वक्फ बिल पर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए सारा विपक्ष एकजुट

यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है आजादी के 75 साल बाद असीमित अधिकार से मनमानी करते रहे वक्फ बोर्ड के नियमन के लिए एक ईमानदार कोशिश की जा रही है लेकिन वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर देश भर में कई कथित सेकुलर राजनीतिक दल आस्तीन चढ़ाकर विरोध में उतर आए हैं। और सत्ता और विपक्ष आमने-सामने है। एक तरफ सरकार वक्फ बोर्ड में सुधार की मांग को सरकार सही ठहराने में लगी है, तो दूसरी तरफ देश की विपक्षी पार्टियों और अल्पसंख्यक संगठनों के द्वारा जोरदार तरीके से विरोध किया जा रहा है।
देश के भविष्य और डैमोग्राफी को बचाने के लिए जब-जब सुधार की कोशिश की जाती है तब-तब मुस्लिम वोट बैंक के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे राजनीतिक दल दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है आजादी के 75 साल बाद असीमित अधिकार से मनमानी करते रहे वक्फ बोर्ड के नियमन के लिए एक ईमानदार कोशिश की जा रही है लेकिन वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर देश भर में कई कथित सेकुलर राजनीतिक दल आस्तीन चढ़ाकर विरोध में उतर आए हैं। और सत्ता और विपक्ष आमने-सामने है। एक तरफ सरकार वक्फ बोर्ड में सुधार की मांग को सरकार सही ठहराने में लगी है, तो दूसरी तरफ देश की विपक्षी पार्टियों और अल्पसंख्यक संगठनों के द्वारा जोरदार तरीके से विरोध किया जा रहा है। इस बीच वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लोकसभा में पेश करने के बाद विपक्षी पार्टियों के विरोध के कारण संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है।
ताजा जानकारी के अनुसार गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे अब इस विशेष बिल में संशोधन के लिए जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) का हिस्सा होंगे। दरअसल, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ बोर्ड से जुड़े बिल में संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा के कुल 31 सांसदों का नाम प्रस्तावित किया है। इन 31 में से 21 सांसद लोकसभा से हैं। झारखंड से गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे को भी जेपीसी में शामिल किया गया है। गुरुवार 8 अगस्त को किरेन रिजिजू ने लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया था, लेकिन विपक्ष के कड़े रुख के बाद बिल सदन में लटक गया और सरकार को झुकना पड़ा और इस बिल के लिए ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी बनानी पड़ी। यह कमेटी इस बिल पर अपनी रिपोर्ट अगले सेशन के अंतिम सप्ताह के पहले दिन जमा करेगी।
आपको बता दें कि देश में सबसे पहली बार 1954 में वक्फ एक्ट बना। इसी के तहत वक्फ बोर्ड का भी जन्म हुआ। इस कानून का मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को सरल बनाना था। एक्ट में वक्फ की संपत्ति पर दावे और रख-रखाव तक का प्रविधान हैं। 1955 में पहला संशोधन किया गया। 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना। इसके तहत हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई। बाद में साल 2013 में इसमें संशोधन किया गया था।
वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का काम वक्फ बोर्ड करता है। यह एक कानूनी इकाई है। प्रत्येक राज्य में वक्फ बोर्ड होता है। वक्फ बोर्ड में संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य है। बोर्ड संपत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण करता है। राज्यों में बोर्ड का नेतृत्व अध्यक्ष करता है। देश में शिया और सुन्नी दो तरह के वक्फ बोर्ड हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में वक्फ बोर्ड के आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है। साल 2009 में यह जमीन चार लाख एकड़ थी। इनमें अधिकांश मस्जिद, मदरसा, और कब्रिस्तान शामिल हैं। वक्फ बोर्ड की अनुमानित संपत्ति की कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने दिसम्बर 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी जिसके अनुसार वक्फ बोर्ड के पास 8,65,644 अचल संपत्तियां हैं। लगभग 9.4 लाख एकड़ वक्फ की जमीनों की अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ है। देश में उत्तर प्रदेश और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्ड समेत कुल 32 वक्फ बोर्ड हैं। रेलवे और रक्षा विभाग के बाद देश में वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक संपत्ति है।
हाल ही में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विधेयक को लोकसभा में पेश किया। चर्चा के दौरान विपक्षी सांसदों ने विधेयक का जोरदार विरोध किया।
देश भर में आए दिन किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बताकर कब्जे करने का सिलसिला की दशक से चल रहा है। ऐसे ही क्रम में 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के बसाए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर वक्फ होने का दावा ठोंक दिया। बेंगलुरू का ईदगाह मैदान विवाद। इस पर 1950 से वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा रहा है। सूरत नगर निगम भवन को वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा रहा। तर्क यह है कि इसे मुगलकाल में सराय के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। कोलकाता के टॉलीगंज क्लब, रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब और बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल के भी वक्फ भूमि पर होने का दावा है।
हाल ही में मध्यप्रदेश की तीन पुरातत्व सम्पत्ति पर वक्फ बोर्ड के दावे की सुनवाई करते हुए एमपी हाई कोर्ट में जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि ताजमहल, रेड फोर्ट को भी वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दो, जब भी मन आएगा, किसी की भी प्रॉपर्टी ऐसे ही घोषित कर दोगे। साधारण सा सवाल है, वक्फ की प्रॉपर्टी कैसे डिक्लेयर हो गई, इसका जवाब तो देना पड़ेगा। या आप मानकर चल रहे हो कि डिक्लेयर नहीं हो सकती। ऐसे ही चलता रहा तो कल आप किसी सरकारी दफ्तर को भी वक्फ की प्रॉपर्टी घोषित कर दोगे।
सरकार ने बिल को लेकर सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है। इसमें वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार मिले। 2013 में संशोधन करके बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है। सरकार का कहना है कि संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है। इससे मुस्लिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा। ओवैसी ने सरकार को मुसलमानों का दुश्मन बताया। कांग्रेस ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया तो वहीं मायावती ने कहा कि संकीर्ण राजनीति छोड़ राष्ट्रधर्म सरकार निभाए।
कांग्रेस, सपा, एनसीपी, टीएमसी, डीएमके, मुस्लिम लीग से लेकर एआईएमआईएम तक, सभी विपक्षी दलों के सदस्यों ने विधेयक के विरोध में दलीलें दीं। करीब-करीब सभी सदस्यों ने विधेयक को संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया। कुछ सदस्यों ने कहा कि अगर मंदिरों के प्रबंधन में कोई गैर-हिंदू नहीं हो सकता है, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम को लाने का प्रावधान करके भेदभाव को बल दिया जा रहा है। हालांकि, जेडीयू सांसद और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने बहुत तार्किक डंग से इसका खंडन किया। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड संसद के कानून से बनी संस्था है, जबकि मंदिर कानून से नहीं बनता है। मंदिर से वक्फ बोर्ड की तुलना नहीं हो सकती। अगर मस्जिदों की गवर्निंग बॉडी में कोई दखल दिया जाता तो निश्चित रूप से सवाल उठाए जाते, लेकिन कानून से बनी कोई संस्था अगर निरंकुश हो जाए तो उसमें सुधार की जरूरत है। दरअसल सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन। करने के के लिए एक विधेयक पेश किया है। वहीं सरकार ने तर्क दिया है कि वक्फ बोडों में प्रस्तावित बदलावों का उद्देश्य इनमें पारदर्शिता लाना है। इस कदम का उद्देश्य पूरे भारत में राज्य बोडों की ओर से नियंत्रित संपत्तियों के विनियमन और निगरानी में भ्रष्टाचार के मामलों का समाधान करना है।
2014 में कांग्रेस पार्टी ने इसी कानून का इस्तेमाल करके दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हिंदुओं की जमीन चली गई। वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 वक्फ बोडों को यह तय करने की शक्ति देती है कि क्या कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है। ऐसी शिकायतें हैं कि भ्रष्ट वक्फ नौकरशाही की मदद से संपत्तियों को हड़पने के लिए इस शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। देखना है इस विधेयक का भविष्य क्या होता है। हालांकि अभी तक का ट्रेक रिकार्ड यह बताता है कि मोदी सरकार जिस विधेयक को लाती है उसे पास कराने की भी क्षमता रखती है लेकिन इस बार जेडीयू जैसे सहयोगी दलों के भीतर भी इस विधेयक को लेकर विरोध है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)