्त नियमन के बीच लड़खड़ा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंडिगो के संकट ने आम यात्रियों की जिंदगी में अकल्पनीय अराजकता ला दी। पांच दिनों में सैकड़ों उड़ानें रद्द होने से यात्रियों को जिन दिक्कतों और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। हजारों यात्री फंसे हुए हैं और एयरपोर्ट किसी रेलवे स्टेशन जैसी भीड़ से भर गए हैं। लोग फर्श पर सोने को मजबूर हैं, खाने-पीने की व्यवस्था नहीं, न होटल, न ईमानदार जानकारी, सब कुछ अव्यवस्थित, थका देने वाला और निराशाजनक सवाल उठता है कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में हमारा एयर ट्रैवल सिस्टम इतनी आसानी से कैसे डह सकता है? सवाल यह भी है कि क्या सरकार की नीतियों, रेगुलेशन और पायलट रोस्टर नियमों ने मिलकर यह संकट पैदा किया है? सवाल यह है कि आखिर वह एयरलाइन, जिसने भारत के यात्रियों को समय पर उड़ान की आदत डलवाई, वह खुद समय और संचालन दोनों को क्यों मैनेज नहीं कर पा रही ? कंपनी कभी मौसम को जिम्मेदार ठहराती, कभी एयरपोर्ट की भीड़ को, लेकिन वास्तविक चुनौती कहीं गहरे बैठी थी कि कर्मचारी प्रबंधन की कमजोरी और लंबे समय से बढ़ते परिचालन दबाव का ढेर। यह दबाव तव विस्फोटक बन गया जब सरकार के नए एफडीटीएल नियम लागू हुए।
यह स्थिति किसी प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक और प्रबंधकीय विफलता का परिणाम थी। किसी भी संकट में सबसे पहले शोषण के रास्ते खुलते हैं। इंडिगो की उड़ानें बंद होने के साथ ही अन्य एयरलाइनों ने कुछ रूटों पर टिकट कीमतें सामान्य से 10 गुना तक बढ़ा दीं। टिकटों के दामों में बढ़ोत्तरी ने यात्रियों को परेशानियों को और बढ़ा दिया है। दिल्ली-बेंगलुरु की सबसे सस्ती टिकट 40,000 रुपये से ऊपर दिखाई दी, जबकि कई फ्लाइट्स 80,000 रुपये तक पहुंच गईं। यह व्यवहार पूरी तरह गैर-नैतिक था। संकट की घड़ी में लाभ कमाने की यह प्रवृत्ति दिखाती है कि भारतीय विमानन क्षेत्र में मूल्य नियंत्रण की ठोस व्यवस्था अब तक क्यों आवश्यक है। हालांकि सरकार ने बाद में फेयर-कैप लागू कर कीमतें नियंत्रित कीं, लेकिन यह कार्रवाई शुरुआत से ही की जानी चाहिए थी। देर से जारी नियंत्रण आदेश ने कई यात्रियों को आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित किया। हालांकि बाद में इस मामले में नागरिक उड्डूयन मंत्रालय ने दो बड़े आदेश जारी किए है। किराया सीमा लागू की गयी है। इसके अलावा प्रभावित यात्रियों से किसी भी प्रकार का री-शेड्यूलिंग शुल्क न लेने का आदेश दिया गया। ये निर्देश बेहद जरूरी थे, पर सवाल यह है कि ऐसी आपात स्थिति में सरकार ने तुरंत हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? संकट कई दिनों से बढ़ रहा था, लेकिन मंत्रालय और डीजीसीए की चुप्पी ने हालात को भयावह बनने दिया। किसी भी राष्ट्र में जब यात्रियों का इतना बड़ा संकट उत्पन हो, तो सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह अस्थायी उड़ानें, वैकल्पिक व्यवस्था और मूल्य नियंत्रण तुरंत सुनिश्चित करे। साथ ही समझना होगा कि किसी एक कंपनी पर इतनी अधिक निर्भरता स्वयं में एक व्यवस्थागत खतरा है। वास्तव में भारत का विमानन बाजार पिछले एक दशक में धीरे-धीरे दो बड़ी कंपनियों के बीच सिमटता चला गया है। इंडिगो और एयर इंडिया जब किसी एक कंपनी का बाजार पर इतना बड़ा नियंत्रण हो, तो किसी भी तकनीकी गड़बड़ी, स्टाफ संकट या प्रबंधन विफलता का असर पूरे देश की उड़ान व्यवस्था पर पड़ता है। यह स्थिति उस सिंगल पॉइंट ऑफ फेल्योर को दर्शाती है, जिससे खतरा लंबे समय से विशेषज्ञों द्वारा बताया जा रहा है। एविएशन सेफ्टी फर्म मार्टिन कंसल्टिंग के सीईओ मार्क डी मार्टिन के शब्द बेहद मार्मिक हैं कि जिस तरह एडीजीसी ने अपने ही नियमों पर कदम पीछे खींचे, उससे दुनिया को यह संदेश गया है कि भारत की एविएशन रेगुलेशन प्रणाली कमजोर है। जब एक नियामक संस्था किसी एयरलाइन कंपनी के सामने निष्क्रिय दिखती है, तो यह संकेत देता है कि नियमन सिर्फ कागजों में रह गया है। एक मजबूत विमानन देश की पहचान केवल आधुनिक विमानों से नहीं, बल्कि सशक्त और निष्पक्ष नियामक तंत्र से होती है।
2006 में दिल्ली-मुंबई की उड़ान से शुरू हुई इंडिगो की सफलता की कहानी आज भारत के सबसे बड़े विमानन संकटों में से एक के रूप में दर्ज हो रही है। संकट के दौरान मूल्य शोषण रोकने के लिए ऑटोमेटिक फेयर कंट्रोल सिस्टम लागू होना चाहिए। इंडिगो संकट ने भारतीय विमानन क्षेत्र की गहराई तक बैठे संरचनात्मक दोषों को उजागर कर दिया है। यह समय है कि सरकार, एयरलाइंस और नियामक संस्थाएं मिलकर एक ऐसे उड्डयन ढांचे का निर्माण करें जिसमें पारदर्शिता हो, जवाबदेही हो, यात्री अधिकार सुरक्षित हों और कोई भी कंपनी इतनी बड़ी न हो जाए कि उसकी गलती से देश का पूरा आकाश ठहर जाए। भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती विमानन अर्थव्यवस्थाओं में से एक है लेकिन विकास केवल तब सार्थक होगा जब वह यात्री कल्याण, मजबूत नियमन और सुव्यवस्थित प्रबंधन के साथ आगे बढ़े। यह संकट एक चेतावनी है कि यदि इससे सही सीख ली जाए, तो भारतीय विमानन का भविष्य और अधिक सुरक्षित, संवेदनशील और विश्वसनीय बन सकता है। इंडिगो का यह संकट केवल एक एयरलाइन की कहानी नहीं है। यह भारत के विमानन बुनियादी ढांचे, नीतियों, और प्रबंधन की गहरी खामियों का आईना है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बन रहा है लेकिन अगर नींव कमजोर होगी, तो इस विकास की गति किसी भी दिन रुक सकती है, ठीक वैसे ही जैसे आज इंडिगो के रनवे पर रुक गई है। यात्रियों का भरोसा ही किसी एयरलाइन की सबसे बड़ी पूंजी है। इंडिगो को यह समझना होगा कि लाखों लोग उससे सिर्फ टिकट नहीं खरीदते, बल्कि वे अपना समय, अपनी योजनाएं और अपनी उम्मीदें भी उस पर भरोसे से छोड़ते हैं। यह संकट एक चेतावनी है कि उसे सुनना इंडिगो के लिए जितना जरूरी है उतना ही ध्यान रखना होगा कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।
इंडिगो भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन है। स्टैटिस्टा के मुताबिक, साल 2025 के सितंबर महीने तक का डेटा बताता है कि घरेलू उड़ानों में इंडिगो का हिस्सा 63 फीसदी है। दूसरे नंबर पर 13.6 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ एयर इंडिया, इंडिगो से बहुत दूर है, अक्टूबर 2025 तक भारत की घरेलू उड़ानों में लगभग 90 मिलियन यात्रियों ने इंडिगो से सफर किया। इस संख्या के साथ बाजार में इंडिगो की हिस्सेदारी 64.5 प्रतिशत है।
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)



