हनुमान जी बल-बुद्धिदेकर विकारों का करते हैं हरण (1)
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चारि।। 1।।

(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
गोस्वामी तुलसीदास ने गुरू को सबसे प्रमुख स्थान देते हुए प्रभु श्रीराम के चरित का वर्णन करने से पहले गुरू की ही वंदना की है। इसके पश्चात् हनुमान जी की प्रार्थना की है क्योंकि बल-बुद्धि के दाता तो हनुमान जी हैं।
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चारि।। 1।।
भावार्थ- ‘‘श्री’’ का अर्थ है-शोभा युक्त। जो अपने इष्ट को प्रसन्न और प्राप्त करने के लिए शास्त्रोक्त, वेदोक्त, तन्त्रोक्त, अनुभवस्थित महापुरुष की आज्ञानुसार नियमबद्ध होकर श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक, स्वयं प्राप्त कर साधक को भी उस आनन्द का अनुभव
करा सके, ऐसी शोभा से युक्त विशेषण के लिए ‘‘श्री’’ का अर्थ प्रयुक्त होता है।
‘‘गुरुचरन सरोज….’’ ऐसी शोभा से युक्त सत् गुरु के चरण कमल में दृढ़तापूर्वक, सच्चे हृदय से अभिन्न, भाव से, सेवा कर, प्रसन्नतापूर्वक, उनके चरण कमल की रज को सिद्धांजन की तरह मन में स्थान दिया है। इस पावन रज में मनरूपी शीशे को निर्मल कर (अर्थात गुरु उपदिष्ट भाव रूपी प्रकाश को मनरूपी शीशे में ग्रहण कर) सम्पूर्ण नस-नस में भावरूपी प्रकाश फैल जाय, तन्मयता छा जाय।
‘‘वरनऊं रघुवर विमल जस्…’’ श्रीरामजी के वास्तविक स्वरूप को, जो विमल है, दोष रहित है, इस अनुभवस्थित ईश्वर तत्व का मैं वर्णन करता हूँ, जो अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पदार्थों को प्राप्त कर सकता है।
बुद्धिहीन तनु, जानिके, सुमिरौ पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार।।
भावार्थ- ‘‘बुद्धिहीन तनु जानि के’’ ईश्वर-तत्व का वर्णन करने के लिए निश्चयात्मिका बुद्धि की आवश्यकता है। गीता के अनुसार ‘बुद्धियोग’ के प्रदाता स्वयं भगवान् हैं-
‘‘ददामि बुद्धियोग तं येन मामुपयान्ति ते’’
बिना ईश्वर की प्रसन्नता के ‘बुद्धि’ नहीं मिल सकती। इसलिए भक्त भी ईश्वर कृपा के पात्र बनने के लिए उत्सुक रहते हैं।
‘‘मुख्यवस्तु महत् कृपवैव भगवत् कृपा लेशाद वा’’
अर्थात् परम भक्त की महान कृपा से ही ईश्वर स्वयं कृपा करते हैं। इसलिए श्री हनुमान जी के स्मरण की आवश्यकता है। तुलसीदास जी कहते हैं-‘‘ईश्वर का वास्तविक स्वरूप और चरित्र जानने के लिए मेरी बुद्धि काम नहीं करती है, क्योंकि प्रत्येक शब्द यथार्थता से पूर्ण होना चाहिए। जिस शब्द का अनुभव नहीं है, वह न लिखा जाय और न सोचा जाय, न समझा जाय और न ही समझाया जाय। ऐसी ‘बुद्धि’ से मैं हीन हूं। इसलिए ज्ञान, भक्ति, विद्या और बल की प्राप्ति के लिए ‘पवन पुत्र हनुमान जी का मैं स्मरण करता हूं, क्योंकि ‘ईश्वर-तत्व’ को वास्तविक रूप में श्री हनुमान जी ही जानते हैं। ईश्वर तो न्याय की ओर देखेंगे, परन्तु भक्त सदा दीनता को ही देखेगा।’’
‘‘सुमिरौं पवन कुमार’’ ज्ञानभिच्छेच्छंकरात्ं
ज्ञान के प्रदाता शिवजी हैं। वह निर्गुण, सगुण, साकार, निराकार, निष्प्रपंच, प्रपंच आदि ईश्वर के गुणों तथा ईश्वरीय माया को अच्छी तरह से समझते हैं तथा समझा सकते हैं। इस संसार पर कृपा करने के लिए स्वयं शिवजी ने ‘पवन पुत्र’ का रूप धारण किया। शास्त्रों में हनुमान जी को ‘‘रुद्रावतार’’ कहा गया है। ‘रु’ का अर्थ है-संसार में जो भयंकर कष्ट हैं, जिनसे प्राणी पीड़ित हैं। ‘द्र’ का अर्थ है विनाश यानि कष्टों का विनाश करने वाला। अनादि काल से माया से पीड़ित जीव सुख की चाहना में दुःख ही भोगता चला आ रहा है। उस दुःख का विनाश करने के लिए स्वयं ‘शिव’ ‘पवन कुमार’ होकर संसार में प्रसिद्ध हुए हैं। उनके बिना मुझे यथार्थ ज्ञान कौन देगा? ऐसा मन में दृढ़ निश्चय करके तुलसीदास जी कहते हैं-‘सुमिरौं पवन कुमार’।
चाहना क्या है? पागल भी बिना स्वार्थ के किसी के नजदीक नहीं जाता। इस शंका का समाधान करते हुए तुलसीदासजी अपने भाव प्रकट करते हैं-
‘‘बल, बुद्धि विद्या देहु मोहि’’।
‘‘बल’’-तपबल, जपबल, ज्ञानबल, इन्द्रियबल, संयमबल आदि अनेक गुणों के समूह को ‘बल’ कहा गया है। एक दामबल भी है। तुलसीदास जी ने कहा है-
औरों के घर दाम बढ़े, तुलसी घर राम नाम का खजाना।
‘‘बुद्धि-जो वस्तु जैसी है और जिस प्रकार की है वह मिले, मिलने के बाद अहंकार न आए, ईश्वर की प्राप्ति कर सके और करा सके उसको ‘बुद्धि’ कहते हैं। -क्रमशः
(साभार-स्वामी जी श्री प्रेम भिक्षु महाराज)



