दिल्ली में अब होगी भाजपा की परीक्षा!

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली जीत कई मायने में ऐतिहासिक हैं, क्योंकि इसका प्रभाव सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है। इस चुनाव परिणाम का राजनीतिक असर भी दूरगामी होंगे, क्योंकि एक तरफ जहां भाजपा की जीत से केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए की एकजुटता मजबूत होगी, वहीं देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में बिखराव को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही दिल्ली की सत्ता हासिल करने से भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर एक मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकती है, वहीं आम आदमी पार्टी के पतन की पटकथा बन सकती है।
आप जानते हैं कि दिल्ली के चुनावों में जहां इस बार आप चौथी बार अपनी सरकार बनाने के लिए प्रयत्नशील थी, वहीं भाजपा ने ये चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था और इसमें प्रचंड बहुमत से सफलता प्राप्त करके लगभग 27 वर्ष बाद देश की राजधानी पर शासन करने जा रही है। आप ने अपने पहले कार्यकाल में मध्यम तथा निम्न मध्यम वर्ग के लिए कई काम किए, जिनका उन्हें लाभ भी मिला पर दूसरे कार्यकाल में उसकी वह रफ्तार न रही और पार्टी के नेता अनेक आरोपों में घिरे और जेल गए। वहीं, महाराष्ट्र और हरियाणा की हालिया जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ गया है। यह जीत भाजपा के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। इससे पहले 1993 से 1998 तक सत्ता में रही भाजपा ने लगभग तीन दशकों की हार का सिलसिला तोड़ दिया है। इस जीत का श्रेय पार्टी पीएम मोदी के नेतृत्व को दे रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की अहम भूमिका है। भाजपा ने 2014 के बाद हर चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा है। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी ने सीएम कैंडिडेट घोषित किया था, लेकिन भाजपा ने मोदी के फेस पर चुनाव लड़ा। नतीजे बता रहे हैं कि मोदी का जादू कायम है। भाजपा की जीत में पीएम की लोकप्रियता और चुनावी कैंपेन की सबसे बड़ी भूमिका रही है। पीएम मोदी की साफ सुथरी छवि, विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण लोगों को पसंद आया। 11 साल के उनके कार्यकाल को दिल्ली के लोगों ने नजदीक से जाना समझा है और यही वजह है कि दिल्ली में जनता का मूड बदल दिया। इसमें कोई दोमत नहीं है कि इस चुनावी नतीजे ने भाजपा को संजीवनी दी है। आम आदमी पार्टी (आप) की मुख्य चुनावी घोषणाएं मुफ्त बिजली और महिलाओं को 2,100 रुपये का भत्ता देने से जुड़ी थीं, लेकिन जनता ने भाजपा को मौका दिया। आप कभी ईमानदार राजनीति और जनहितैषी योजनाओं के दम पर सत्ता में आई थी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों ने इसकी छवि को बुरी तरह प्रभावित किया। कथित शराब घोटाले में केजरीवाल और उनके दो मंत्री जेल में हैं, जिस पर विपक्ष ने जमकर हमला बोला। इसके अलावा, दिल्ली में शीशमहल नाम से चर्चित आलीशान मुख्यमंत्री आवास का मुद्दा भी पार्टी के खिलाफ गया। इस हार के बाद केजरीवाल का राजनीतिक भविष्य खतरे में दिखा रहा है। उनकी पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ सकता है और उनके खिलाफ चल रहे भ्रष्ठचार के केस भी उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
अगर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी जो खुद को कट्टर ईमानदार कहती थी, उस पर लगा भ्रष्टाचार का कथित दाग उसके लिए हार का सबसे बड़ा कारण बना। भाजपा ने भी आप पर हर मंच से जोरदार प्रहार किया। खासतौर पर दिल्ली शराब नीति कथित घोटाले पर भाजपा ने आप पर तीखे वार किए। यहां तक कि इस मामले में न खुद पार्टी मुखिया केजरीवाल को जेल जाना पड़ा, बल्कि सेनापति माने जाने वाले मनीष सिसोदिया से लेकर सत्येंद्र जैन और संजय सिंह तक को जेल हुई। लोगों के बीच में इस बात का संदेश साफ गया कि जो पार्टी खुद को कट्टर ईमानदार कहकर सत्ता में आई थी, वो भ्रष्टाचार के दलदल में धंस गई है। केजरीवाल ने हमेशा से वीआईपी कल्चर पर सवाल उठाए, लेकिन इस बार शीश महल को लेकर उन पर ही सवाल खड़े हो गए। भाजपा-कांग्रेस ने आप को जमकर घेरा। दबाव को भांपकर सितंबर 2024 में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया। बड़े नेताओं का जेल जाना और अदालती शतों से बंधे रहना चुनाव से पहले बड़ा टर्निंग प्वॉइंट रहा और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। भाजपा ने हाल के वर्षों में राज्य के सभी चुनावों में मुफ्त योजनाओं का ऐलान किया और इसका सीधा फायदा उसे राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में मिल चुका है। इस बार भाजपा का मुकाबला एक बार फिर ऐसी पार्टी से था, जिससे देश की सभी पार्टियों ने मुफ्त योजनाओं के ऐलान का सबक सीखा। भाजपा ने आप की इसी मजबूत कड़ी को काटने के लिए दिल्ली में महिलाओं को 2500 रुपये, 500 रुपये में गैस सिलेंडर, फ्री बिजली-पानी जैसी योजनाओं का न केवल ऐलान किया, बल्कि ये भी घोषणा की कि जो योजना पहले से दिल्ली में लागू हैं वो आगे भी जारी रहेंगी।
इसके अलावा एक और बात जो भाजपा हर राज्य में कहती आ रही थी, वो है डबल इंजन सरकार की बात। दिल्ली में भी यही कहकर वोट मांगे गए। दिल्ली में आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच लड़ाई जगजाहिर है। इससे लोगों के मन में एक नकारात्मक छवि बनी और लोगों को सोचने पर मजबूर किया कि केंद्र और दिल्ली दोनों जगह भाजपा की सरकार होगी तो विकास कार्यों में तेजी आएगी। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली में इस बार लगातार विकास की बात की और दिल्ली की दुर्दशा को सुधारने का ऐलान किया। दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने से पहले से केजरीवाल और तमाम आप नेता यमुना की सफाई के मुद्दे को उठाते रहे। तत्कालीन दिल्ली सरकार को भाजपा ने हर मंचों से आड़े हाथों लिया और उसके दावों पर प्रहार किए। खासतौर पर केजरीवाल के उस बयान को भुनाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मैं यमुना को साफ करने में कामयाब नहीं रहा तो दिल्ली वालों मुझे बोट मत देना। इस बयान से केजरीवाल और पार्टी दोनों की छवि पर काफी प्रभाव पड़ा। एक बात यह है कि लगातार तीसरी बार एक चेहरे पर चुनाव जीतना आसान बात नहीं है। इसके लिए नेता को कई बातों के अलावा अपनी छवि लगातार मजबूत करनी पड़ती है। केजरीवाल यह नहीं कर पाए। उनकी छवि धूमिल ही होती रही। ऐसे में भावनात्मक रूप से जनता आप से दूर होती गई। इस पार्टी का जन्म ही भ्रष्टाचार के खिलाफ उमड़ी जनभावना के दम पर हुआ था। केजरीवाल उस बुनियाद को लगातार कमजोर करते गए। नतीजा आज सत्ता का शीशमहल बह गया।
देखा जाए तो दिल्ली की इस अप्रत्याशित जीत का फायदा एनडीए गठबंधन को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी मिलेगा। वहीं, कांग्रेस यदि समझदारी दिखाकर इंडिया गठबंधन को पुनः मजबूत बनाती है तो वहां भी कांटे की टक्कर होगी, अन्यथा नहीं। क्योंकि वहां पर भी नवगठित जनसुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर के रुख पर यह निर्भर करेगा कि एनडीए या इंडिया गठबंधन में किसका पलड़ा भारी होगा। हालांकि इन सबके बीच अब भाजपा की जिम्मेदारी बढ़ गयी है. क्योंकि उसने दिल्ली वासियों से काफी वादें किए हैं, अब उसको इन वायदों पर खरा उतरते हुए उनकी आशाओं, उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करना है। वहीं यह चुनाव अहंकार की हार और निरंतर प्रयास की जीत है। हाल ही में आप मुखिया अरविंद केजरीवाल ने कुछ इस तरह से बयान दिए जो उनके राजनीतिक अहंकार का परिचायक बने लेकिन मतदाता किसी अहंकार को पोषित नहीं करता और पर कतरने में भी देर नहीं करता है। (हिफी)