अमित शाह ने कराया त्रिपुरा में समझौता

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पूर्वोत्तर भारत के राज्य त्रिपुरा में लम्बे अरसे तक वामपंथियों का शासन रहा है। अब वहां भाजपा की सरकार है। अलगाववादी दशकों से वहां सक्रिय हैं। भारत सरकार की ओर से त्रिपुरा में दो सशस्त्र संगठन ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स और नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के बीच अहम शांति समझौता हो गया है। इन दोनों संगठनों पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है। इसके बाद मुख्य चुनौती भारत सरकार के सामने थी कि कैसे इन संगठनों को मुख्य धारा में लाया जाए। गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर पिछले 5 साल में पूर्वोत्तर के अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग अलगाववादी संगठनों से आधा दर्जन से भी ज्यादा शांति समझौते हो चुके हैं। इसमें से प्रमुख है ब्रू रियांग जनजातीय समझौता, उल्फा के कई धड़ों से शांति समझौता और इस साल मार्च में त्रिपुरा के कुछ और जनजातीय समूह के बीच हुआ समझौता हुआ है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में गत 04 सितम्बर को केंद्र सरकार, त्रिपुरा सरकार, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एन एल एफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) के प्रतिनिधियों ने एक मेज पर बैठकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा और गृह मंत्रालय और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के विकास कर लिए 2500 करोड़ का पैकेज दे रखा है। उग्रवादियों के चलते आम जनता को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा था। नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) एक उग्रवादी संगठन है। केंद्र सरकार ने 1997 में एनएलएफटी और एटीटीएफ को गैरकानूनी घोषित करते हुए प्रतिबंध लगा दिया था। वर्ष 2019 में इन संगठनों पर प्रतिबंध को 5 के लिए बढ़ाया गया और फिर पिछले साल 2023 में इस पर लगा प्रतिबंध फिर से बढ़ाया गया था।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया था कि एनएलएफटी और एटीटीएफ का मकसद पूर्वोत्तर राज्य के अन्य सशस्त्र अलगाववादी संगठनों के साथ मिलकर हथियार के बल पर त्रिपुरा को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना है। यह दोनों संगठन हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं और यह लोगों के बीच आतंक और हिंसा फैला रहे हैं, इसलिए इनपर प्रतिबंध लगाया गया है। केंद्र सरकार ने त्रिपुरा के दो विद्रोही गुटों नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया। गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा कि इन गुटों का उद्देश्य भारत से अलग कर त्रिपुरा को अलग राष्ट्र बनाना है। इसके लिए ये गुट कई साल से अन्य संगठनों की सहायता से सशस्त्र विद्रोह कर रहे हैं। यह प्रतिबंध दोनों समूहों के सहयोगी संगठनों पर भी लागू होगा। इन पर देश की संप्रभुता और एकता के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। अब इन्हीं संगठनों के उदारवादियों के साथ समझौता किया गया है।
नरेंद्र मोदी सरकार, त्रिपुरा की माणिक साहा सरकार, एनएलएफटी और एटीटीएफ के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह समझौता पूर्वोत्तर के लिए 12वां और त्रिपुरा से संबंधित तीसरा समझौता है।अमित शाह ने बताया कि अब तक लगभग 10 हजार उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है और अपने हथियार डाल दिए हैं। इसके साथ वह अब मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। आज एनएलएफटी और एटीटीएफ के आत्मसमर्पण और समझौते के साथ ही लगभग 328 से अधिक सशस्त्र कैडर मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए गृह मंत्री शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति और विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर में हस्ताक्षरित सभी शांति समझौतों को सरकार द्वारा लागू किया गया है।गृह मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित 2500 करोड़ रुपये के विकास पैकेज को पूर्वोत्तर में लागू किया गया है। शाह ने कहा कि गृह मंत्रालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उग्रवाद, हिंसा और संघर्ष से मुक्त विकसित पूर्वोत्तर के सपने को पूरा करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है। गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति और समृद्धि लाने के लिए 12 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से तीन त्रिपुरा से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि इन समझौतों के कारण करीब 10000 लोग हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हुए हैं।
गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा कि एनएलएफटी और एटीटीएफ का उद्देश्य भारत से अलग कर त्रिपुरा को अलग राष्ट्र बनाना है। इसके लिए ये गुट कई साल से अन्य संगठनों की सहायता से सशस्त्र विद्रोह कर रहे हैं और त्रिपुरा के लोगों को उकसा रहे हैं।केंद्र सरकार का मानना है कि दो गुट विध्वंसक और हिंसक गतिविधियों में शामिल हैं और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आतंक फैला रहे हैं। ये दोनों गुट नागरिकों और सुरक्षा बलों के जवानों की हत्या में शामिल रहे हैं। इसके साथ ही ये कारोबारियों, व्यापारियों और जनता से वसूली करते हैं। ये दोनों गुट देश की संप्रभुता और एकता के लिए खतरा हैं। दोनों गुटों और इनके सहयोगी संगठनों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 के तहत कार्रवाई की गई है।
समझौते से जुड़े रणनीतिकारों के मुताबिक, मार्च के महीने में जैसे ही मोदी सरकार ने त्रिपुरा के कुछ जनजातीय समूहों के साथ शांति समझौता किया उसके बाद से इन दोनों संगठनों से बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। वैसे तो पिछले दो साल से इन दोनों संगठनों से त्रिपुरा में बातचीत चल रही थी। कई दौर की बातचीत चली, जिसमें इन दोनों संगठनों के नेता दिल्ली भी आए और भारत सरकार के आला अधिकारी त्रिपुरा भी गए। मोदी सरकार 3.0 ने जैसे ही अपना कार्यकाल शुरू किया। इस प्रक्रिया में और तेजी आनी शुरू हो गई। खुद गृहमंत्री अमित शाह को इस बाबत समय-समय पर जानकारी दी जाती रही और आखिरकार 4 सितंबर को यह समझौता हुआ।
यह दोनों संगठन पिछले कई सालों से त्रिपुरा के प्रमुख सशस्त्र संगठनों में से एक थे और उनकी प्रमुख मांग समय-समय पर यही रहती थी। त्रिपुरा में जनजातीय और आदिवासी लोगों की अस्मिता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। भारत सरकार के
इस शांति समझौते में इन दोनों
समूहों को यह आश्वासन दिया गया है कि आदिवासियों के हितों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इस शांति समझौते के बाद इस संगठन से जुड़े लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा के पास त्रिपुरा में जो रीजन है उसके विकास के लिए अहम भूमिका सौंपी जा सकती है। (हिफी)