अध्यात्म
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आत्मा का कोई शरीर नहीं होता
अष्टावक्र राजा जनक को समझाते हैं कि आत्मा आज जिस शरीर में है, कल दूसरे मंे चली जाएगी। इसलिए…
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भाव और अभाव के विकार प्रकृतिजन्य
अष्टावक्र कहते हैं कि भाव और अभाव के सभी विकार स्वाभाविक हैं जैसे आग का स्वभाव है जलाना। इसलिए…
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प्राप्त को पर्याप्त समझने से मिटती तृष्णा
अष्टावक्र कहते हैं कि हम प्राप्त को पर्याप्त नहीं समझते इसलिए तृष्णा रूपी संसार बढ़ता है। प्राप्त को पर्याप्त…
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अलग-अलग मतों से परे है सत्य
अष्टावक्र कहते हैं कि ऋषि, योगी और साधु अलग-अलग मत बताते हैं। इससे सत्य अलग होगा क्योंकि जब भिन्नताएं…
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अपराध व अपराध का विचार दोनों पाप
अष्टावक्र कहते हैं कि अपराध करना ही पाप नहीं है, अपराध का विचार आना भी पाप है। ये एक…
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अचाह की स्थिति है मुक्ति
अष्टावक्र राजा जनक को बताते हैं कि चाह की अवस्था ही संसार है जबकि मन जब न चाह करता…
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बंधन और मुक्ति की व्याख्या
अष्टावक्र को विश्वास हो गया कि राजा जनक को तत्व बोध हो गया है। इसकी उन्होंने परीक्षा भी ली।…
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अष्टावक्र बता रहे मोक्ष का उपाय
राजा जनक के ज्ञानी होने की पुष्टि के बाद अष्टावक्र मोक्ष का उपाय बताते हुए कहते हैं कि तू…
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इच्छा व अनिच्छा को रोकने की सामथ् र्य ज्ञानी में
राजा जनक कहते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश सभी में इच्छा और वासना है। इसलिए आत्मज्ञान से ही इच्छाओं…
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दीनता का कारण है इच्छाएं
राजा जनक कहते हैं कि मैं नित्य एवं शाश्वत आत्मपद पर स्थित हूं। इसलिए प्राप्त एवं अप्राप्त में समभाव…
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