लेखक की कलम

अमित शाह का कश्मीर से वादा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
भारतीय जनता पार्टी भाजपा के लिए यूं तो जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। बीजेपी का सारा फोकस अभी इन्हीं दोनों राज्यों पर है। हरियाणा में बीजेपी सत्ता वापसी के लिए जोर लगा रही है तो जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा दल बनने के लिए मेहनत जारी है। सूत्रों की मानें तो बीजेपी हरियाणा से ज्यादा जोर जम्मू-कश्मीर चुनाव में ही लगा रही है क्योंकि यह पार्टी की प्रतिष्ठा का विषय है। राज्य में आर्टिकल 370 हटने और घाटी को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद से यह पहला चुनाव है। वहीं राज्य में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने से हर किसी की निगाहें जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के रिजल्ट पर होंगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए प्रचार के आखिरी दिन यानी 16 सितंबर को चिनाब घाटी में तीन जनसभाओं को संबोधित कर रहे थे । चिनाब घाटी के डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों तथा दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम और शोपियां जिलों में फैलीं 24 विधानसभा सीटों के लिए पहले चरण में 18 सितंबर को मतदान होगा। अमित शाह ने कश्मीर की जनता से वादा किया है कि इस धरती से आतंकवाद की जड़ों को भाजपा समाप्त करेगी।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होंगे। जम्मू-कश्मीर में चुनाव की प्रक्रिया 20 अगस्त से शुरु हुई और 6 अक्तूबर को पूरी होगी। करीब डेढ़ महीने तक तीन चरणों में होने वाले चुनाव पर देश और दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। पहला कारण यह है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य नहीं रहा, दूसरा कारण हाल के दिनों में बढ़ी आतंकी गतिविधियां हैं। निर्वाचन आयोग को उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर के लोग लोकतंत्र की सफलता के लिए नया रेकॉर्ड बनाएंगे। लोकसभा चुनाव के दौरान आतंकवादियों की धमकी के बावजूद मतदान करने वालों की जिस तरह लाइन लगी हुई थी उससे यही पता चलता है कि लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है और आतंकवाद को जनता ठुकरा रही है । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर की चिनाब घाटी में चुनाव सभाओं में इसीलिए सबसे ज्यादा जोर आतंकवाद को जड़ों से मिटाने पर दिया। कश्मीर में चुनाव की दृष्टि से ही बीजेपी नेता राम माधव की पांच साल वापसी हुई है। पार्टी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर चुनाव का प्रभारी बनाया है। एक लंबे अंतराल के बाद उनकी वापसी को राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। राम माधव की वापसी आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों के नजरिए से भी अहम है। खासतौर पर 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन के बाद संघ की ओर से आलोचना के बाद राम माधव को जिम्मेदारी मिली है। बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए माधव को यह जिम्मेदारी सौंपी है। माधव को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में बीजेपीको मजबूत बनाने का श्रेय दिया जाता है। ध्यान रहे कि 2020 में उन्हें पार्टी के पदों से हटा दिया गया था। माधव आरएसएस के सीनियर नेता हैं। अब बीजेपी ने न सिर्फ उस सीनियर आरएसएस नेता की ओर रुख किया है जिसने पार्टी को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के सीमावर्ती क्षेत्रों में पैर जमाने में मदद की, जो कभी उसकी पहुंच से बाहर थे, बल्कि पार्टी ने उन्हें अपने सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में से एक के लिए फिर से जम्मू-कश्मीर भेज दिया।
राजनीतिकों का मानना है कि चाहे सही हो या गलत, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहले विधानसभा चुनावों के नतीजों को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के मोदी सरकार के दांव पर एक वोट के रूप में देखा जाएगा। बीजेपी भी चुनावों में जो रैलियां करेगी, उनमें सबसे ज्यादा रैलियां जम्मू-कश्मीर में होंगी। पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक जम्मू-कश्मीर में जा चुके हैं और आगे रैलियां करेंगे। अमित शाह राज्य में चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले रैलियां कर जोश भरेंगे। आधिकारिक आंकड़ें देखें तो विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रैलियों के आयोजन और बैठक स्थल के लिए जम्मू कश्मीर में राजनीतिक नेताओं ने खूब बुकिंग की हैं। अगर हरियाणा से तुलना करें तो जम्मू-कश्मीर में चार गुना ज्यादा रैलियां होंगी।
जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हो रहा है। 18 सितंबर से वोटिंग शुरू होगी। वहीं हरियाणा में विधानसभा चुनाव एक ही चरण में पांच अक्टूबर को होना है। जम्मू कश्मीर और हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के कार्यालयों में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, निर्वाचन आयोग के ‘सुविधा’ ऐप्लीकेशन के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश में रैली मैदानों और ‘हॉल’ के लिए 3100 से अधिक अनुमति दी गई हैं।
सुविधा ऐप पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में इस तरह की 850 से अधिक अनुमति दी गई है। अभी 11 और 12 सितंबर को जम्मू कश्मीर के दौरे पर आए निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने भी एक बयान दिया था। केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन से कहा कि रैलियों या बैठकों में भाग लेने वालों की संख्या पर अंतिम क्षणों में कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा
प्रशासन को यह भी निर्देश दिया गया कि राजनीतिक सभाओं के लिए अनुमति बिना किसी पक्षपात या अनावश्यक हस्तक्षेप के दी जानी चाहिए। केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण में 50 सीटों पर कुल 458 उम्मीदवार मैदान में हैं। इस ऐप का उपयोग रैलियों के आयोजन, अस्थायी पार्टी कार्यालय खोलने, घर-घर जाकर प्रचार करने, वीडियो वैन, हेलीकॉप्टर और हेलीपैड के उपयोग, वाहन परमिट प्राप्त करने और पर्चे वितरित करने की अनुमति प्रदान करने में किया जा रहा है।
ज्यादातर बीजेपी नेता स्वीकार करते हैं कि राम माधव को वापस लाने के फैसले में जम्मू-कश्मीर में उनके रिकॉर्ड की अहम भूमिका थी। हालांकि कुछ लोगों ने कहा कि यह 2014 से पार्टी के पास मौजूद फायदों के बावजूद इस क्षेत्र में एक मजबूत नेतृत्व बनाने में पार्टी की विफलता को दर्शाता है, लेकिन कुछ को संदेह है कि गुलाम नबी आजाद जैसे राजनीतिक नेताओं के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के साथ, माधव ही सबसे अच्छे व्यक्ति हैं जो बीजेपी के लिए जम्मू-कश्मीर में विधायकों की संख्या सुरक्षित कर सकते हैं। पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि यह एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है, जहां माधव अपनी काबिलियत साबित कर सकते हैं। सूत्र ने कहा कि बीजेपी का चुनावी प्रभाव जम्मू क्षेत्र तक ही सीमित है, जहां केंद्र शासित प्रदेश की 90 में से 43 सीटें हैं… जब तक पार्टी घाटी में ठोस संबंध विकसित नहीं कर लेती, तब तक सरकार बनाना पार्टी के लिए संभव नहीं है। पार्टी नेतृत्व को पता है कि माधव इसके लिए सबसे अच्छे दांव हैं। राम माधव ने 2014 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की चुनावी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भाजपा 25 सीटों के साथ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (28 सीटों) के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (15 सीटों) से आगे रही थी। 2008 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास सिर्फ 11 सीटें थीं। जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा के बाद राज्यपाल शासन के दौरान, राम माधव ने ही पीडीपी के साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करवाया था ताकि मुफ्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री बनाकर गठबंधन सरकार बनाई जा सके। अब भाजपा वहां अपने दम पर सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button