विविध

अजर-अमर गुण निधि हनुमान

 

अशोक वाटिका मंे आतताई रावण की धमकियों से चिंतित माता सीता अपने जीवन का त्याग करना चाहती थीं, तभी पवन पुत्र हनुमान, जो वृक्ष पर छिपकर बैठे हुए थे, उन्हांेंने प्रभु श्रीराम की मुद्रिका नीचे गिरा दी और रामकथा सुनाने लगे। यह सुनते ही सीता जी का दुख दूर हो गया- सुनतहि सीता कर दुख भागा..। उन्हांेने कहा कि जिसने यह कथा सुनाई है, वह प्रकट हो। हनुमान जी नीचे आये और प्रणाम किया। सीता जी को बताया कि किस प्रकार नर और वानरों की मित्रता हुई। इतना ही नहीं उन्हांेंने सीता माता से यह भी कहा कि प्राण देने की यह कायरतापूर्ण बात जो आप कर रही थीं, उसे भूल जाइए। प्रभु श्रीराम को पता नहीं था कि आप कहां हैं, वरना अब तक तो वे आपको यहां से ले गये होते। हनुमान जी ने यह भी कहा कि आपको अभी मैं भी ले चल सकता हूं लेकिन प्रभु ने आज्ञा नहीं दी है। हनुमान जी जब यह सब कह रहे थे, तब उन्हांेने अति लघु रूप धारण कर रखा था, इसलिए सीता जी के मन में संदेह हुआ। उन्हांेने अपना संदेह प्रकट भी कर दिया, तब हनुमान जी को अपना वास्तविक शरीर प्रकट करना पड़ा। सोने के पर्वत जैसा हनुमान जी का शरीर और लघु शरीर धारण कर लंका मंे आने की बुद्धिमता को देखकर सीता जी ने हनुमान जी को वरदान दिया-
अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ,
करहु बहुत रघुनायक छोहू।
उसी समय से हनुमान जी को चिरंजीवी (चिर काल तक जीवित रहने वाला) माना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने त्रेता युग मंे अवतार लिया था और द्वापर मंे भगवान कृष्ण प्रकट हुए। हनुमान जी की उपस्थिति त्रेता और द्वापर दोनों युगों मंे रही है और माना जाता है कलियुग मंे भी वह मौजूद हैं। हनुमान जी अमर हैं और श्रीराम की जहां कथा हो रही होती है, वहां तो वह विशेष रूप से मौजूद रहते हैं। हिन्दुओं मंे ज्येष्ठ महीने को हनुमान जी की आराधना का विशेष महीना मानते हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तो ज्येष्ठ माह के मंगलवार को हनुमान मंदिरों मंे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और जगह-जगह भंडारे लगते हैं। ज्येष्ठ माह प्रारम्भ हो चुका है और पहला बड़ा मंगल 28 मई को मनाया जाएगा।

हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिए हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।

ज्योतिषियों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था जिसे पहले कपिस्थल कहा जाता था। इन्हें बजरंगबली, के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र (पत्थर) की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मारुत (संस्कृत मंे मरुत्) का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान मारुति अर्थात मारुत-नन्दन (वायु का बेटा) हैं। इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिए पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर, भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है। राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति को रोक दिया। इससे संसार का कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा जी उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूच्र्छित हनुमान को गोद में लिए उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की और कहा कि कोई भी शस्त्र इसे हानि नहीं पहुचा सकता। इन्द्र ने कहा कि इनका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यम देव ने निरोगी रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये। इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि। नाम त्रेतायुग में रामायण के समय भगवान श्री राम की सहायता, राक्षसों का वध तथा अपने भक्तों के संकट हरने पर उनको इन नामों से पुकारा गया। श्री हनुमान जी के 108 नाम बताये गये हैं। इनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है। उनके मुख पर जो तेज है वह अतुलनीय है। इनका शरीर पर्वत के समान विशाल और कठोर है उनके मुख पर सदेव राम नाम की धुन रहती है। रामायण का पाँचवाँ काण्ड (सुन्दरकाण्ड), हनुमान पर ही केंद्रित है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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