आजादी का जश्न व दायित्व

भारत को 15 अगिस्त 1947 को ब्रिटिश दासता से आजादी मिली थी। आज भले ही वैसा उत्साह और उमंग नहीं दिखता लेकिन 14 अगस्त की रात 11 बजे संसद के सेंट्रल हाल मंे दिग्गज नेता बैठे थे। बारह बजने मंे 5 मिनट बाकी थे, तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू उठे और माइक के पास पहुंचे। उन्होंने कहा ‘बहुत सालों पहले हमने नियति से एक वादा किया था (लांग इयर्स एगो वी मेड ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी) अब वो समय आ पहुंचा है कि हम उस वादे को निभाएं। कहने मंे संकोच नहीं होता कि वह वादा अब तक अधूरा है। देश में बेईमानी, भ्रष्टाचार और गद्दारी जब तक है, तब तक वह वादा अधूरा रहेगा। बेशक उस 14 अगस्त की रात को पूरी दुनिया सो रही होगी लेकिन भारत आजादी की सांस ले रहा था। यह जश्न का अवसर था और आज भी है। हम आजादी का जश्न मनाएं लेकिन अपने-अपने कर्तव्य भी याद रखें। उस दिन का पंडित नेहरू का भाषण यादगार है और हमंे 15 अगस्त को ही आजादी क्यों मिली, इसे भी नयी पीढ़ी को बताना होगा। इंडियन इंडिपेंन्डेन्स डे एक्ट-1947 के नाम से कानून 4 जुलाई की ही बन गया था।
भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त नहीं बल्कि कोई और दिन चुना गया था? जी हां, यह बात बिल्कुल सच है असल में तो स्वतंत्रता दिवस के लिए 30 जून 1948 का दिन चुना गया था लेकिन उस समय हालातों की गंभीरता ऐसी बनी कि विभाजन पहले करना पड़ा। इस वजह से 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी दी गई और फिर 1 साल बाद 15 अगस्त 1948 को पहला आजादी दिवस का जश्न मनाया गया था। वहीं, पाकिस्तान अपनी आजादी का जश्न 14 अगस्त को मनाता है। मगर सवाल यह है कि आखिर भारत की स्वतंत्रता के लिए 14 या 16 को नहीं 15 अगस्त की तारीख क्यों चुनी गई थी।
इंडियन इंडिपेंडेन्स एक्ट-कानून 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में पेश किया गया था, जो 18 जुलाई को पास हुआ था। इसमें साफ-साफ लिखा था कि भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलेगी और उसी दिन भारत और पाकिस्तान दो डोमिनियन राष्ट्र बन जाएंगे। यह तारीख पहले से तय नहीं थी। इसे वायसराय लॉर्ड माउंटबैटन ने चुना था। वायसराय लॉर्ड माउंटबैटन की भूमिका की भारत और पाकिस्तान को आजादी दिलाने में जितनी भूमिका थी, उतनी ही वर्ल्ड वॉर में भी रही है। वह उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत करवाने में शामिल मित्र देशों के साथ थे और एक महत्वपूर्ण पद पर थे। 15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण के बाद वर्ल्ड वॉर समाप्त हुई थी। इसलिए, 15 अगस्त की तारीख को ही भारत की आजादी का दिन चुना गया था।
साल 1947 में देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे और विभाजन की प्रक्रिया जोरों पर थी। ब्रिटेन चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके सत्ता हस्तांतरित हो जाए ताकि हालात और न बिगड़ें। इसके बाद 15 अगस्त को उसी साल पहली बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का पहला भाषण दिया था। उस वक्त महात्मा गांधी इस समारोह में शामिल नहीं हुए थे क्योंकि वे उस वक्त बंगाल में हिंदु-मुस्लिम दंगों को शांत करवाने गए हुए थे।
भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। एक साल बाद यानी 15 अगस्त 1948 को पहला आजादी दिवस मनाया गया था। अगर हम साल 1948 से 2025 तक जोड़ें तो इस साल भारत अपनी आजादी का 78वां जश्न मनाएगा। यदि हम 1947 से आजादी के साल को जोड़ते हैं, तो इस साल भारत की आजादी के 79 साल पूरे हो चुके हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि इस साल भारत 79वां आजादी दिवस का जश्न मनाएगा।
जवाहरलाल नेहरू का पहला भाषण, जिसे नियति से वादा कहा जाता है, 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को, भारत की स्वतंत्रता की घोषणा के बाद दिया गया था। इस भाषण में, उन्होंने भारत की आजादी के महत्व पर जोर दिया और देश के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डाला।
नेहरू ने अपने भाषण की शुरुआत बहुत साल पहले, हमने नियति से एक वादा किया था से की, जिसका अर्थ था कि भारत को आजादी दिलाने का संकल्प। उन्होंने इस ऐतिहासिक क्षण को एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत कम आता है बताया, जब एक युग का अंत होता है और नया
युग शुरू होता है। नेहरू ने कहा
कि आजादी का मतलब सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं है, बल्कि आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए भी आजादी होनी चाहिए। उन्होंने गरीबी, अज्ञानता और बीमारी से लड़ने और उन्हें खत्म करने की बात कही।
समृद्ध और लोकतांत्रिक भारत का निर्माण का आश्वासन दिया। नेहरू ने एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने का आह्वान किया, जहाँ हर किसी को न्याय और पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिले। उन्होंने सांप्रदायिकता और संकीर्णता को बढ़ावा न देने की अपील की, क्योंकि कोई भी राष्ट्र अपने लोगों के विचारों और कार्यों में संकीर्ण होने पर महान नहीं बन सकता। यह भाषण, जो 4 मिनट 41 सेकंड तक चला, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, और इसे 20वीं सदी के महानतम भाषणों में से एक माना जाता है।
आजादी के अगले दिन दिल्ली की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। हर तरफ सिर्फ लोगों के सिर दिखाई दे रहे थे। इंडिया गेट के पास प्रिंसेज पार्क में लगभग 5 लाख लोग मौजूद थे। उससे पहले रात 12 बजते ही सेंट्रल हॉल नारों के साथ शंख की ध्वनि से भी गूंज उठा। वहां बैठे लोगों की आंखों में आंसू थे। इसके बाद सुचेता कृपलानी जो 60 के दशक में उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं थीं, वो उठीं और उन्होंने अल्लामा इकबाल का गीत सारे जहां से अच्छा और बंकिम चंद्र चटर्जी का वंदे मातरम गाया। बाद में वंदे मातरम ही भारत का राष्ट्रगीत बन गया। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के अगले दिन दिल्ली की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। हर तरफ सिर्फ लोगों के सिर दिखाई दे रहे थे। माउंटबेटन को शाम के करीब पांच बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेज पार्क में तिरंगा झंडा फहराना था। माउंटबेटन के सलाहकारों का मानना था कि इस दौरान वहां लगभग 30 हजार लोग मौजूद रहेंगे लेकिन जब माउंटबेटन वहां पहुंचे तो वहां करीब 5 लाख लोग मौजूद थे। कहा जाता है कि भारत के इतिहास में कुंभ मेले को छोड़कर इतनी बड़ी भीड़ इससे पहले कहीं भी एक साथ इकट्ठी नहीं हुई थी। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)