बांगलादेश को सबक देने की जरूरत है!

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
बांगलादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था। आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं।
आपको पता हो कि बांगलादेश भारत की मदद से बना था। अन्यथा 1971 के पहले पाकिस्तान के हुक्मरान अपने ही देश के इस पूर्वी इलाके के सहधर्मियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते थे। उनकी स्थिति दोयम दरजे के पाकिस्तानी नागरिकों जैसी थी। वे खुलकर खुद को पाकिस्तानी नहीं कह सकते थे। शेख मुजीबुर्रहमान ने इसी हालत के चलते विद्रोह किया था और भारत की मदद से उनका विद्रोह सफल रहा था।
मोहम्मद यूनुस में राजनीतिक समझ का अभाव है। इस तरह वहां दो तरह के तत्व विकसित हुए। अधिकांश बंगाली मुसलमानों की मित्रता भारत के साथ रही और पाकिस्तान परस्त गैर बंगाली मुसलमानों के मन में भारत के प्रति शत्रुता का भाव रहा। भारत से शत्रुता इसलिए हिंदुओं से भी शत्रुता। बांगलादेश में जब भी सत्ता शेख और उनकी हत्या के बाद में उनके परिवार के पास रही, वहां शांति रही। हिंदुओं के साथ कभी कोई हिंसा नहीं हुई किंतु इस्लामिक अतिवादी तत्व भी वहां कतई कमजोर नहीं हैं। वे काफी उग्र हैं और अक्सर हिंसा करते रहते हैं। गत 5 अगस्त से वहां हिंसा का निरंतर तांडव चल रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को भागकर भारत आना पड़ा और सत्ता अतिवादी आंदोलनकारियों के पास चली गई, तब से हिंसा का दौर वहां चालू है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस उग्रवादियों को काबू नहीं कर पा रहे। यूं भी वे कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। उनके पास सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी नहीं।
इस वर्ष 5 अगस्त को बांगलादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद वहां हिन्दुओं तथा अन्य अल्पसंख्यकों को मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन लगातार निशाना बना रहे हैं। वहां हिन्दुओं को सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र देने को मजबूर करने के अलावा नौकरी से निकाला भी जा रहा है और ईशनिंदा के आरोप लगाकर उनके विरुद्ध केस बनाए जा रहे हैं।
इतना ही नहीं, इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं से बांगलादेश के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए कहा जा रहा है और इसके लिए सभी मंदिरों पर भारत विरोधी बैनर लगाने की मांग भी की गई है। अभी तक वहां साम्प्रदायिक हिंसा की 2000 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 1000 के लगभग हिन्दू मारे जा चुके हैं। विश्वविख्यात धार्मिक संस्था इस्कॉन के बांगलादेश स्थित 2 प्रमुख धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार करके उनके विरुद्ध देशद्रोह का मामला दर्ज करने के साथ-साथ इस्कॉन के 17 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं।
इसी बीच वहां की अंतरिम सरकार की पाकिस्तान से नजदीकियां भी बढ़ने लगी हैं। 1971 में बांगलादेश बनने के बाद इस वर्ष नवम्बर, 2024 में पहली बार पाकिस्तान का एक मालवाहक जहाज कराची से चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा।
यही नहीं, अब तो पाकिस्तान विरोधी आंदोलन के जन्म स्थान ढाका यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी छात्रों को भी प्रवेश की अनुमति दे दी गई है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान सरकार ने भी बांगलादेश के नागरिकों के लिए वीजा प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान बना दी है।
शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद पाकिस्तान और बांगलादेश की निकटता कई स्तरों पर बढ़ रही है। वहां तख्तापलट से खुश पाकिस्तान के एक कूटनयिक अब्दुल बासित के अनुसार, शेख हसीना का सत्ता से बाहर होना पाकिस्तान के लिए अच्छा मौका है।
अब तो वहां इस्लामिक कानून की मांग तक उठने लगी है। बंगलादेश अपनी स्थापना के बाद 2011 में शेख हसीना की सरकार द्वारा अपनाए गए धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भी तिलांजलि देने जा रहा है तथा अटार्नी जनरल मो। असदुज्जमां ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने व शेख मुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा समाप्त करने की मांग भी की है। अभी हाल ही में जहां छात्रों के दबाव में बांगलादेश के राष्ट्रपति भवन से शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर हटा दी गई है, वहीं उनकी मूर्ति को भी गिराने के अलावा अब बांगलादेश में करंसी नोटों से शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर हटाने की तैयारी की जा रही है। बंगलादेश सेंट्रल बैंक 20, 100, 500 और 1000 टका (रुपए) के नए नोट छपवा रहा है जिनमें इसी वर्ष जुलाई के हिंसक प्रदर्शनों की तस्वीरें होंगी।
हालांकि बांगलादेश सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने सत्ता संभालते ही 90 दिनों के भीतर देश में चुनाव करवाने की बात कही थी परंतु अब उन्होंने कहा है कि हालात सामान्य होने के बाद ही चुनाव करवाए जाएंगे।
बांगलादेश में हिन्दुओं की हत्याओं को भी उन्होंने प्रोपेगेंडा बताया है जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। वहां हिंसा की नवीनतम घटना में 3 दिसम्बर को सुमनगंज जिले में कट्टरपंथियों की भीड़ ने 100 से अधिक हिन्दुओं के मकानों में तोड़-फोड़ और लूटपाट की, पूजा स्थल तोड़ दिए और उसी दिन रात को वहां से 200 हिन्दू परिवार पलायन कर चले गए। इस बीच जहां बांगलादेश की अदालत ने शेख हसीना के किसी भी भाषण के प्रकाशन और प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं विश्व भर में बंगलादेश के हिन्दुओं और अल्पसंख्यकों पर हमलों की आलोचना की जा रही है।
कुल मिलाकर बांगलादेश में हिन्दू समुदाय के लोगों पर हमले, हत्याएं, धार्मिक स्थानों पर तोड़-फोड़ तथा अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध अन्य हिंसक घटनाओं को लेकर विश्व समुदाय द्वारा गंभीर चिंता व्यक्त की जा रही है और बांगलादेश सरकार से यह हिंसा रोकने के लिए ठोस कदम उठाने को कहा है। हालांकि भारत ने ही बांगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजादी दिलवाई परंतु तख्तापलट के कुछ ही महीनों के भीतर भारत के साथ उसके सम्बन्ध निचले स्तर पर आ गए हैं और बांगलादेश की अंतरिम सरकार ने कोलकाता तथा अगरतला में स्थित अपने मिशन कार्यालयों के प्रमुखों को वापस बुला लिया है। जरूरत इस बात की है कि भारत सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा पर गंभीरता से सख्त कदम उठाए बांगलादेश को सबक सिखाने की जरूरत है। (हिफी)