बाबा शिव ने उमा को यहां सुनाई थी अमरकथा

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुसीदास ने उल्लेख किया है कि भगवान शिव ने रामजी के चरित्र को अपने मानस मंे सर्वप्रथम रचा। शुभ सम पर माता पार्वती को उसे सुनाया। भगवान शिव ने माता पार्वती को रामकथा कैलाश पर्वत पर सुनाई थी तो समुद्र तल से लगभग 13 हजार फिट ऊपर कश्मीर की एक दिव्य गुफा में भगवान शंकर ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। इसी गुफा मंे बर्फ का प्राकृतिक शिव लिंग बनता है जिसके दर्शन करने को लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसी महीने 3 जुलाई से पवित्र अमरनाथ यात्रा का प्रारम्भ हुई है। इसे आस्था की परीक्षा माना जाता है।
भारत में कई तीर्थस्थान हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर की बर्फीली वादियों में स्थित अमरनाथ गुफा का अपना एक अलग ही महत्व है। यह वह जगह है जहां भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरता का रहस्य बताया था। इस वजह से इसे अमरनाथ कहा गया। यहां हर साल सावन के महीने में लाखों लोग पैदल यात्रा करके पहुंचते हैं और बर्फ से बने शिवलिंग के दर्शन करते हैं। इस शिवलिंग को ही लोग बाबा बर्फानी कहते हैं। अमरनाथ गुफा समुद्र तल से करीब 12,756 फीट ऊपर स्थित है। यह जगह ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है, इसलिए वहां पहुंचना आसान नहीं होता। यहां तक जाने के लिए या तो पहलगाम से यात्रा की जाती है या बालटाल से। रास्ते में ठंडी हवाएं, ऊंचे पहाड़ और बर्फ से ढके रास्ते होते हैं, लेकिन श्रद्धालु बिना रुके यात्रा करते हैं। इस गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनता है, जो खुद-ब-खुद आकार लेता है। यह शिवलिंग कोई इंसान नहीं बनाता, बल्कि ठंडी हवा और पानी की बूंदों से बर्फ जमकर शिवलिंग का रूप ले लेती है। हैरानी की बात ये है कि ये शिवलिंग चंद्रमा की कलाओं के साथ बढ़ता और घटता है। पूर्णिमा को इसका आकार सबसे बड़ा होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि वह अमर क्यों हैं। तब भगवान शिव उन्हें यह रहस्य बताने के लिए एक शांत और एकांत जगह की तलाश में निकले। उन्होंने अपने वाहन नंदी, नाग, चंद्रमा और सभी गणों को अलग-अलग जगह छोड़ दिया और पार्वती को लेकर अमरनाथ गुफा पहुंचे। वहां उन्होंने माता को अमरता का रहस्य सुनाया। यह कथा ही अमर कथा कहलाती है।
अमरनाथ यात्रा को सिर्फ दर्शन की परंपरा नहीं, बल्कि आस्था की परीक्षा भी माना जाता है। कठिन रास्ते, ऊंचाई और मौसम की चुनौती के बावजूद हर साल हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी कहा गया है। यात्रा आमतौर पर जुलाई-अगस्त के बीच होती है। सरकार और सेना दोनों इस यात्रा के लिए खास इंतजाम करते हैं। मेडिकल कैंप, भोजन, टेंट और सुरक्षा के पूरे इंतजाम होते हैं। इसके बावजूद मौसम कभी भी करवट ले सकता है, इसलिए यात्रा पर जाने से पहले रजिस्ट्रेशन और स्वास्थ्य जांच कराना जरूरी होता है। भगवान शिव का नाम लेते ही हमारे मन में एक शांत, गंभीर और शक्ति से भरपूर छवि बनती है। शिव की पूजा अलग-अलग रूपों में की जाती है, जिनमें से दो सबसे खास रूप हैं शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग। बहुत से लोग इन दोनों को एक जैसा समझते हैं, लेकिन असल में इनके बीच बड़ा फर्क होता है। शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। यह इंसानों द्वारा बनाया गया होता है या कभी-कभी खुद ही किसी स्थान पर प्रकट हो जाता है। इसे मंदिरों में स्थापित किया जाता है और रोजाना पूजा की जाती है। दूसरी ओर, ज्योतिर्लिंग वह स्थान होते हैं जहां भगवान शिव ने स्वयं को अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रकट किया था, ये खास स्थल माने जाते हैं और यहां दर्शन करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
अमरनाथ यात्रा आस्था, तपस्या और अद्भुत चमत्कारों से भरी होती है। हर साल लाखों लोग कठिन पहाड़ी रास्तों को पार करके जम्मू-कश्मीर की बर्फीली घाटियों में स्थित बाबा बर्फानी के पवित्र गुफा मंदिर तक पहुंचते हैं। माना जाता है कि यहां भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं। भक्त यहां न सिर्फ हिमलिंग (शिवलिंग) के दर्शन करने आते हैं, बल्कि कई लोग उस दिव्य क्षण की भी प्रतीक्षा करते हैं जब उन्हें अमर पक्षी यानी दो कबूतरों का जोड़ा दिखाई दे जाए। यह कोई आम कबूतर नहीं हैं, बल्कि पुरानी मान्यताओं के अनुसार ये अमर हैं। कहते हैं इन कबूतरों को वही देख सकता है जिसके ऊपर बाबा बर्फानी की विशेष कृपा होती है। इस यात्रा के दौरान भक्त जो भक्ति और विश्वास लेकर गुफा तक पहुंचते हैं, वह उन्हें जीवनभर के लिए अविस्मरणीय अनुभव दे जाता है।
जब भगवान शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे, उसी समय पास में दो कबूतर छिपकर वह कथा सुन रहे थे। कथा समाप्त होने के बाद भगवान शिव को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने क्रोधित होकर उन्हें दंड देने की बजाय अमर होने का आशीर्वाद दे दिया। तभी से ऐसा माना जाता है कि ये कबूतर अमर हो गए और हर साल अमरनाथ यात्रा के समय गुफा में दिखाई देते हैं।
अमरनाथ तीर्थ यात्रियों ने यह दावा किया है कि उन्होंने गुफा के अंदर दो सफेद कबूतरों को देखा है। सोचिए, इतनी ठंडी जगह, जहां ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है, वहां पर पक्षियों का जीवित रहना लगभग नामुमकिन है। फिर भी ये कबूतर हर साल एक निश्चित समय पर दिखाई देते हैं। कई बार सुरक्षा बलों ने भी इन कबूतरों के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए हैं, जिससे यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है। यह माना जाता है कि अमर पक्षियों का दर्शन हर किसी को नहीं होता। कहते हैं कि जिन्हें बाबा बर्फानी विशेष कृपा देते हैं, वही इन पक्षियों को देख पाते हैं। यात्रा के दौरान कई भक्त पूर्ण निष्ठा और सच्चे मन से बाबा के दर्शन करने आते हैं। ऐसे ही कुछ भक्तों को गुफा में बर्फ से बने शिवलिंग के पास दो सफेद कबूतर बैठे दिखाई देते हैं। कई लोग यह भी बताते हैं कि जैसे ही उन्होंने उन कबूतरों को देखा, वे पल भर में वहां से अदृश्य हो गए। इस चमत्कार को देखने वाले खुद को अत्यंत सौभाग्यशाली मानते हैं। (हिफी)