लेखक की कलम

भाजपा को मिला जेडीएस का साथ

 

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले दक्षिण भारत मंे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपना वोट बैंक अधिक से अधिक बढ़ाने का प्रयास कर रही है। तमिलनाडु मंे अन्नाद्रमुक ने उसका साथ छोड़ दिया। इससे थोड़ा-बहुत नुकसान होगा लेकिन कर्नाटक जैसे राज्य मंे वोट बैंक बढ़ने से न सिर्फ तमिलनाडु की भरपाई हो जाएगी बल्कि उत्तर भारत मंे विपक्षी दलों के गठबंधन (इंडिया) के चलते जिसे सियासी नुकसान की आशंका है, उसे भी पूरा किया जा सकेगा। कर्नाटक मंे कभी काफी मजबूत रहे जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) ने इस बार भाजपा के नेतृत्व वाले राजग का दामन थामा है।

इससे पहले राज्य मंे भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ जेडीएस सरकार बना चुका है। भाजपा और जेडीएस के साथ आने से कर्नाटक मंे राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बदल सकते हैं। राज्य में वोक्कालिंगा समुदाय जेडीएस का समर्थक रहा है। आबादी मंे करीब 15 फीसद इसकी भागीदारी है। बीएस येदियुरप्पा के साथ लिंगायत समुदाय पहले से जुड़ा है। इस प्रकार सामजिक समीकरण भाजपा के अनुकूल हो जाएंगे। हालंाकि 2019 के आम चुनाव में जेडीएस को सिर्फ एक सांसद मिल पाया था लेकिन जेडीएस का अपना वोट बैंक है। रही बात धर्मनिरपेक्षता की तो अब राजनीति मंे इसका कोई असर नहीं रह गया है। जनता दल से अलग होते समय पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भले ही यह दावा किया था कि उनकी पार्टी सेक्यूलर अर्थात् धर्मनिरपेक्ष रहेगी लेकिन भाजपा के साथ पहली बार सरकार बनाकर ही यह मुद्दा गौण हो चुका है। इस समझौते से जहां भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा तो जेडीएस को भी फायदा मिलने की संभावना है। उसे एक से ज्यादा सांसद तो मिलेंगे ही।

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एनडीए का कुनबा और बढ़ गया है। जेडीएस 22 सितम्बर को भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल) में विधिवत शामिल हो गई। दिल्ली में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद गठबंधन का ऐलान किया गया। शाह और कुमारस्वामी के बीच कर्नाटक में सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई। जेडीएस और बीजेपी कभी कर्नाटक में साथ थीं, मगर इस बार हुए विधानसभा चुनाव बीजेपी, जेडीएस और कांग्रेस ने अलग-अलग लड़ा।

विधानसभा चुनाव में जेडीएस को बड़ा झटका लगा था। अब एक बार फिर बीजेपी और जेडीएस कर्नाटक में मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। माना जा रहा है कि इस गठबंधन के बाद कर्नाटक में बीजेपी को बड़ी बढ़त मिल सकती है। साल 2019 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो जेडीएस सिर्फ हासन सीट पर जीत पाई थी जबकि मांड्या, बेंगलुरु (ग्रामीण) और चिकबल्लापुर सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। हासन से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना ने चुनाव जीता था, लेकिन 1 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनकी सांसदी रद्द कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन कमीशन को हलफनामे में गलत जानकारी दी थी। उन्होंने अपनी 24 करोड़ से अधिक की इनकम छिपाई थी। प्रज्ज्वल साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जीतने वाले पार्टी के एकमात्र सांसद थे। हासन की सांसदी रद्द होने के बाद अब लोकसभा में जेडीएस के पास कोई सदस्य नहीं है। भाजपा और जेडीएस के साथ आने से दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में सामाजिक और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं। कर्नाटक की आबादी में करीब 17 फीसदी भागीदारी वाला लिंगायत समुदाय बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं। लिंगायत के बाद करीब 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिंगा समुदाय दूसरा सबसे प्रभावशाली समाज है। वोक्कालिंगा परंपरागत रूप से जेडीएस का वोटर माना जाता है। जेडीएस चीफ एचडी देवगौड़ा खुद भी वोक्कालिगा समुदाय से ही आते हैं। साथ आने से राजग में राजग का वोट बेस करीब 32 फीसदी हो जाएगा।

कर्नाटक में चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) को कांग्रेस के हाथों अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी ने चुनाव में केवल 66 सीटें जीतीं और सत्ता से बाहर हो गई। जबकि जेडीएस को सिर्फ 19 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 135 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया और सिद्धारमैया की सरकार बनी। इसलिए 2024 का लोकसभा चुनाव अब कर्नाटक में बीजेपी और जेडीएस दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। दोनों पार्टियों ने चुनाव से पहले गठबंधन की घोषणा की है, लेकिन अभी तक सीट-बंटवारे की डिटेल सामने नहीं आई है। सीनियर बीजेपी नेता और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने पिछले हफ्ते गठबंधन की खबर ब्रेक की थी। उन्होंने कहा था कि डील के तहत जेडीएस को राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से 4 सीटें मिलेंगी। बीजेपी सूत्रों और बाद में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने इसे खारिज किया। कुमारस्वामी ने कहा कि सीट शेयरिंग पर अभी तक कोई चर्चा ही नहीं हुई है। दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस संरक्षक एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ने भी उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया, जिनमें उनकी पार्टी ने मांड्या और तुमकुर सीटों की मांग की थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी कोई मांग नहीं की गई है।

आंकड़ों पर गौर करें, तो 2023 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस का वोट शेयर 13.30 फीसदी था। 2018 में पार्टी का वोट शेयर 18.30 फीसदी था। यानी पांच साल के अंदर जेडीएस के वोट शेयर में 5 फीसदी की कमी आई है जबकि 2018 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 36.40 फीसदी था, जो 2023 में घटकर 35.90 फीसदी रह गया है। कांग्रेस की बात करें तो 2018 में इसका वोट शेयर 38.60 फीसदी था, जो 2023 के चुनाव में बढ़कर 42.99 फीसदी हो गया है। ऐसे में साफ है कि राज्य में अपनी मजबूत स्थिति बनाने के लिए बीजेपी और जेडीएस को हाथ मिलाना ही था। क्योंकि पुराने मैसूरु क्षेत्र के 8 लोकसभा सीटों पर अभी भी जेडीएस का दबदबा है। इनमें मांड्या, हासन, बेंगलुरु (ग्रामीण) और चिकबल्लापुर शामिल हैं। इसमें तुमकुर भी शामिल है, जिस सीट से देवेगौड़ा 2019 में चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कर्नाटक में पक्की हुई की दोस्ती, से सियासी गणित बदल जाएगा? (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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