अध्यात्म
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ज्ञानी व अज्ञानी के कर्मों मंे अंतर
कर्म तो ज्ञानी भी करता है व अज्ञानी भी किन्तु दोनों के कर्मों में बाह्य अन्तर न होते हुए…
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परमात्मा ऊर्जा का सागर है
महाज्ञानी अष्टावक्र राजा जनक को बताते हैं कि अज्ञानियों के अनेक मत होते हैं अनेक विचार एवं धारणाएँ होती…
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प्रकृतिजन्य हैं हर्ष-शोक
महाज्ञानी अष्टावक्र राजा जनक को बताते हैं कि सारे हर्ष एवं शोक प्रकृतिजन्य हैं। चेतना को उपलब्ध हुए ज्ञानी…
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कर्म नहीं, कामना है बंधन
अष्टावक्र जी राजा जनक को बताते हैं कि कर्म बंधन नहीं होते बल्कि फल की इच्छा बंधन होती है।…
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प्रवृत्ति और निवृत्ति का स्वरूप
अष्टावक्र जी प्रवृत्ति और निवृत्ति के स्वरूप को बताते हुए कहते हैं कि जिसमंे वासना, अहंकार, आसक्ति आदि नहीं…
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वासना रहित आत्मज्ञान
अष्टावक्र जी धीर पुरुष के लक्षण पुनः बताते हैं। वह कहते हैं कि धीर पुरुष की स्वाभाविक उच्छृंखल स्थिति…
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वासना रहित आत्मज्ञान
महाज्ञानी अष्टावक्र राजा जनक को बताते हैं कि आत्मज्ञान वासना रहित होता है। वासना रहित पुरुष सिंह को देख…
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मन का भोजन कर्म
अष्टावक्र जी राजा जनक को समझाते हैं कि मन का भोजन कर्म है अच्छे और बुरे दोनांे प्रकार के…
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इच्छा नहीं, निश्चय जरूरी
अष्टावक्र जी कहते हैं कि इच्छा नहीं, निश्चय आवश्यक है। ज्ञानी अपने स्वरूप को जाने लेने से ही ब्रह्म…
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आत्म ज्ञान पाने का महत्वपूर्ण सूत्र
महाज्ञानी अष्टावक्र राजा जनक को बताते हैं कि चित्त की अनेक वृत्तियां हैं। तुम अगर एक-एक को छोड़ने का…
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