उपासना व पर्व से भरा अगस्त

ऐसा माना जाता है कि जो लोग लक्ष्मी के लिये उपवास रखते हैं और पूजा पाठ करते हैं उनसे देवी मां खुश होती हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है। मासिक दुर्गा अष्टमी का यह पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
अगस्त का महीना उपासना व पर्व त्योहार से भरा है। अगस्त में कई हिन्दू त्योहार मनाये जाते हैं जैसे जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, हरतालिका तीज, पिठौरा अमावस्या, गणेश चतुर्थी, कजरी
तीज, ऋषि पंचमी। इन सभी त्योहारों से यह महीना सजा रहता है। अगस्त के पहले दिन ही मासिक दुर्गाष्टमी थी।
मासिक दुर्गाष्टमी का सनातन धर्म में बड़ा धार्मिक महत्व है। यह तिथि बडी ही पावन मानी जाता है। इस दिन जगत की जननी मां दुर्गा जी की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग मां दुर्गा के लिये उपवास रखते हैं और पूजा पाठ करते हैं उनसे देवी मां खुश होती हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है। मासिक दुर्गा अष्टमी का यह पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर शुभ योग समेत कई मंगलकारी संयोग बने थे। यह योग देवी मां की भक्ति करने में बहुत अच्छा माना जाता है। लोगों के जीवन में सुख और शांति आती है।
कहते हैं कि देवी मां सबके दुख हर लेती हैं जो लोग इनकी सच्चे दिल से पूजा करते हैं। इसके बाद चैथा सावन का सोमवार जो 4 अगस्त को था और उसी दिन भगवान शिव की विशेष उपासना हुई।
यह सावन का अंतिम सोमवार था। इस समय कई मंगलकारी योग बने थे। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है और महादेव का विशेष चीजों से अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु इस दिन भगवान शिव का व्रत रखकर जलाभिषेक करते हैं और शिवलिंग पर बेल पत्र, भस्म, गंगाजल, दूध और शहद चढ़ाकर पूजा करते हैं।
इस दिन शिवालयों में रूद्राभिषेक, शिव चालीसा और महामृत्युंजय जाप किये गये। इसके बाद 5 अगस्त को चैथा मंगला गौरी व्रत, पुत्रदा एकादशी था यानि पूर देश में श्रद्धा और आस्था के साथ पुत्रदा एकादशी मनाई गयी। विशेष रूप से पुत्र की इच्छा रखने वाले इस व्रत को अत्यंत शुभ मानते हैं। 6 अगस्त को बुध प्रदोष व्रत था वैसे तो प्रदोष व्रत महीने में दो बार आता है लेकिन सावन के महीने में आने वाला प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। प्रदोष व्रत में शिव-पार्वती जी की पूजा की जाती है।
शिवलिंग पर बेलपत्र, फूल, भांग, धतूरा और फल चढ़ाये जाते हैं। इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा पढ़ी जाती है। शिव चालीसा पढ़ी जाती है और शिव जी की आरती की जाती है। इसके बाद 8 अगस्त को वर लक्ष्मी व्रत, ह्यग्रीव जयंती है। यह दिन सावन (श्रावण) मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि में आता है। हयग्रीव जयंती भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतसार की जयंती है जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हयग्रीव की पूजा ज्ञान, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिये की जाती है। दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक में बड़े श्रद्धा से मनाया जाता है।
इसे वेदों की रक्षा और ज्ञान की विजय के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है। हय दिन साधकों व विद्यार्थियों के लिये विशेष दिन माना जाता है और आध्यामिकता में उन्नति का प्रतीक माना गया है।
9 अगस्त को राखी का त्योहार है एवं गायत्री जयंती, नारली पूर्णिमा, संस्कृत दिवस, सावन पूर्णिमा व्रत है। रक्षाबंधन हर साल सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधती हैं वहीं, भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं। साथ ही सुख और दुःख में साथ देने का वचन देते हैं।
यह पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। 10 अगस्त से भाद्रपद प्रारंभ है यानि कि भादों माह की शुरुआत 10 अगस्त से होगी और इसका समापन 7 सितंबर 2025 को होगा। यह चातुर्मास का दूसरा महीना है जो गणेश जी को और श्रीकृष्ण जी को समर्पित है। इस माह में कई महत्वपूर्ण व्रत त्योहार आते हैं जैसे हरतालिका तीज, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि। यह हिन्दू पंचाग का छठा महीना है जो प्रायः अगस्त और सितंबर के बीच आता है।
भाद्र पद माह वर्षा ऋतु के अंतिम चरण का प्रतीक है। भाद्रपद का नाम ‘भाद्र’ नक्षत्र के आधार
पर रखा गया है जो इस महीने की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा के साथ
रहता है। संस्कृत में भद्र का अर्थ है शुभ, मंगलमय और कल्याणकारी।
यही कारण है कि इस माह में कल्याणकारी कार्य और पुण्यदायी अनुष्ठानों के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। गायत्री जापम भी 10 अगस्त को है। यह एक वैदिक और आध्यात्मिक पर्व है जो श्रावणी उपकर्म (जनेऊ संस्कार) के अगले दिन मनाया जाता है।
यह दिन ब्राह्मणों और यज्ञोपवीतधारी ब्रह्मचारी छात्रों के लिये विशेष रूप से पवित्र माना गया है। इस दिन गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। 12 अगस्त को कजरी तीज है। यह पर्व मंगलवार को मनाया जायेगा। यह दिन हर साल भाद्रपद माह की तृतीया तिथि को आता है। यह दिन सुहागनों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है खासकर उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में इस दिन का बड़ा महत्व है। इस दिन नीम की पूजा करने से नकारात्मकता दूर होती है और रोग-शोक से रक्षा मिलती है। कजरी तीज, हरियाली तीज के 15 दिन बाद आती है। कजरी तीज व्रत विशेष रूप से पति की लंबी उम्र और संतान सुख के लिये रखा जाता है। (चक्षु स्वामी-हिफी फीचर)