सम-सामयिक

जांच एजेंसियों का मनमाना दुरुपयोग

हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे तोहमत भरे शब्दों से कोहराम मचाने वाला 2008 का मालेगांव ब्लास्ट अब एक बार फिर चर्चा में है। घटना के लगभग 17 साल बाद कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को बरी किया है। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और समीर कुलकर्णी लगभग नौ साल जेल में रहे, जबकि अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तारी के बाद जेल में लंबा समय गुजारना पड़ा था। इससे जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का सवाल भी उठा।
मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला आने के बाद इस पर प्रतिक्रिया देते पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने बड़ा खुलासा किया है। मुजावर ने बताया है कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था। मुजावर के मुताबिक, भागवत को गिरफ्तार करने के ऑर्डर का मकसद भगवा आतंकवाद को स्थापित करना था।

एटीएस के ‘फर्जीवाड़े को नकार दिया

पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने सोलापुर में कहा है कि मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के फैसले ने एटीएस के ‘फर्जीवाड़े को नकार दिया है। आपको बता दें कि शुरू में इस मामले की जांच एटीएस ने की थी। हालांकि, बाद में एनआइज ने केस को अपने हाथ में ले लिया था। मुजावर ने आगे कहा, इस फैसले ने एक फर्जी अधिकारी द्वारा की गई फर्जी जांच को उजागर कर दिया है।
महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए ब्लास्ट में 6 लोगों की मौत हुई थी और करीब 101 लोग घायल हुए थे। महबूब मुजावर ने बताया है कि वह इस ब्लास्ट की जांच करने वाली एटीएस टीम का हिस्सा थे। मुजावर ने बताया कि उन्हें मोहन भागवत को ‘पकड़ने के लिए कहा गया था। पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने कहा, “मुझे इस केस में इसलिए शामिल किया गया था ताकि ‘भगवा आतंकवाद’ को साबित किया जा सके. मुझे सीधे तौर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने के निर्देश दिए गए थे, और ये आदेश तत्कालीन मालेगांव धमाके के प्रमुख जांच अधिकारी परमबीर सिंह और उनके ऊपर के अधिकारियों ने दिए थे।
मुजावर ने कहा- मैं यह नहीं कह सकता कि एटीएस ने उस समय क्या जांच की और क्यों लेकिन मुझे राम कलसांगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसी हस्तियों के बारे में कुछ गोपनीय आदेश दिए गए थे। ये सभी आदेश ऐसे नहीं थे कि उनका पालन किया जा सके।

‘‘मोहन भागवत जैसी बड़ी हस्ती को पकड़ना मेरी क्षमता से परे था।

पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने बताया कि उन्होंने आदेश का पालन नहीं किया और मोहन भागवत को गिरफ्तार नहीं किया क्योंकि उन्हें हकीकत पता थी। मुजावर ने बताया- ‘‘मोहन भागवत जैसी बड़ी हस्ती को पकड़ना मेरी क्षमता से परे था। चूंकि मैंने आदेशों का पालन नहीं किया, इसलिए मेरे खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया और मेरे 40 साल के करियर को बर्बाद कर दिया।’’ उन्होंने आगे कहा कि ‘‘कोई भगवा आतंकवाद नहीं था। सब कुछ फर्जी था।
केस में गवाह रहे मिलिंद जोशी भी सामने आये और ये कहकर पूरे देश को हैरान कर दिया कि उन्हें मालेगांव ब्लास्ट में योगी आदित्यनाथ को फंसाने के लिए कहा गया था। असीमानंद का नाम भी लेने के लिए कहा गया। दबाव बेइंतहां था, मुझे टॉर्चर करते थे। मनगढंत कहानियां बनाने का दबाव डालते थे।

चिंता राजनीति की आखिर हद क्या है?

इससे सवाल उठता है कि क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत योगी आदित्यनाथ प्रज्ञा ठाकुर असीमानंद कांग्रेस सरकार के टारगेट पर थे? यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ को भी मालेगांव धमाकों की आंच में झोंकने का बंदोबस्त तब की सरकार ने कर लिया था? ये दो सिर्फ सवाल नहीं हैं. एक ऐसा खुलासा है, जिसने पूरे देश को सन्नाटे में ला दिया है। साथ ही, चिंता में डाल दिया है कि राजनीति की आखिर हद क्या है?
अब असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर उन छह लोगों को मारा किसने ? कोर्ट ने कहा कि जो आरोप इन पर लगाए गए हैं, उसे साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। मालेगांव ब्लास्ट भारत के सबसे चर्चित आतंकवादी घटनाओं में से एक है। यह घटना 17 साल पहले महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में हुई थी। इस विस्फोट में एक फ्रीडम बाइक का इस्तेमाल किया गया था। मालेगांव विस्फोट मामले में जो नाम सबसे चर्चित है वह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का है, जो भोपाल से भाजपा सांसद रह चुकी हैं। इस विस्फोट के बाद एक नया शब्द प्रचलन में आया था हिंदू आतंकवाद। मालेगांव में यह विस्फोट 29 सितंबर 2008 को हुआ था, चूंकि रमजान का महीना था और इफ्तार की वजह से सड़क पर भीड़ बहुत ज्यादा थी। मालेगांव के भीकू चैक इलाके में धमाका हुआ, जहां अधिकतर आबादी मुस्लिम है। विस्फोट से बाइक फट गयी और आसपास मौजूद लोग इसकी चपेट में आ गए। विस्फोट में जो लोग मारे गए और घायल हुए वे सभी स्थानीय लोग थे, जिनमें दुकानदार और राहगीर शामिल थे। चूंकि यह विस्फोट रमजान के महीने में मुस्लिम इलाके में हुआ था, इसलिए जांच एजेंसियों ने इसे सांप्रदायिकता से प्रेरित आतंकी हमला बताया था।

प्रज्ञा की गिरफ्तारी क्यों  ?

विस्फोट के बाद इसकी गंभीरता को देखते हुए मामले की जांच एटीएस को सौंप दी गई थी। एटीएस के प्रमुख उस वक्त हेमंत करकरे थे। एटीएस ने जांच के दौरान कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम सबसे ऊपर है। प्रज्ञा की गिरफ्तारी इसलिए हुई थी, क्योंकि जिस बाइक में विस्फोटक रखा गया था, उसका रजिस्ट्रेशन उनके नाम पर था। बाद में भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की भी गिरफ्तारी हुई। उन पर विस्फोटक का इंतजाम करने का आरोप लगा। जनवरी 2009 में एटीएस ने अपनी पहली चार्जशीट दायर की, जिसमें 11 आरोपियों और तीन वांछित व्यक्तियों के नाम थे, जिसमें साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया था। इस मामले में महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। हालांकि बाद में 31 जुलाई 2009 को एक विशेष अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए इसके आरोप हटा दिए थे।

एटीएस का दावा था कि यह विस्फोट हिंदू आतंकवाद का परिणाम है, जिसमें मुसलमानों को टारगेट किया गया है। 19 जुलाई 2010 को बंबई हाईकोर्ट ने इन आरोपों को फिर से बहाल कर दिया और उसके बाद 13 अप्रैल 2011 को मालेगांव विस्फोट मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। एनआईए ने जब जांच की शुरुआत की तो उसने पाया कि कुछ सबूत तो सही हैं, लेकिन कुछ आरोप सही नहीं हैं। आरोपियों को अभिनव भारत नाम के संगठन से जुड़ा बताया गया था। एनआईए ने अपनी जांच में मकोका के आरोपों को हटा दिया और यह कहा कि एटीएस ने अपनी जांच में कुछ आरोपों को गढ़ा है और दबाव बनाकर कबूलनामा करवाया है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स हैंडल पर लिखा है कि आखिरकार सत्य की जीत होती है। मालेगांव विस्फोट प्रकरण में सभी आरोपियों का निर्दोष सिद्ध होना सत्यमेव जयते की सजीव उद्घोषणा है। यह निर्णय कांग्रेस के भारत विरोधी, न्याय विरोधी और सनातन विरोधी चरित्र को पुनः उजागर करता है। जिसने भगवा आतंकवाद जैसा मिथ्या शब्द गढ़कर करोड़ों सनातन आस्थावानों, साधु-संतों और राष्ट्रसेवकों की छवि को कलंकित करने का अपराध किया है। कांग्रेस को अपने अक्षम्य कुकृत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए।
आप को बता दें कि योगी अपनी पीड़ा के साथ-साथ उस राजनीति की ओर भी इशारा करते हैं। जो मालेगांव ब्लास्ट के बाद पर्दे के पीछे चली। यह सारा मामला देश की जांच एजेंसियों के राजनीतिक लाभ के लिए मनमाने दुरूपयोग की कलई भी खोलता है। (मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर) (हिफी)

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