गडकरी की तरफ सभी की निगाहें

महाराष्ट्र मंे इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को निराशाजनक चुनाव नतीजे मिले। गठबंधन के सहयोगी भी चारों खाने चित हुए हैं। ऐसे में वहां की कमान कौन संभाले, इस पर दिल्ली और नागपुर दोनों जगह विचार मंथन चल रहा है। महाराष्ट्र मंे सभी की निगाहें नितिन गडकरी पर लगी हैं जिन्हंे नरेन्द्र मोदी की सरकार मंे लगातार तीसरी बार परिवहन मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया है। पेशे से किसान और पीएचडी की शिक्षा प्राप्त करने वाले नितिन गडकरी ने अपने विभाग की उपलब्धियों से मोदी सरकार को गौरवान्वित भी किया है। देश भर मंे एक्सप्रेस वे, हाई वे और ओवर ब्रिजों का उदाहरण दिया जाता है। गडकरी के अनुभव, उनके काम करने के तरीके ने ही उन्हंे इस पद का मजबूत दावेदार बनाया है। वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं और उनकी संगठन क्षमता भी बेजोड़ रही है। राज्य मंे विधानसभा चुनाव मंे भाजपा अपना रिकार्ड फिर से बनाना चाहती है। इसके लिए नितिन गडकरी की तरफ सभी की निगाहें लगी हैं। विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन के समीकरण भी बदल सकते हैं क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से टूट कर आये अजीत पवार पर भाजपा के नेता भी आरोप लगा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव मंे राज्य के 48 सांसदों मंे भाजपा को सिर्फ 10 सांसद मिल पाये हैं। एकनाथ शिंदे के गुट वाले शिवसेना को सिर्फ 7 सांसद मिले और अजीत पवार के गुट ने 1 सांसद पाया है। इसके विपरीत कांग्रेस को 13, शिवसेना उद्धव को 9 और शरद पवार के गुट को 7 सांसद मिले हैं। नितिन गडकरी ही इस समीकरण को पलट सकते हैं। कांग्रेस के विधायक टूटने भी लगे हैं।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का जन्म नागपुर के एक मराठी परिवार में 27 मई को 1957 में हुआ था। अपने राजनीति की शुरुआत से पहले नितिन गडकरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे। नितिन गडकरी वर्ष 1989 से महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे और साल 1999 से 2005 तक वे महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।वहीं साल 2009 में उनको महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। फिर बाद में नितिन गडकरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी नियुक्त किया गया था। जनवरी 2013 में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद मई 2014 में नितिन गडकरी पहली बार केंद्रीय सड़क-परिवहन मंत्री बने। फिर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी नितिन गडकरी को सड़क-परिवहन मंत्रालय सौंपा गया।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने परंपरागत लोकसभा सीट नागपुर से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की। नितिन गडकरी ने कांग्रेस प्रत्याशी विवेक ठाकुर को एक लाख 37 हजार से ज्यादा वोटों से मात दी थी। गडकरी को कुल 6 लाख 55 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। इस तरह से नितिन गडकरी ने नागपुर लोकसभा सीट से जीत की हैट्रिक भी लगाई।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने अपने चुनावी हलफनामे में कुल 28.03 करोड़ रुपये की संपत्ति बताई है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक बीते 5 साल में उनकी संपत्ति नौ करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ी है। जबकि 10 साल पहले नितिन गडकरी की संपत्ति 15.37 करोड़ रुपए थी। हलफनामे के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री और पत्नी के नाम पर 3-3 गाड़ियां हैं। जबकि उन्होंने कृषि, पारिश्रमिक और अन्य स्त्रोतों से होने वाली कमाई को अपनी आमदनी का जरिया बताया था।
महाराष्ट्र में मंत्री और शिंदे गुट के नेता तानाजी सावंत के बयान से सियासी बखेड़ा खड़ा हो गया है। सावंत ने कहा है कि कैबिनेट की बैठकों के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मंत्रियों के साथ बैठने पर उन्हें उल्टी आती है। स्वास्थ्य मंत्री के इस बयान पर अजित पवार की पार्टी एनसीपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि तानाजी सावंत को मंत्री पद से बर्खास्त कर देना चाहिए। एनसीपी के प्रवक्ता उमेश पाटिल ने कहा, या तो वह (तानाजी सावंत) बने रहें या एनसीपी। अगर उन्हें नहीं हटाया जाता है, तो हमें महायुति कैबिनेट से हट जाना चाहिए। मैं अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत पवार और हमारे सभी वरिष्ठ नेताओं से अनुरोध करता हूं कि वे मंत्रिमंडल से हट जाएं। उन्होंने कहा कि तानाजी सावंत ने जो कहा उसे सुनने से बेहतर है कि हम सत्ता से बाहर हो जाएं। हम सत्ता के लिए बेचैन नहीं हैं, तानाजी सावंत की वजह से एनसीपी महागठबंधन में नहीं है। सावंत आज महागठबंधन के कारण मंत्री बने हैं लेकिन अगर वे इस तरह से बात करने जा रहे हैं, तो मैं पार्टी नेतृत्व से अनुरोध करता हूं कि इससे बाहर निकलना बेहतर होगा।
वहीं एनसीपी के विधायक अमोल मिटकरी ने एबीपी माझा से कहा कि अब एनसीपी महागठबंधन में घटक दलों की तरफ से किए जा रहे अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकती। मंत्री ने कहा, मैं पक्का शिवसैनिक हूं। मेरी जिंदगी में कभी कांग्रेस और एनसीपी से नहीं बनी। पढ़ाई के बाद से अब तक मैं उनसे कभी नहीं मिला। ये हकीकत है। कैबिनेट मीटिंग में हम एक-दूसरे के पास बैठते थे, लेकिन जब भी बाहर आता था तो उल्टी हो जाती थी।
उधर, महाराष्ट्र के देगलूर विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक जितेश अंतापुरकर ने अपनी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, और जल्द ही उनके बीजेपी में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। पिछले कुछ दिनों से जितेश अंतापुरकर और अन्य कुछ कांग्रेस विधायकों को लेकर अटकलें थीं कि वे पार्टी नेतृत्व के रडार पर हैं। विधान परिषद और राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के कुछ विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग की खबरें सामने आईं जिसमें अंतापुरकर का नाम भी शामिल था। जितेश अंतापुरकर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में देगलूर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधायक बने थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कांग्रेस पार्टी के प्रति वफादारी दिखाई और अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित रहे। अंतापुरकर ने बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया। अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से उनकी करीबी और संवादशीलता उनकी पहचान रही है।
हाल ही में, अंतापुरकर और हीरामन खोसकर की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से सह्याद्री गेस्ट हाउस में मुलाकात की खबर आई थी। हालांकि, जब उनसे इस मुलाकात के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ने की खबरों को नकार दिया था। उनका कहना था कि उन्होंने अपने क्षेत्र के किसानों की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी लेकिन अब खबर आई है कि उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा
है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा टिकट न दिए जाने की आशंका के चलते अंतापुरकर ने यह कदम उठाया है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)