लेखक की कलम

बिहार से पलायन रोकने का प्रयास

यह सच है कि बिहार में जब विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य की एक बड़ी समस्या को दूर करने का प्रयास किया है। इसलि नीतीश सरकार का यह चुनावी दांव भले ही कहा जाए लेकिन राज्य से लाखों की संख्या मंे मेहनत-मजदूरी करने जो युवा और महिलाएं बाहर जाते हैं, उनको राज्य में ही काम-धंधा मिल सकता हैं। नीतीश की सरकार ने गत 13 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में 30 महत्वपूर्ण एजेंडों पर मुहर लगाई है। इनमें उल्लेखनीय है राज्य में 5 नये औद्योगिक क्षेत्रों का गठन करना। इन औद्योगिक क्षेत्रों के लिए मधेपुरा, पटना के बख्तियारपुर, सीवान और सहरसा में स्थानों को चिह्नित किया गया है। सरकार ने जो जानकारी दी है, उसके अनुसार 812 करोड़ की लागत से 2627 एकड़ जमीन को विकसित किया जाएगा। यहां विभिन्न प्रकार के उद्योग लगेंगे और बड़ी संख्या मंे लोगों को रोजगार मिलेगा। बिहार से बाहर कमाने गये लोगों के मतदाता कार्ड को लेकर भी इन दिनों विवाद छिड़ा है। इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बिहार मंे रोजगार के लिए पलायन की संख्या काफी ज्यादा है और इसका एक मात्र समाधान राज्य मंे ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। सवाल उठाया जा सकता है कि नीतीश सरकार अब तक सोती क्यों रही लेकिन जब जागो, तभी सवेरा। इसलिए नीतीश सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए और चुनाव के बाद जिसकी भी सरकार बने, वो इस फैसले को ईमानदारी से कार्यान्वित करे। नीतीश कैबिनेट के अन्य निर्णय भी लागू होने चाहिए।
डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि मधेपुरा के ग्वालपाड़ा अंचल के विषवाड़ी, ग्वालपाड़ा और उदाकिशुनगंज में 548.87 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। इस पर 41 करोड़ 26 लाख रुपये की लागत आएगी। इसी तरह सहरसा के कहरा अंचल के वनगांव, देवनागोपाल, बलहर अराजी (भेलवा) मौजा में 88 करोड़ 1 लाख रुपये की लागत से 420.62 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा। सीवान के मैरवा अंचल के अटवा मौजा में 167.34 एकड़ जमीन को अधिग्रहण करने में 113 करोड़ 92 लाख रुपये की स्वीकृति दी गई है। बेगूसराय के कुसमौत मौजा में 991 एकड़ जमीन का अधिग्रहण 351 करोड़ 59 लाख रुपये तथा पटना के बख्तियापुर के सैदपुर, बहादुरपुर एवं ताराचंदपुर मौजा में 500 एकड़ जमीन का अधिग्रहण 219 करोड़ 34 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा। गोपालगंज के कटेया अंचल के बैरिया मौजा में 6.94 एकड़ में औद्योगिक क्षेत्र के निर्माण के लिए 2 करोड़ 60 लाख रुपये की लागत से जमीन अधिग्रहण किया जाएगा। इसके अलावा गया के गुरारू औद्योगिक क्षेत्र में 35 करोड़ 14 लाख रुपये की लागत से एक टेक्सटाइल मिल को स्थापित करने की अनुमति दी गई है। इससे 237 कामगारों को रोजगार मिलेगा।
राज्य के वीरपुर, मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, मुजफ्फरपुर और वाल्मिकीनगर में एयरपोर्ट स्थापित करने के लिए ओएलएस (ऑब्सटेक्ल लिमिटेसन सर्फेस) सर्वे कराया जाएगा। इसके लिए एयरपोर्ट ऑथिरिटी ऑफ इंडिया को 290 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। इसके अलावा गयाजी एयरपोर्ट के रनवे का विस्तार करने के लिए 18 एकड़ अतिरिक्त जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा और यहां कैटआई लाइट लगाए जाएंगे। इस पर 137 करोड़ 37 लाख रुपये की लागत आएगी। इस तरह के कई फैसले लिये गये हैं।
बिहार से पलायन एक गंभीर समस्या है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग रोजगार, शिक्षा और बेहतर जीवन की तलाश में राज्य से बाहर जा रहे हैं। मुख्य रूप से, बिहार में अवसरों की कमी, गरीबी, और बुनियादी ढांचे की कमी पलायन के प्रमुख कारण हैं। बिहार से रोजी-रोजगार, अच्छी शिक्षा की तलाश में छात्र-युवा बड़ी तादाद में बिहार से बाहर जाने को मजबूर हैं. पलायन के आंकड़ों की बात करें तो सरकार की ओर पिछले साल मॉनसून सत्र के दौरान सितंबर महीने में एक प्रश्न के जवाब में पलायन के आंकड़े दिए गए थे। भिखारी ठाकुर ने 113 साल पहले नाटक बिदेसिया में जैसा चित्र दिखाया था, आज भी वैसे ही हालात हैं। करोड़ों लोग चले गए, लेकिन सिर्फ लाखों की घरवापसी के लिए सरकार के पास जॉब प्लान है।
जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन पर विश्वास किया जाए तो बिहार के आधे से अधिक परिवार देश के भीतर या बाहर अधिक विकसित स्थानों पर पलायन के संपर्क में हैं और अधिकांश परिवार अपनी आजीविका के लिए धन प्रेषण पर निर्भर हैं।
आईआईपीएस द्वारा प्रायोजित
अध्ययन परियोजना ‘मध्य गंगा मैदान से पलायन के कारण और परिणाम’ की रिपोर्ट भी चैंकाती है।
सर्वेक्षण में 36 गांवों और 2,270 परिवारों को शामिल किया गया, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र से पलायन पुरुषों द्वारा किया जाता है, बिना परिवार के। सारण, मुंगेर, दरभंगा, कोसी, तिरहुत और पूर्णिया के पारंपरिक प्रवास क्षेत्रों में सबसे अधिक पलायन होता है। कोसी, तिरहुत और पूर्णिया डिवीजनों में मौसमी पलायन सबसे अधिक है। अन्य जाति समूहों से पलायन सबसे अधिक है, उसके बाद ओबीसी, एससी और एसटी हैं। मध्य गंगा का मैदान पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के 64 जिलों को कवर करता है। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र से पलायन 19वीं सदी की पहली तिमाही से शुरू हुआ है। लगातार व्यापक गरीबी और विकास के अभाव के कारण, इस क्षेत्र से पलायन आजादी के बाद भी जारी रहा और मुख्य रूप से देश के विकसित पश्चिमी राज्यों तक ही सीमित रहा। हाल ही में, इस क्षेत्र ने खाड़ी गंतव्यों की ओर अंतर्राष्ट्रीय प्रवास की प्रवृत्ति में भी उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है।
अध्ययन में कहा गया है कि पलायन और गरीबी के बीच दो सदी पुराने संबंध की निरंतरता ने मध्य गंगा के मैदान में प्रवास की संस्कृति को जन्म दिया है। यह देखा गया है कि बिहार में भूमिहीन समूह और एकल परिवारों के लिए पलायन सबसे अधिक है। प्रवासियों की औसत आयु 32 वर्ष है। अस्सी प्रतिशत प्रवासी भूमिहीन हैं या उनके पास एक एकड़ से भी कम जमीन है और उनमें से 85 फीसद ने दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की है। बिहार में मौसमी प्रवास अधिक प्रचलित है, क्योंकि 90 फीसद मौसमी प्रवासी बिहार से हैं। बिहार से 31 फीसद पंजाब चले गए, जबकि यूपी से 27 फीसद महाराष्ट्र चले गए। अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 46 फीसद मौसमी प्रवासी महीने के अंत में नकदी लाते हैं और 48 फीसद बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से काम करते हैं। अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ है कि 75 फीसद प्रवासियों ने अपने लौटने के बाद अपने परिवार की आय, पारिवारिक बंधन और सामाजिक स्थिति में सुधार महसूस किया। अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, उनमें से 25 फीसद फिर से प्रवास करना चाहते हैं, जबकि दो-तिहाई अपने बच्चों को रोजगार के लिए प्रवास करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
नब्बे प्रतिशत प्रवासी निजी कारखाने में या आकस्मिक श्रमिक के रूप में काम करते हैं। बिहार में एक प्रवासी द्वारा औसत प्रेषण 26,020 रुपये और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 38,061 रुपये प्रति वर्ष है। जहाँ तक प्रवासियों के स्थानीय घरों में महिलाओं की स्थिति का सवाल है, 47 फीसद महिलाएँ साक्षर हैं और उनमें से 22 फीसद मजदूरी पर काम करती हैं। बिहार में पीछे छूटी हुई ज्यादातर महिलाएँ एकल परिवार में रहती हैं। पीछे छूटी हुई तीन-चैथाई महिलाएँ रोजाना अपने पति से मोबाइल पर बात करती हैं। केवल 29 फीसद महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों की सदस्य हैं और 80 फीसद महिलाओं के पास अपना बैंक खाता है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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