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अनुरा कुमारा चुने गए श्रीलंका के राष्ट्रपति

श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने एक साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर इस द्वीपीय देश की सत्ता के शिखर तक पहुंचने का रास्ता काफी उतार चढ़ाव के साथ तय किया है। इस उपलब्धि को हासिल करने की अपनी यात्रा में उन्होंने खुद को युवा मतदाताओं और पारंपरिक राजनेताओं की ‘भ्रष्ट राजनीति’ से थक चुके लोगों के लिए एक रहनुमा के रूप में पेश किया। प्रधान न्यायाधीश जयंत जयसूर्या ने राष्ट्रपति सचिवालय में श्रीलंका के नौवें राष्ट्रपति के रूप में 56 वर्षीय दिसानायके को शपथ दिलाई। इस पद पर उनका पहुंचना उनकी आधी सदी पुरानी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के लिए भी एक उल्लेखनीय बदलाव है, जो लंबे समय से हाशिये पर थी। वह देश के प्रमुख बनने वाले श्रीलंका के पहले मार्क्सवादी नेता हैं। जेवीपी के विस्तृत मोर्चे ‘नेशनल पीपुल्स पावर’ के (एनपीपी) नेता दिसानायके के भ्रष्टाचार विराधी संदेश और राजनीतिक संस्कृति में बदलाव के उनके वादे ने उन युवा मतदाताओं में विश्वास पैदा किया जो आर्थिक संकट के बाद से व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रहे थे। साल 2019 में पिछले राष्ट्रपति चुनाव में केवल तीन प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद एनपीपी की लोकप्रियता 2022 के बाद से तेजी से बढ़ी है। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में दिसानायके ने कहा कि वह लोकतंत्र को बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे और राजनेताओं के सम्मान को बहाल करने की दिशा में काम करेंगे क्योंकि लोगों को उनके आचरण के बारे में गलतफहमी है।
इससे पहले अगस्त में ‘डेली मेल’ ऑनलाइन के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘‘हमारे देश में केवल एक गैर-भ्रष्ट ताकत ही भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर सकेगी। चंद्रिका (कुमारतुंगा), महिंदा (राजपक्षे), मैत्रीपाला (सिरीसेना) और गोटाबया (राजपक्षे) के शासन में 1994 से ही भ्रष्टाचारियों को दंडित करने का नारा गूंजता रहा है। भ्रष्टाचारी कभी भी भ्रष्टाचारियों को सजा नहीं देगा। भ्रष्टाचारी हमेशा भ्रष्टाचारियों की रक्षा करते हैं। भ्रष्टाचार खत्म करना एनपीपी की प्राथमिकता है।’’

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