पहली जीत के लिए जी-जान से जुटी भाजपा

देहरादून।चुनाव लड़ाने के लिए राज्य से बाहर से लाए गए करतार सिंह भड़ाना को प्रत्याशी बनाना भी उसकी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उसके प्रदर्शन पर नजर दौड़ाएं तो इस सीट पर भाजपा को अब तक सबसे अधिक 24101 वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में मिले। 2024 के लोस चुनाव में उसके वोट घटकर 21000 रह गए।
2017 के विधानसभा चुनाव में उसने 16964 वोट ही हासिल किए थे और 2022 में उसे 18763 वोट मिले थे। यानी पांच साल में वह 1799 वोट ही बढ़ा सकी। एक भी चुनाव में वह कांग्रेस और बसपा के आसपास भी नजर नहीं आई। मंगलौर सीट पर मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोट निर्णायक माने जाते हैं। विधानसभा क्षेत्र में 50 फीसदी वोट मुस्लिम हैं, जबकि 18 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग के वोट हैं। 32 फीसदी वोट में ओबीसी, गुर्जर, सैनी और अन्य वर्गों के वोट आते हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक होने की वजह से इसी समुदाय के नेता जीतते रहे हैं। 2017 में कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन और 2022 में बसपा के सरबत करीम अंसारी ने चुनाव जीता था। सरबत करीम अंसारी के निधन से खाली हुई इस सीट पर बसपा ने उनके बेटे उबैर्दुरहमान को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से काजी समर में हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा 23 हारी हुईं सीटों पर अपना वोट बैंक बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रही है। इन हारी हुईं सीटों में मंगलौर भी शामिल है। मंगलौर में पार्टी ने सभी बूथों पर अपनी कमेटियां बनाई हैं। पार्टी के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी कहते हैं, हमारी बूथ कमेटियों में मुस्लिम वर्ग के कार्यकर्ता भी हैं। वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को भाजपा की विचारधारा से जोड़ने के लिए पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। चुनाव में इसके सकारात्मक नतीजे मिलेंगे। जानकारों का मानना है कि भाजपा इस सीट पर बसपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच मुस्लिम वोटों के बंटने की उम्मीद कर रही है।