अध्यात्म
-
सम्पूर्ण सृष्टि एक ही आत्मा का विस्तार है
अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि तू संसार को अपने से भिन्न समझता है इसलिए मैं और विश्व तुझे…
Read More » -
आत्मा निर्मल है उसमें दोष नहीं होता
अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि तू चैतन्य रूप आत्मा है अतः यह जगत् तुझसे भिन्न नहीं है। फिर…
Read More » -
राग-द्वैष मन के धर्म
अष्टावक्र राजा जनक से कहते हैं कि राग और द्वैष मन के धर्म हैं। तू कभी मन नहीं बल्कि…
Read More » -
आत्मज्ञान की पुष्टि के लिए पुनः उपदेश
अष्टावक्र जी राजा जनक को आत्मज्ञान की पुष्टि के लिए पुनः उपदेश देते हुए कहते हैं विषयों मंे रस…
Read More » -
अद्वैत का अनुभव ज्ञान की अंतिम अनुभूति
राजा जनक कहते हैं कि अद्वैत का अनुभव ज्ञान की अंतिम अनुभूति है। आत्मा को परमात्मा से जो भिन्न…
Read More » -
मन की चंचलता को करें शांत
राजा जनक कहते हैं कि चित्त की चंचलता को पूरी तरह से शांत करना जरूरी है। इससे संसार स्वरूप…
Read More » -
साधनों का क्रियारहित स्वरूप
राजा जनक कहते हैं कि जिसने क्रिया रहित स्वरूप अर्जित किया है, वही पुरुष कृतकृत्य है। उसे आत्मा की…
Read More » -
जीवन ही कर्म है, मृत्यु कर्म का अभाव
राजा जनक कहते हैं कि कर्म का अनुष्ठान अज्ञान से है, वैसे ही उसके त्याग का अनुष्ठान भी अज्ञान…
Read More » -
बोध से होता है आत्मज्ञान
राजा जनक कहते हैं कि बोध से आत्मज्ञान हो सकता है और जिसमें बोध नहीं है उसी को ध्यान,…
Read More » -
आत्मा का कोई शरीर नहीं होता
अष्टावक्र राजा जनक को समझाते हैं कि आत्मा आज जिस शरीर में है, कल दूसरे मंे चली जाएगी। इसलिए…
Read More »