भाई-बहन के अटूट रिश्ते का पर्व भाईदूज

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
पुरुष प्रधान समाज मंे आज भी कई लोग बेटियों को बेटों की अपेक्षा कम महत्व देते हैं। इसीलिए हमारे देश मंे कुछ पर्व ऐसे मनाए जाते हैं जब भाई और बहन को बराकर का दायित्व निभाना पड़ता है। प्रकाश पर्व दीपावली के तीसरे दिन भाईदूज का पर्व यही संदेश देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर टीका लगाकर उसके दीर्घायु की कामना करती है तो भाई अपनी बहन को हरसंभव मदद देने के प्रतीक रूप मंे कुछ न कुछ भेंट अवश्य देता है। आमतौर पर यही देखा गया है कि माता-पिता के न रहने पर बेटियों को उनके मायके मंे यथोचित स्नेह नहीं मिल पाता। भाईदूज जैसे त्योहार भाइयों को यादि दिलाते हैं कि उनकी बहन ने टीका लगाया था तो उनकी भी बहन के प्रति जिम्मेदारी है। इस बार तिथियों के हिसाब से दीपावली जहां 31 अक्टूबर को ही मनायी जाएगी, वहीं भाईदूज रविवार 3 नवम्बर को मनायी जाएगी। पंजांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष का द्वितीया शनिवार 2 नवम्बर को रात 8 बजकर 21 मिनट से प्रारम्भ होगी और रविवार 3 नवम्बर की शाम 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। इस प्रकार उदयातिथि के
हिसाब से 3 नवम्बर को ही भाईदूज होगी।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाईदूज अथवा यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन यमराज की बहन यमी अर्थात यमुना ने अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराया और यमराज ने खुश होकर अपनी बहन से वरदान मांगने को कहा था। यमुना ने यही वरदान मांगा कि आज के दिन जो बहन अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराएगी उसकी अकाल मृत्यु न हो। यमराज ने अपनी बहन को यह वरदान दे दिया। उसी समय से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को बहने अपने भाई को टीका लगाकर सुस्वाद भोजन कराती है और भाई के दीर्घायु की कामना करती है। भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इसके अनेक नाम मिलते हैं। गुजरात में भाई बीज, बंगाल मंे भाईफोटा, पंजाब में टिक्का, महाराष्ट्र में भाऊ बीज नाम से यह प्रसिद्ध है। नेपाल में इसे टीका नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां बहनें अपने भाई की समृद्धि शांति और सुरक्षा के लिये यम के शीश का प्रतीक अखरोट द्वार के चौखट पर तोड़कर बाहर फेंकती हैं। यह अखरोट हिरण्यकश्यप के सिर का प्रतीक है। लोक मान्यता में चौखट पर वध करने की परम्परा विद्यमान है। इस पर्व पर बहनें उपवास व्रत रखकर अपने-अपने आंगन में भाईदूज का माँअणे बनाती हैं। इस त्योहार मंे ऋषि मार्कण्डेय, यमुना तथा यमराज का अनुपम अंकन गरिमापूर्ण है। अपने भ्राताओं के सुखमय जीवन, समृद्धि, दीर्घायु आदि की मंगल कामना होती है। पूजा के बाद पारम्परिक कथाओं की लोक मान्यताएं प्राप्त होती हैं। ब्रह्मपुराण, स्कन्द पुराण में यह पर्व यम द्वितीया नाम से प्रसिद्ध है। दिनकर तनया यमुना द्वारा अपने भाई यम की दीर्घायु के लिये विधाता से विनम्र प्रार्थना इसी पर्व पर की गयी थी। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार यम देवता पर सारे विश्व के शासन का भार रहता था। आरम्भ में यम देवता इससे प्रसन्न थे। परन्तु बाद में वे ऊबते चले गये। इसी मध्य दीपावली का महापर्व आ गया। छोटी बहन यमुना ने अपने ज्येष्ठ भ्राता यमदेव को अपने घर पर टीका लगवाने का निमंत्रण दिया। यम के उपस्थित होने पर यमुना ने प्रसन्न भाव से भरपूर सम्मान प्रदान किया। इसी समय अपनी बहन के विमल भाव को देखकर यमदेव ने वरदान दिया कि जो भी भ्राता आज के दिन यमुना आवाह्न कर अपनी बहन के कर कमलों से निर्मित भोजन करेगा, वह कभी नरकगामी नहीं होगा। इसीलिए यमुना स्नान का महत्व बढ़ गया। प्रीति के पर्व भैयादूज के पावन दिन बहन और भ्राता आकर यमुना में स्नान करते हैं। मथुरा पहुंचकर पुण्य पाते हैं। लोक श्रुति के अनुसार इस पर्व पर यमुना के किनारे बहन के हाथों निर्मित जो भाई भोजन करता है। उनका स्वास्थ्य, बल बढ़ता है साथ ही आयु की वृद्धि भी होती है। यमुना तट पर इस परम्परा के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। पाप-पुण्य की सूची बनाने वाले चित्रगुप्त तथा पापों का कठोर दण्ड प्रदान करने वाले यमदेव के साथ यमदूतों की अर्चना की जाती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है।
इस पर्व की पारम्परिक कथाओं में एक प्रचलित कथा इस कथानक मंे प्राप्त होती है। भातृ द्वितीया का पर्व आने वाला था। एक परिवार के साले और बहनोई परस्पर शत्रुता का भाव रखते थे। बहन ससुराल मंे थी। बहनोई ने अपने साले को निमंत्रण दिया कि यदि तुम्हें अपनी बहन से आत्मीयता हो तो भाईदूज पर टीका लगवाने न आना। तुम्हारी प्रतीक्षा मैं तलवार के साथ करूंगा।
भाई बहन से टीका लगवाने चल पड़ा। आने पर देखा कि बहन का पति तलवार लेकर प्रतीक्षा मंे खड़ा था। भाई ने कुत्ते का रूप धारण करके घर में पिछले द्वार से प्रवेश किया। बहन घर में माँअणे निर्मित करने के लिये हल्दी, चावल पीसती हुई सिसक रही थी। अपने पति के क्रोध को सोचकर वह चिंतित थी। अचानक कुत्ते को देख उसने बट्टा फेंक कर मारना चाहा। हाथ की रोली भी बट्टे में लगी थी। रोली भ्राता के भाल पर लग गयी। वह मनुष्य रूप मंे हो गया। बहन को आश्चर्य तो हुआ पर उसने विधि-विधान से टीका लगाया। भाई पुनः कुत्ते का शरीर धारण कर बाहर चला गया। भाई ने बहन के पति का चरण स्पर्श किया। भाई के मस्तक पर टीका देखकर टीका लगवाने का उपाय पूछा। समाचार सुनकर बहन के पति को दया आ गयी उसने कहा कोई बहन न होने के कारण मैं यह पीड़ा अनुभव नहीं कर पाया। उसने पत्नी के भाई से क्षमा मांगकर इस पर्व की महिमा स्वीकार किया। इससे बहन प्रसन्न हुई। सम्मानित कर बहन को आशीर्वचन दिया। अनुपम आत्मीय भाव का प्राचीनकाल का पर्व कपटरहित मधुर स्नेह का पावन पर्व है। (हिफी)