
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पुरूषार्थ और अन्य कामनाओं की सिद्धि के लिये शक्ति की उपासना का विधान है। ग्रंथों में भी कहा गया है कि शक्ति बिना शिव अपूर्ण है। वैदिक युग में भी सविता के रूप में देवी उपासना का प्रमाण मिलता है। मोहन जोदड़ों की खुदाई में जो ईसा से कई सौ वर्ष पूर्व के नगर मिले उसमें शिव शक्ति नंदी आदि की मूर्तियों से यह सिद्ध होता है कि उस समय भी भारत में शक्ति की उपासना की जाती थी। ऋग्वेद में शक्ति का वर्णन मिलता है वेद में जो उल्लेख है कि एक अजा से अनेक प्रजा की उत्पत्ति हुई। वह अजा ही आदि शक्ति है। विश्व का संपूर्ण अस्तित्व चेतना, ज्ञान, प्रकाश, आनंद क्रिया सामथ्र्य आदि इसी शक्ति के कार्य हैं।
इसका वैज्ञानिक आधार भी है क्योंकि इस समय ऋतु परिवर्तन का दौर होता है यदि इस समय निराहार रहा जाये तो अगली ऋतु के लिये शरीर पूरी तरह तैयार हो जाता है और बीमारी की आशंका न के बराबर रहती है। शरीर में सत्व रज और तम गुण हैं। शक्ति की उपासना से विद्या ज्ञान की शक्ति अर्जित करके ताप को दूर करना है तथा रजो गुणों और तमो गुणों को दबाकर सत्व गुणों का विकास करना है। देवी उपासना में कर्म और वचन से ब्रह्मचर्य का पालन करना है तथा पूजा-पाठ जप, होम, ध्यान आदि से दुर्गा की आराधना नौ दिनों तक करने का महात्म्य है। दुर्गा की उपासना यही है कि पहले दिव्य गुणों को प्राप्त करें और उनसे विभूषित होकर पूजा-पाठ स्तवन जप ध्यान होम आदि कर्म करें जिनका हृदय कलुषित मन, अपवित्र चित्त देष पूर्ण भाव इंद्रियां भोग परायण तथा जीभ असत्य से जल रहे हैं उनके पूजा-पाठ जाप आदि कर्म व्यर्थ ही होते हैं। कहीं-कहीं तो उल्टी हानि ही होती है क्योंकि भयानक दुर्गुणों को देखकर इष्ट देवता भी क्रोधित हो जाते हैं। देवी के क्रुद्ध होने से सारी इच्छित कामनाओं का नाश भी होता है परन्तु जो सदगुणों से विभूषित हो अहंकार और मोह त्याग करके परम असहाय और आर्तभाव से श्री आदि शक्ति के चरणों में अपने को समर्पित कर देते हैं उनके सब कष्टों, अभावों को मिटा कर माता उद्धार भी करती हैं। इसलिए नवरात्र में मां भगवती की उपासना समर्पण की भावना से करें। छलकपट, झूठ, फरेब, क्रोध स्वार्थ को नौ दिनों तक अपने से दूर रखें। व्यसन भी त्यागें जिसका चमत्कारिक प्रभाव भी दिख सकता हैं।
देवी के विषय में कथा है सुरथ नाम का एक राजा था जो सुख से रहता था। कुछ वर्षों बाद शत्रुओं ने आक्रामण किया और उस कारण राज छीन लिया। राजा तपस्वी के रूप में वन में रहने लगे उसी वन में एक व्यक्ति स्त्री एवं संतान के दुव्र्यवहार के कारण रहता था जहां राजा सुरथ की उनसे भंेट हुई। दोनों महर्षि मेधा के आश्रम में पहंुचे और मोह का कारण पूछा। तब महर्षि मेधा ने कहा कि मन शक्ति के अधीन होता है और आदि शक्ति के विद्या व अविद्या दो रूप हैं। विद्या मोक्ष प्रदान करती है। राजा सुरथ ने कहा कि यह देवी कौन है तब महर्षि ने बताया कि आप जिस देवी के रूप को पूछ रहे हैं वह नित्य स्वरूपा विश्व व्यापिनी है। फिर उन्होंने बताया कि कल्पान्त के समय विष्णु भगवान क्षीर सागर में शैय्या पर शयन कर रहे थे तभी उनके दो कानों से मधु, कैटभ दो दैत्य उत्पन्न हो गये। यह दोनों ब्रह्मा जी को मारने के लिए दौड़े। ब्रह्मा जी ने विष्णु की शरण ली। सो रहे विष्णु को जगाने के लिए योग निद्रा की पूजा की गयी। योग निद्रा प्रकट हुई जिसके बाद विष्णु उठकर बैठ गये। भगवान विष्णु और उन राक्षसों में पांच हजार सालों तक युद्ध चलता रहा। अंत में मधु कैटभ दोनों राक्षस मारे गये।
ऋषि ने आगे कथा में बताया कि एक समय राक्षसों और देवताओं में युद्ध हुआ। देवेन्द्र की पराजय हो गयी देवता ब्रह्मा जी के साथ विष्णु शंकर के पास गये। देवताओं की बात सुनकर दोनों देवों को गुस्सा आया और तीनों देवों से एक पंुज निकला जो देवी के रूप में बदल गया। महिषासुर देवी के हाथों मारा गया। देवी के नौ रूपों में प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठी-कात्यानी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टमी-महागौरी एवं नवम-सिद्धदात्री आदि हैं। प्रत्येक दिन देवी के इन रूपों की आराधना की जानी चाहिए। देवी दुर्गा की उपासना समर्पण और श्रद्धा से की जाये तो देवी प्रसन्न होती हैं और रूकावटें खत्म होती नजर आयेंगी तथा सिद्धि व सफलता आपके कदम चूम सकती हैं और आपकी आराधना सफल हो सकती है। (हिफी)