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गठिया की रोकथाम के लिए जागरुकता जरूरी : जिलाधिकारी

लखनऊ। अर्थराइटिस और रूमेटिज्म इंटरनेशनल (एआरआई) ने विश्व अर्थराइटिस दिवस की शुरुआत की है। सबसे पहला विश्व अर्थराइटिस दिवस अक्टूबर 12 के दिन साल 1996 में मनाया गया था। तब से हर वर्ष इसी तारीख पर अर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ एक जुट होकर रूमेटॉयड व मस्कुलो स्केलेटल बीमारियों हेतु जागरूकता फैलाने का काम करती हैं। साथ ही इन बीमारियों के इलाज में आने वाली परेशानियों को दूर करने में सहायता करती हैं। इसी के तहत अर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ ने आज यानी विश्व गठिया दिवस के अवसर पर साइक्लोथान, वालकथन, जुंबा और योग कार्यक्रमों का आयोजन की। कार्यक्रम की शुरुआत जिलाधिकारी सूर्य पाल गंगवार ने की। इस अवसर पर जिलाधिकारी सूर्य पाल गंगवार ने कहा इस तरह के जागरुकता वाले कार्यक्रम होते रहने चाहिए। जिससे लोग गठिया जैसी बीमारी के प्रति समय रहते जागरुक हो सकें और जीवनशैली व खानपान में सुधार ला सकें। उन्होंने यह भी कहा कि जागरुकता से गठिया जैसी बीमारी की भी रोकथाम हो सकती है या फिर इसको नियंत्रित किया जा सकता है कार्यक्रम में बढ़चढ़कर लोगों ने हिस्सा लिया। डॉ. संदीप कपूर ने बताया की अर्थराइटिस जैसी समस्या के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता जिसकी वजह से मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पाता। उन्होंने बताया की इस दिवस को मनाए का मुख्य उद्देश्य लोगों में अर्थराइटिस की समझ को बढ़ाना है। इस से जुड़े गलत बातों को दूर करना और सही जानकारी साझा करना है। डाक्टर संदीप गर्ग ने बताया की सभी प्रकार की अर्थराइटिस में रूमोटॉयड अर्थराइटिस और ओस्टियो अर्थराइटिस सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं। ओस्टियो अर्थराइटिस ज्वाइंट के कार्टिलेज के खराब होने पर होती है जिसकी वजह से सूजन हो जाती है। वहीं रूमोटाइड अर्थराइटिस एक प्रकार की ऑटो वे इम्यून बीमारी है। इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम जोड़ों के मेंब्रन पर हमला करता है और अंततः हड्डी और कार्टिलेज का नुकसान करता है। अर्थराइटिस एक दर्द देने वाली लेकिन रोकी जा सकने वाली बीमारी है। इसमें हाथ, नसें, आंखें, त्वचा, फेफड़े और दिल प्रभावित होते हैं।

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