तमिलनाडु में भाजपा का गठबंधन

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु मंे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने पैर जमाने के लिए जोखिम उठाने से भी परहेज नहीं करेगी। इस बात को अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन करके साबित भी कर दिया है। भाजपा ने अपने बेहद चर्चित प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई को पद से हटाकर अन्नाद्रमुक से गठबंधन किया। इससे राज्य मंे बड़े बदलाव संभव है। भाजपा इस राज्य में भी अपने दम पर सत्ता हासिल करना चाहती है जहां उसका कोई जनाधार नहीं है। तमिलनाडु मंे भी 2026 मंे विधानसभा के चुनाव होने हैं। मौजूदा समय मंे वहां द्रमुक की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है जिसमें कांग्रेस भी गठबंधन के नाते साझेदार हैं। यहां पर जनता अन्नाद्रमुक और द्रमुक को बारी-बारी से सत्ता सौंपती रही है। इस समीकरण के अनुसार 2026 मंे द्रमुक की सरकार बननी चाहिए और भाजपा ने गठबंधन किया है तो तमिलनाडु में पहली बार भाजपा भी सरकार बनाएगी। हालांकि द्रविड़ राजनीति यह रही है कि वह केन्द्र में किसी भी दल के साथ सत्ता में शामिल हो सकती है लेकिन राज्य मंे दूसरे दल को सत्ता में शामिल नहीं करती। द्रमुक के स्टालिन ने इस परम्परा को तोड़ा है तो अन्ना द्रमुक भी यही करेगी, भाजपा का ऐसा मानना है। भाजपा और अन्नाद्रमुक ने एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत गठबंधन किया है। ध्यान रहे कि दोनों दलों के बीच गठबंधन पहले भी हुआ। सितम्बर 2023 मंे अन्नाद्रमुक ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था अब भाजपा ने गठबंधन करके अपने अति विश्वस्त अन्नामलाई को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने में संकोच नहीं किया क्योंकि पूर्व सीएम और अन्नाद्रमुक के नेता पलानी स्वामी अन्नामलाई को पसंद नहीं करते थे।
तमिलनाडु में भाजपा-अन्नाद्रमुक गठबंधन का एलान 11 अप्रैल शाम गृह मंत्री अमित शाह ने किया था। पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने गठबंधन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। उम्मीद जताई जा रही है कि यह गठबंधन अगले साल के तमिलनाडु चुनाव से पहले एक मजबूत कैडर और मतदाता आधार तक पहुंच सुनिश्चित करेगा। हालांकि, 2021 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन के सामने यह गठजोड़ कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सका था, लेकिन एक अहम बात यह है कि यह गठबंधन भाजपा को राज्यसभा में बढ़त दिला सकता है। राज्यसभा में अन्नद्रमुक के चार सांसद हैं। ऐसे में भाजपा को उच्च सदन में गणितीय बढ़त मिलती है। इससे भाजपा संसद में और मजबूत हो सकती है। भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को पहले से ही लोकसभा में पूर्ण बहुमत है। अब अन्नाद्रमुक से गठबंधन के बाद वह राज्यसभा में खुद को मजबूत कर रही है। इससे भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को विधेयकों को पारित कराने में मदद मिल सकेगी। यह गठबंधन ऐसे वक्त हो रहा है, जब सरकार अगले संसद सत्र में एक राष्ट्र-एक चुनाव विधेयक को पारित कराने की कोशिश कर सकती है। हाल ही में सरकार ने संसद से वक्फ कानूनों में बदलावों को पास कराया था। अब उसके निशाने पर है- एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक। यह प्रधानमंत्री मोदी की एक प्रमुख पहल है। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं। इनमें नौ सीटें खाली हैं। इसका मतलब है कि प्रभावी संख्या केवल 236 ही है। ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 119 होता है। अन्नाद्रमुक से गठबंधन के बाद भाजपा इस आंकड़े को पार कर सकती है। राज्यसभा में अद्रमुक के चार सांसद हैं। उनके नाम हैं- सीवी षणमुगम, एम थंबीदुरई, एन. चंद्रशेखरन और आर. धर्मर। इन्हें मिलाकर भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के पास राज्यसभा में 123 सांसद हो जाएंगे। यह संख्या भी बढ़कर 124 हो सकती है, क्योंकि क्षेत्रीय तमिल पार्टी पीएमके के अंबुमणि रामदास का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है और विधानसभा की मौजूदा स्थिति के आधार पर अन्नाद्रमुक को यह सीट भी मिल सकती है, जिससे राज्यसभा में उसके सदस्यों की संख्या पांच हो जाएगी। इस बीच भाजपा सात अन्य सांसदों छह मनोनीत और एक स्वतंत्र के समर्थन पर भी भरोसा कर सकती है। इसलिए पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए की प्रभावी ताकत 131 है।
भाजपा और अद्रमुक के बीच खटास तब से पैदा हुई थी, जब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने एआईएडीएमके के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसकी वजह से आखिरकार लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन टूट गया। हालांकि, अन्नामलाई के करिश्माई नेतृत्व का बीजेपी को वोट शेयर के रूप में बड़ा फायदा भी मिला, लेकिन वह सीटों में तब्दील नहीं हो सका। उसी के बाद से कहीं न कहीं दोनों ही दलों की ओर से इस तरह के संकेत मिलने शुरू हो गए कि एक बार फिर से साथ आने का प्रयोग किया जा सकता है। पिछले साल दिसंबर में विदेश से पढ़ाई करके लौटने के बाद इसको लेकर अन्नामलाई ने भी अपना सुर नरम कर लिया था।जहां तक भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की बात है तो हाल ही में अन्नामलाई खुद ही कह चुके थे कि उनकी प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में दिलचस्पी नहीं है और वह एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह कार्य करना चाहते हैं। अन्नामलाई की जगह अब प्रदेश में नैनार नागेंद्रन बीजेपी के नए अध्यक्ष चुन लिये गए हैं। इसके लिए उन्होंने ही एकमात्र नामांकन डाला था। वे प्रदेश विधानसभा में पार्टी के सदन के नेता हैं। वैसे बीजेपी के अंदर के लोगों का कहना है कि अन्नामलाई की जगह नागेंद्रन को कमान सौंपने के पीछे मूल रूप से राज्य का जातीय और क्षेत्रीय समीकरण है। नागेंद्रन तिरुनेलवेली के एक प्रमुख थेवर नेता हैं और सूत्रों का भी कहना है कि वे केंद्रीय नेतृत्व के भी पसंद हैं। वहीं अन्नामलाई और पलानीस्वामी दोनों ही गौंडर समाज से आते हैं, जिनका पश्चिमी कोंगु इलाके में काफी प्रभाव है। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी अन्नामलाई के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता निकालकर गठबंधन के लिए कोई ठोस समीकरण बनाने को प्राथमिकता दे रही है। तमिलनाडु की राजनीति में इन दोनों बदलावों से साफ हो गया कि अमित शाह की चेन्नई में मौजूदगी के क्या मायने थे।
वर्ष 2021 के तमिलनाड विधानसभा चुनाव में बीजेपी और एआईएडीएमके गठबंधन का कुल वोट शेयर 36 फीसद के लगभग था। वहीं, विरोधी डीएमके का वोट शेयर 37.7 फीसद था। जबकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी अकेले लड़कर 11.38 फीसद वोट शेयर तक जरूर पहुंची थी, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं प्राप्त हुई थी। वहीं एआईएडीएमके भी 20.66 फीसद वोट लेकर भी खाली हाथ रहा था।
आजादी के बाद मद्रास रेसीडेंसी नाम के राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने कांग्रेस केसी राजगोपालाचारी बने थे। बाद में यही मद्रास राज्य बन गया। वर्ष 1953 में रायससीमा और तटीय क्षेत्रों को मिलाकर आंध्र प्रदेश का गठन कर दिया गया। वर्ष 1968 में इसी मद्रास राज्य का नाम तमिलनाडु कर दिया गया। इस बीच पेरियार और सीएन अन्नादुरई के बीच मतभेद हो गए और पार्टी टूट गई। अन्नादुरई ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) का गठन किया। डीएमके ने 1956 में राजनीति में प्रवेश करने का मन बनाया। साठ के दशक में हिंदी के खिलाफ हुए आंदोलन ने डीएमके को ताकत दी और 1967 में डीएमके ने राज्य से कांग्रेस का सफाया कर दिया। वर्ष 1972 में डीएमके का विभाजन हो गया और एमजीआर ने ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) का गठन किया। (हिफी)