भातखंडे की संगीत विरासत

भारत में गुरु-शिष्य परम्परा की सुदीर्घ और विलक्षण विरासत रही है। इसका क्षेत्र अध्यात्म तक सीमित नहीं था। बल्कि संगीत को भी साधना के रूप में मान्यता मिली। यह परम्परा आज भी चल रही है। लखनऊ का भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय संगीत शिक्षा प्रदान करने के साथ विरासत को भी सहेजे हुए है। वैसे भी लखनऊ कथक घराना विश्व प्रसिद्ध है।
भातखंडे संगीत संस्थान सम विश्वविद्यालय को योगी आदित्यनाथ सरकार ने भातखंडे राज्य संस्कृति विश्वविद्यालय की मान्यता प्रदान की थी। इससे यहां संस्कृत, संस्कृति के साथ लोक कलाओं,लोक नृत्य पर शोध और पाठ्यक्रम संचालित होना सम्भव हुआ था। पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद इसका कार्यक्षेत्र संपूर्ण उत्तर प्रदेश हो गया है। अभी तक भारतेंदु नाट्य अकादमी ड्रामा में डिप्लोमा प्रमाणपत्र देती थी। अब अकादमी की संस्कृति विश्वविद्यालय से संबद्धता होने पर ड्रामा में डिग्री भी मिलने लगी है। भातखंडे की स्थापना पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने राय उमानाथ बली, राय राजेश्वर बली, लखनऊ के संगीत संरक्षकों एंव संगीत प्रेमियों के सहयोग से 1926 में की थी। यहां से लखनऊ में संगीत की संस्थाबद्ध शिक्षा की नींव पड़ी। इसके बाद 1966 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संस्था को अपने नियंत्रण में लिया और राज्य सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार ने भातखंडे संगीत संस्थान को अक्टूबर 2000 को सम विश्वविद्यालय घोषित कर दिया था। भारतीय शास्त्रीय संगीत में लखनऊ घराने का विशेष महत्व है। कथक सम्राट पद्मविभूषण विरजू महाराज ने इसे बुलंदियों पर पहुंचाया।
बिरजू महाराज ने कथक नृत्य में नए रंग जोड़े। इन्होंने पन्द्रह सौ ठुमरियों का कम्पोजिशन किया। लखनऊ घराना कथक नृत्य शैली में छोटे टुकड़ों का महत्व होता है। नृत्य के बोलों के अतिरिक्त पखावज की परने और परिमलु के बोल भी नृत्य मंे शामिल हैं। प. जसराज अनेक बार लखनऊ आये थे। उनके गायन से प्रभावित होने वाले यहां भी बहुत लोग है। कुछ वर्ष पहले लखनऊ के भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय आये थे। इससे जुड़ा एक रोचक प्रसंग है। उनको यहां तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी के साथ दीक्षांत समारोह में शामिल होना था। राज्यपाल को इसी कार्यक्रम में रहना था लेकिन जब उनको पता चला कि दीक्षांत समारोह के बाद पंडित जसराज का गायन होना है,तब उन्होंने अपना कार्यक्रम बदल दिया। उन्होंने समारोह के इस दूसरे चरण में भी सहभागी होने का निर्णय किया। गायन की तैयारी हो चुकी थी। बीएल जोशी उठे और पंडित जसराज के पास गए। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे। कुछ समय के लिए गायन रोक दिया गया। बाद में पता चला कि राज्यपाल उनसे कुछ देर गायन रोकने का आग्रह करने गए थे क्योंकि उन्होंने उनका गायन सुनने के लिए अपनी पत्नी को बुलाने हेतु गाड़ी भेज दी थी। वह पंडित जी के गायन की मुरीद थी। उनके भजनों को हमेशा सुनती थीं। राजभवन और भातखण्डे के बीच अधिक दूरी भी नहीं थी। वह शीघ्र ही आ गईं। क्योकि सूचना मिलने के बाद वह पहले ही राजभवन पोर्टिको में आ गई थीं। इसके बाद घण्टों पंडित जी का गायन चला। उपस्थित श्रोता भाव विभोर होकर सुनते रहे। उस समारोह में पंडित जी के ओजस्वी गायन में राग मधुवंती की मधुरिम स्वर लहरियों से लखनऊ के मध्य सफेद बारादरी का पूरा वातावरण गूंज उठा था। पुनः भीमपलासी राग में ऊँ नमों भगवते वासुदेवाय से मंत्रमुग्ध वातावरण जैसे भक्तिमय देवालय स्वरूप हो गया। भातखण्डे संगीत संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी लखनऊ के इसी प्रथम दीक्षांत समारोह 2012 उनकी गरिमामयी उपस्थिति यादगार बन गयी थी। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने संगीत के क्षेत्र में गुरु और शिष्य की परंपरा को कायम रखने से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गुरुजनों द्वारा अपना ज्ञान शिष्यों को प्रदान करने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। जिससे गुरु शिष्य की समृद्ध परंपरा कायम रहे। उन्होंने विद्यार्थियों को गुरुजनों का मान रखना चाहिए। देश के विकास में संस्कृति का योगदान को महत्वपूर्ण है। भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन, समृद्ध एवं सर्व समावेशी संस्कृति है।
राज्यपाल ने भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय, लखनऊ के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश की संगीत परंपरा प्राचीनतम और समृद्ध है इसके संरक्षण हेतु कार्य की आवश्यकता बताई। उन्हांेने कहा विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों व लोकगीतों के संरक्षण एवं शोध पर विश्वविद्यालय को ध्यान देना चाहिए। विकसित भारत के उद्देश्य की प्राप्ति में भारतीय संस्कृति और कला की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में सगर्भा माताओं के संस्कार के कार्य शुरू किए जाएं।
राज्यपाल ने भारत में कला के रस और रंगों को जीवन का पर्याय मानते हुए कहा कि भारत में जीवन की अलग-अलग जरूरतों व दायित्वों को चैसठ कलाओं से जोड़ा गया है। संगीत एवं नृत्य को एक साधना है। उत्तर प्रदेश की संगीत परंपरा प्राचीनतम और समृद्ध है। उसके संरक्षण हेतु कार्य करना चाहिए। उन्होंने उत्तर प्रदेश के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय, भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना के सत्तानवें वर्ष पूर्ण होने पर बधाई देते हुए आने वाले शताब्दी वर्ष में नई ऊंचाइयों की प्राप्ति की कामना की।
राज्यपाल ने समारोह में आए स्कूली बच्चों को दीक्षांत समारोह से सीखने, संकल्प लेने व अच्छी शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रेरित होने को कहा। राज्यपाल ने भारत के पचास प्रतिशत युवाओं को विश्वविद्यालयी शिक्षा तक पहुंचने की आह्वान किया। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में भारत के सिर्फ छब्बीस प्रतिशत युवा ही शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय तक पहुँच पाते हैं। उन्होंने आंगनवाड़ियों में बच्चों की प्रवेश संख्या बढ़ाने व उक्त लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोग करने को कहा। उन्होंने विश्वविद्यालय में सगर्भा माताओं के संस्कार के कार्य को शुरू किए जाने का भी आह्वान किया। राज्यपाल ने इस क्रम में अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि घर के माहौल का प्रभाव माता के गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। राज्यपाल ने कथक नृत्य को एक प्रकार का एक्यूप्रेशर बताते हुए उस पर शोध करने की जरूरत बताई तथा इस संदर्भ में उन्होंने आईआईआईटी लखनऊ एवं संगीत विश्वविद्यालय के बीच एमओयू हस्ताक्षरित करने की आवश्यकता बताई। कहा कि समय बदल गया है, इस क्षेत्र में आधुनिकीकरण लाया जाना चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा विद्यालय और गांव को गोद लिए जाने हेतु प्रेरित किया। राज्यपाल ने कहा कि हमारा ज्ञान और प्रतिभाएं बाहर भी जाएं, बाहर के छात्र-छात्राएं, महिला, किसान और गरीबों को भी इसका लाभ मिले तथा विश्वविद्यालय शैक्षणिक गतिविधियों से इतर सामाजिक कार्यों को भी बढ़ावा दें। उन्होंने विश्वविद्यालय को नैक मूल्यांकन में उच्च ग्रेडिंग की तैयारी हेतु कहा। इस अवसर पर मुख्य अतिथि व प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना पद्मश्री, श्रीमती शोभना नारायण ने उपाधि पदक प्राप्त सभी विद्यार्थियों को नई जिंदगी शुरू करने के लिए बधाइयां दी। उन्होंने कहा कि जीवन मे आने वाली चुनौतियां का सामना करना स्वयं पर निर्भर करता है तथा हर उम्र में सीखने की प्रवृत्ति होती है। उन्होंने कहा कि परफॉर्मिंग आर्ट्स के नियम जीवन में भी लागू होते हैं तथा जीवन को कैसा बनाना है, यह चाबी स्वयं के हाथ में है। उन्होंने जीवन में अदृश्य सीख पर ज्यादा ध्यान देने को कहा तथा विद्यार्थियों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने हेतु प्रेरित किया। (हिफी)
(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)