लेखक की कलम

अयोध्या में फिर एक ऐतिहासिक अवसर

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में 25 नवंबर को राम मंदिर के शिखर पर ध्वज फहराया जाएगा। इसके लिए 5 दिनों तक चलने वाले धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत हो
चुकी है।
पहले दिन कलश यात्रा निकाली गई। इस कलश यात्रा के जरिए सरयू से लाए गए पवित्र जल से ही रामलला का अभिषेक होगा। राम मंदिर निर्माण आंदोलन से लगभग चार दशक से जुड़े जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के अनुसार 25 नवंबर को समारोह का मुख्य आयोजन है जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर के शिखर पर केसरिया रंग की ध्वजा फहराई जाएगी। यह ध्वजा 11 फिट लम्बा और 22 फिट चैड़ा है। यह त्रिस्तरीय ध्वज है जो रेशमी सिल्क का पीताम्बरी रंग में है। इस प्रकार यह ध्वजा अरुणिमा वेला में सूर्योदय के पूर्व क्षितिज पर बिखरी रश्मियों के समान दिख रहा है। ध्वज में पैराशूट फैब्रिक का स्तर लगाया गया है। शिखर की ऊँ चाई अधिक होने के कारण इसमें इस्तेमाल कर जा रही नायलान की डोरी भी बहुत मजबूत है। ध्वजारोहण समारोह के मुख्य यजमान डा अनिल मिश्र हैं। राम मंदिर का ध्वज अब वासंतिक नवरात्र व शारदीय नवरात्र को बदला जाएगा। इस प्रकार 25 नवम्बर 2025 की तारीख अयोध्या के लिए एक नया इतिहास रचने जा रही है।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य और अनुष्ठान के यजमान डॉक्टर अनिल मिश्र ने बताया कि कलश यात्रा के लिए 551 कलश की व्यवस्था की गई थी जिनमें लाए गए सरयू जल से रामलला का अभिषेक किया जाएगा। काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ की देखरेख में ध्वजारोहण समारोह से जुड़े वैदिक अनुष्ठान और कार्यक्रम 25 नवंबर तक चलेंगे और 25 तारीख के शुभ मुहूर्त में पीएम मोदी के हाथों मंदिर के शिखर पर 22 फीट लंबी और 11 फीट चैड़ी ध्वजा फहराई जाएगी। बहरहाल बहुत हद उत्साह कम साथ राम मंदिर के ध्वजारोहण समारोह की 20 नवंबर को सुहागिन महिलाओं की कलश यात्रा के साथ शुरुआत हुई । यह कलश यात्रा सरयू नदी के संत तुलसी घाट से राम मंदिर तक निकाली गई। इसमें सैकड़ों महिलाएं और वैदिक विद्यार्थी शामिल रहे। कलश यात्रा में शामिल महिलाएं और वैदिक विद्यार्थी अपने हाथों में ध्वज लेकर चल रहे थे। ढोल, नगाड़े और शंख
ध्वनि के बीच रामपथ पर निकली कलश यात्रा को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु और स्थानीय नागरिक उमड़ पड़े। इसके पहले सरयू घाट पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के न्यासी डॉ. अनिल मिश्र और राम मंदिर के व्यवस्था प्रभारी गोपाल राव की मौजूदगी में वैदिक आचार्याओं ने प्रायश्चित पूजन, वरुण पूजन और कलश पूजन समेत अन्य अनुष्ठान किया। अनुष्ठान के बीच कलश में सरयू जल लेकर महिलाएं रवाना हुईं। यह सरयू जल से भरे कलश राम मंदिर के पुजारी को सौंप दिए गये। राम मंदिर में ध्वजारोहण समारोह के दूसरे दिन मंडप प्रवेश और पंचांग पूजन के साथ विभिन्न ग्रंथों का पारायण व अन्य अनुष्ठान हुए। कलश यात्रा के माध्यम से पहुंचाए गए सरयू जल का उपयोग इन अनुष्ठानों में किया गया। अब 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में मुख्य समारोह के दौरान राम मंदिर के शिखर पर
ध्वजारोहण किया जाएगा।
अयोध्या में राम मंदिर के 500 साल के संघर्ष को एक ग्रंथ में संकलित किया गया है। श्रीरामलला मन से मंदिर तक नामक इस ग्रंथ में मंदिर आंदोलन से जुड़े संतों के लेख और संघर्ष का सिलसिलेवार विवरण है। रामायण रिसर्च काउंसिल द्वारा तैयार इस ग्रंथ का विमोचन प्रधानमंत्री द्वारा कराया जाएगा। यह हिंदी समेत 10 अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में उपलब्ध होगा।
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का सर्वोच्च निर्णय वर्ष 2019 में आया था, जबकि इस ग्रंथ के लिए शोध कार्य वर्ष 2018 से आरंभ हो गया था, जिसमें इस सांस्कृतिक व धार्मिक संघर्ष के साथ धर्मग्रंथों के जानकारों का 27 लोगों का समूह काम कर रहा था। इस ग्रंथ के कलेवर को भी संविधान की तरह खास थड पर भी जोर दिया गया है।
बाबरी मस्जिद स्थल को कम से कम 1822 से राम का जन्मस्थान होने का दावा किया जाता रहा है। फैजाबाद जिला अदालत ने समय बीत जाने का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया, हालांकि अदालत हिंदू याचिकाकर्ता के दावे से सहमत थी और उसने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदुओं द्वारा विशेष रूप से पवित्र मानी जाने वाली भूमि पर मस्जिद बनाई गई लेकिन चूंकि वह घटना 356 साल पहले हुई थी, इसलिए अब इस शिकायत का समाधान करने में बहुत देर हो चुकी है।
लम्बा संघर्ष चलता है और 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक अपराध के रूप में स्वीकार किया है। इसने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में दंगे भड़का दिए। पहले कई प्रयासों को विफल कर दिया गया था, जिनमें से एक ने 1990 के
अयोध्या गोलीबारी की घटना को जन्म दिया। बाद में भूमि के स्वामित्व का मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दर्ज किया गया, जिसका फैसला 30 सितंबर 2010 को सुनाया गया। फैसले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि
अयोध्या की भूमि को तीन भागों में विभाजित किया जाएगा, जिसमें एक तिहाई हिस्सा विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले राम लल्ला या शिशु राम को जाएगा, एक तिहाई उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जाएगा जबकि तीन न्यायाधीशों की पीठ को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि मस्जिद का निर्माण मंदिर के विध्वंस के बाद किया गया था, यह इस बात पर सहमत हुआ कि उसी स्थल पर मस्जिद से पहले एक मंदिर की संरचना मौजूद थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर विवादित स्थल की खुदाई की थी। खुदाई की रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मस्जिद के खंडहरों के नीचे ‘एक विशाल संरचना’ के अवशेष थे जो ‘उत्तर भारत के मंदिरों से जुड़ी विशिष्ट विशेषताओं वाले अवशेषों का संकेत’ थे, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए संरचना को विशेष रूप से
ध्वस्त किया गया था। रिपोर्ट को प्रशंसा और आलोचना दोनों मिलीं, कुछ अन्य पुरातत्वविदों ने रिपोर्ट के परिणामों को चुनौती दी।
5 फरवरी 2020 को, भारत सरकार ने वहां राम मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नामक एक ट्रस्ट की घोषणा की। इसने 1992 में ध्वस्त की गई बाबरी मस्जिद की जगह एक मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या के धन्नीपुर में एक वैकल्पिक स्थल भी आवंटित किया। 22 जनवरी 2024 को, राम मंदिर आधिकारिक तौर पर खोला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके अभिषेक का नेतृत्व किया, इसे एक नए युग की शुरुआत होने का दावा किया गया था।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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