राजनीति

आकाश को फिर बसपा की बागडोर

 

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने गत 23 जून को अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से पार्टी की बागडोर सौंप दी है जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान अचानक उन्हांेने आकाश को अपरिपक्व नेता बताते हुए सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था। आकाश आनंद ने उस समय भी अपनी बुआ के आदेश को शिरोधार्य करते हुए कहा था कि वह पार्टी के एक अदना सिपाही हैं और नेतृत्व का आदेश पालन करना उनका कर्तव्य है। आकाश आनंद को उस समय मायावती ने पार्टी की जिम्मेदारियों से क्यों मुक्त किया था और लगभग एक महीने बाद ही उन्हंे बसपा की बागडोर क्यों सौंप दी, यह रणनीति गले से नीचे नहीं उतर रही है। बहरहाल, बसपा प्रमुख का फैसला है तो इसमें दूसरा कोई क्या कर सकता है। आकाश आनंद ने नयी जिम्मेदारी पाकर सोशल मीडिया पर लिखा- बहुजन समाज के उत्थान के लिए सर्वस्व त्याग करने वाली बाबा साहेब के मिशन के लिए समर्पित, करोड़ों दलित बच्चों के सपनों को साकार करने वाली बहुजन समाज की प्रेरणास्रोत बहन मायावती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। बहन जी ने अहम जिम्मेदारी दी है, उसे पूरे जी-जान से निभाना है। जय भीम, जय भारत। इस प्रकार आकाश आनंद ने दलित एजेंडे पर ही फोकस किया है। बसपा को 2014 के लेाकसभा चुनाव मंे एक भी सांसद नहीं मिला था लेकिन 2019 में जब सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो 10 सांसद मिले। ये सांसद सिर्फ दलित वोटरों के सहारे नहीं मिले थे। यह भी एक बड़ा तथ्य है कि अगर सपा-बसपा ने कांग्रेस को साथ लेकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा होता तो कम से कम 16 सीटें ऐसी थीं जो भाजपा और उसके गठबंधन को नहीं मिलतीं। जाहिर कि बसपा को 2024 मंे एक भी सांसद नहीं मिला तो इसके पीछे सुश्री मायावती की गलत रणनीति है।

आकाश आनंद ने तेवर दिखाए थे जिनसे युवा आकर्षित हो सकते थे। अब बसपा की रणनीति इसी मुद्दे पर केन्द्रित दिख रही है। बसपा प्रमुख का जादू कम पड़ गया है। इसका फायदा सपा और कांग्रेस गठबंधन को मिला है।
बसपा प्रमुख मायावती ने फिर से आकाश आनंद को नई जिम्मेदारी सौंपी है। इस पर आकाश आनंद ने प्रतिक्रिया भी दी है। बीएसपी प्रमुख मायावती लोकसभा चुनाव में हार के बाद अब एक बार फिर से समीक्षा कर रही हैं। इसी के साथ आकाश आनंद को उन्होंने फिर से अपना उत्तराधिकारी बना दिया है।
मायावती ने करीब डेढ़ माह बाद अपना फैसला पलटते हुए अपने भतीजे आकाश आनन्द को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक का दायित्व सौंपते हुए उन्हें फिर से अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। इसके पहले लोकसभा चुनाव के बीच में ही सात मई को उन्होंने आकाश आनन्द को अपरिपक्व करार देते हुए इन दायित्वों से मुक्त कर दिया था। लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद आयोजित बैठक में अनेक मुद्दों पर गहन समीक्षा की गयी। बैठक के बाद पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया, बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आकाश आनन्द को पार्टी में कार्य करने के लिए फिर से मौका दिया है। यह पहले की तरह पार्टी में अपने सभी पदों पर बने रहेंगे। अर्थात यह पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक (कोऑर्डिनेटर) के साथ-साथ मेरे एकमात्र उत्तराधिकारी भी बने रहेंगे। लोकसभा चुनाव में बसपा उत्तर प्रदेश में अन्य दलों के अपेक्षा काफी खराब रहा। बसपा एक बार फिर 2014 की तरह 2024 में एक भी सीट नहीं जीत पाई है। बीते आठ चुनावों में पार्टी का जनाधार घटकर एक तिहाई रह गया है। खास बात यह है कि बसपा ने जब 1989 का चुनाव लड़ा था तो
9.93 फीसदी वोट मिले थे। जबकि इस बार के चुनाव में केवल 9.39 फीसदी वोट मिला है। बीएसपी को सबसे कम वोट 1991 के चुनाव में मिला था। इस चुनाव में बीएसपी को केवल 8.70 फीसदी वोट मिला था। इसके बाद 1996 के चुनाव में बीएसपी का जनाधार दोगुना हो गया और 20.61 फीसदी वोट मिले। इसके बाद 2007 तक बसपा का जनाधार लगातार बढ़ता गया। 1998 के चुनाव में 20.90 फीसदी, 1999 के चुनाव 22.08 फीसदी और 2004 के चुनाव में 24.67 फीसदी वोट मिले। इसके बाद 2007 के चुनाव में बसपा ने रिकॉर्ड बनाया और इस चुनाव के बाद उसका जनाधार लगातार कम होता गया है। बीएसपी को 2007 के चुनाव में पहली और अंतिम बार 30।43 फीसदी वोट मिले थे और मायावती के नेतृत्व में यूपी में सरकार बनी थी। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में 27.42 फीसदी वोट मिले और 2012 के विधानसभा चुनाव में 25.91 फीसदी वोट मिले।

बीएसपी के जनाधार में बड़ी टूट 2014 के लोकसभा चुनाव से आई है। करीब 20 साल बाद बीएसपी का जनाधार 20 फीसदी से नीचे आया और इस चुनाव में पार्टी को केवल 19.77 फीसदी वोट मिले। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में 22.23 फीसदी, 2019 के लोकसभा चुनाव में 19.43 फीसदी, 2022 के लोकसभा चुनाव में 12.83 फीसदी और 2024 के लोकसभा चुनाव में 9.39 फीसदी वोट मिले हैं। यानी चुनावी इतिहास को देखा जाए तो करीब 33 सालों के बाद पार्टी का जनाधार दस फीसदी से नीचे आया है और खास बात यह है कि 2007 के मुकाबले पार्टी का जनाधार एक-तिहाई हो गया है।

सवाल है कि क्या आकाश आनंद परिपक्व हो गए हैं, जिसका हवाला मायावती ने दिया था। जाहिर है कि नहीं। परिपक्वता का कोई मसला ही नहीं है। मसला है लोकसभा का चुनाव और उसके नतीजे। मायावती ने यूपी में 80 की 80 सीटों पर चुनाव लड़ा। खाता तो नहीं ही खुला वोट बैंक भी 10 फीसदी के नीचे आ गया। इस बार मायावती का कोई भी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर भी नहीं पहुंच सका। बाकी रही-सही कसर पूरी कर दी चंद्रशेखर आजाद ने। उन्होंने नगीना लोकसभा सीट से एक लाख 52 हजार वोट के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। मायावती ने दलित होने के नाते चंद्रशेखर को कोई रियायत नहीं दी थी। इस जीत ने तय कर दिया कि अब अगर उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का कोई चेहरा है तो वो है चंद्रशेखर का मायावती का नहीं। मायावती को ये लगने लगा है कि अगर चंद्रशेखर से मुकाबला करना है, चंद्रशेखर की राजनीति की काट खोजनी है तो फिर उसी तेवर की जरूरत पड़ेगी, जो आकाश आनंद के पास है। लिहाजा आकाश आनंद की वापसी हो गई है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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