राजनीतिलेखक की कलम

तमिलनाडु में राजभवन पर आरोप

 

तमिलनाडु में करीब 20 विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित हैं। अप्रैल में, डीएमके पार्टी के नेताओं ने नीट छूट विधेयक राष्ट्रपति को नहीं भेजने पर आरएन रवि के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था। यह विधेयक विधानसभा में दो बार पारित हुआ था।

लोकतंत्र के लिए यह कतई अच्छी बात नहीं है कि राज्य सरकार राजभवन पर आरोप लगाये। संविधान ने जनतंत्र का ढांचा बनाया है जिसमें राज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकार स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं लेकिन हमारे विद्वान संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने़ वालों से जिस सामंजस्य की अपेक्षा की थी, वो दलगत राजनीति का शिकार हो गया है। इसीलिए जहां केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी अथवा गठबंधन की सरकार होती है, वहां झगड़ा नहीं होता। इसके विपरीत जब केन्द्र और राज्य मंे अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें होती हैं तब राज्यपाल और मुख्यमंत्री अपने-अपने विवेकाधिकार का ज्यादा प्रयोग करते हैं। विवाद की शुरुआत भी यहीं से होती है। केन्द्र शासित प्रदेशों मंे भी इस तरह के विवाद उपराज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के बीच देखे जा सकते हैं पुड्डिचेरी में कांग्रेस की सरकार और उपराज्यपाल किरण बेदी के बीच विवाद सामने आये तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और पूर्व राज्यपाल के बीच तनातनी इतनी बढ़ गयी थी कि ममता बनर्जी ने अपने जनता के प्रतिनिधि होने और राज्यपाल की सरकारी नियुक्ति का उल्लेख किया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपराज्यपालों के बीच तो सबसे ज्यादा विवाद हुआ है। अब द्रविण मुन्नेत्र कझगम (द्रमुक) की सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच टकराव सड़क पर आ गया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का आरोप है कि राज्यपाल आरएन रवि सरकार के बिलों को मंजूरी देने में जानबूझ कर देरी करते हैं। दरअसल, यह राज्यपाल का विवेकाधिकार है लेकिन इस पर पूर्वाग्रह को हावी नहीं होना चाहिए।

तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच एक बार फिर से टकराव देखने को मिला है। पिछले कुछ महीनों से दोनों के बीच टकराव जारी है। अब सरकार बिलों में देरी के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि पर जानबूझकर मंजूरी के लिए भेजे गए बिलों में देरी करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सरकार ने अदालत से अपील की है कि राज्यपाल को एक निश्चित समय सीमा में विधेयकों पर सहमति देने या उनका निपटान करने का निर्देश दिया जाए। ये पहली बार नहीं है जब सीएम और राज्यपाल के बीच किसी मुद्दे पर टकराव हुआ है। इससे पहले भी मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल रवि लंबित विधेयकों, स्टालिन की विदेश यात्राओं, सरकार के द्रविड़ मॉडल और राज्य के नाम पर उनकी टिप्पणियों पर भिड़ चुके हैं।

तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने अनुरोध में दावा किया है कि राज्य विधानसभा द्वारा भेजे जा रहे बिलों और आदेशों को राज्यपाल समय पर मंजूरी नहीं दे रहे हैं। सरकार ने कहा कि बारह विधेयक, चार अभियोजन मंजूरी और 54 कैदियों की समयपूर्व रिहाई से संबंधित फाइलें फिलहाल राज्यपाल रवि के पास लंबित पड़ी हैं। स्टालिन सरकार ने राज्यपाल पर लोगों की इच्छा को कमजोर करने और औपचारिक प्रमुख के पद का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया।
तमिलनाडु के राज्यपाल रवि ने इसी साल 4 जनवरी को चेन्नई में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी टिप्पणी से राज्य के नाम पर बहस छेड़ दी थी। उन्होंने कहा था, तमिलनाडु को लेकर अलग तरह की सोच बन गई है। जब भी कुछ पूरे देश पर लागू होता है, तो तमिलनाडु उसे करने के लिए नहीं कहता है। यह एक आदत बन गई है। इसके साथ ही उन्होंने तमिलनाडु को तमिझगम कहकर संबोधित किया था। राज्यपाल के इस बयान के बाद तमिलनाडु सरकार ने इसका जमकर विरोध किया था जिसके बाद राज्यपाल ने सफाई देते हुए कहा था कि यह सोचना गलत है कि उन्होंने तमिलनाडु का नाम बदलने का सुझाव दिया था। जनवरी में ही एक बार विवाद तब हुआ जह राज्यपाल आरएन रवि ने सरकार द्वारा तैयार भाषण के कुछ अंशों को छोड़ दिया था। सीएम स्टालिन ने उन पर भाषण के अंशों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए गुस्सा जाहिर किया था। दरअसल भाषण के जिस हिस्से में तमिलनाडु को शांति का स्वर्ग बताया गया था और द्रविड़ियन मॉडल की बात कही गई थी। साथ ही धर्मनिरपेक्षता वाले अंशों को भी राज्यपाल ने भाषण में नहीं पढ़ा था। सीएम स्टालिन ने इस पर गुस्सा जताया था। बता दें, संविधान के मुताबिक, देश का राष्ट्रपति ही राज्यपाल को नियुक्त या हटा सकता है। यदि कोई विधेयक राज्य मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृति के लिए भेजा जाता है, तो राज्यपाल उसे एक बार वापस भेज सकता है। यदि मंत्रिमंडल विधेयक को राज्यपाल को दोबारा भेजता है तो वे उसे वापस नहीं भेज सकते। इसी प्रकार सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण पढ़ना राज्यपाल का कार्य है।

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके और उसके सहयोगी दलों ने राष्ट्रपति से राज्य के राज्यपाल को हटाने की मांग की है। नवम्बर 2022 में राज्यपाल आरएन रवि पर आरोप लगाया गया कि वह राज्य में सांप्रदायिक नफरत भड़का रहे हैं। डीएम की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए ज्ञापन में राज्यपाल को शांति के लिए खतरा बताया गया। डीएमके और सहयोगियों ने राष्ट्रपति से कहा कि राज्यपाल तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक देरी करते हैं। उन्होंने लोगों के लिए काम करने के लिए एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को बाधित किया है। साथ ही कहा है, राज्यपाल सांप्रदायिक नफरत को भड़काते हैं और वह राज्य की शांति के लिए खतरा हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि वह राज्यपाल के संवैधानिक पद पर रहने के योग्य नहीं है, उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए। साथ ही कहा गया है, कुछ लोग उनके बयानों को राजद्रोह भी मान सकते हैं, क्योंकि वह बयानों से सरकार के खिलाफ अलगाव पैदा करते हैं।

डीएमके ने इस महीने की शुरुआत में समान विचारधारा वाले सभी सांसदों को एक खत भी लिखा था। इस खत में उनसे अपील की गई थी कि संविधान के खिलाफ काम करने के लिए आरएन रवि को राज्यपाल के पद से हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करें। पार्टी ने कहा था कि उनके कार्यों और बयानों से यह साबित होता है कि वह राज्यपाल पद के लिए अनुपयुक्त हैं। डीएमके ने समान विचारधारा वाले सांसदों से ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की अपील भी की थी।
तमिलनाडु में करीब 20 विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित हैं। अप्रैल में, डीएमके पार्टी के नेताओं ने नीट छूट विधेयक राष्ट्रपति को नहीं भेजने पर आरएन रवि के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था। यह विधेयक विधानसभा में दो बार पारित हुआ था। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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