चैटाला व केजरीवाल के दांव

राजनेता जब पर्दे के पीछे कोई खेल करते हैं तो सियासी हलचल पैदा होना स्वाभाविक है। हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चैटाला और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इन दिनों यही कर रहे हैं। दुष्यंत चैटाला ने हरियाणा के लोगों के लिए प्राइवेट सेक्टर में 75 फीसद आरक्षण की इजाजत हाईकोर्ट से न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। इसके पीछे जनता की भलाई का मुद्दा उतना नहीं है जितना अपनी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को आगामी चुनावों मंे लाभ पहुंचाने का मामला है। इसी प्रकार दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने मुख्य सचिव को सजा इसलिए नहीं दिलवाना चाहते हैं कि वे कानून के शासन मंे विश्वास रखते हैं बल्कि मुख्य सचिव को उपराज्यपाल ने तैनात किया है इसलिए उनको सजा दिलवाने पर जोर दे रहे हैं।
जनता के हित में है आरक्षण: दुष्यंत
निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के निवासियों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण को अनिवार्य करने वाले हरियाणा के कानून को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने के कुछ घंटों बाद, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला ने मीडिया से कहा कि सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। चैटाला ने एक टेलीफोनिक साक्षात्कार में बताया, हम आदेश के ऑनलाइन होने का इंतजार कर रहे हैं। हम कानूनी उपाय करेंगे और इस आदेश पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
नवंबर 2020 में हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित और मार्च 2021 में राज्यपाल की सहमति प्राप्त हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम को जननायक जनता पार्टी के दिमाग की उपज के रूप में देखा गया था। हरियाणा के मूल निवासी उम्मीदवारों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देना 2019 विधानसभा चुनावों के समय जननायक जनता पार्टी का एक प्रमुख चुनावी वादा था।
उपमुख्यमंत्री ने इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित किया कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फरवरी 2022 में अधिनियम पर रोक लगा दी थी, लेकिन राज्य सरकार की अपील के कुछ दिनों बाद उच्चतम न्यायालय ने आदेश को रद्द कर दिया था। चैटाला ने कहा कि उद्योग से परामर्श किया गया और उनके विचारों को शामिल किया गया।
उन्होंने कहा, तकनीकी नौकरियां हटा दी गईं। अधिनियम गैर-तकनीकी नौकरियों के लिए था। उन्होंने कहा कि श्रमिकों को मासिक वेतन या 30,000 रुपये से कम वेतन दिया जाना था।
दुष्यंत चैटाला ने ऐसे कानून की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, हम स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करना चाहते थे। इससे उद्योग को दो स्तरों पर लाभ होता। पहला, उन्हें परिवहन और आवास लागत का भुगतान नहीं करना पड़ता और दूसरा, स्थानीय कुशल श्रमिक उपलब्ध होते। हमने देखा है कि कैसे जब कुशल श्रमिक अपने शहरों में वापस चले जाते हैं तो उद्योग बर्बाद हो जाते हैं। (हिफी)
मुख्य सचिव को सस्पेंड क्यों नहीं करते: केजरीवाल
दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार पर दिल्ली के आईएलबीएस अस्पताल में कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चीफ सेक्रेटरी के कथित भ्रष्टाचार की रिपोर्ट उपराज्यपाल वीके सक्सेना को भेज दी है। इस रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार ने चीफ सेक्रेटरी को तुरंत हटाने और सस्पेंड करने की मांग की है। दिल्ली की सतर्कता मंत्री आतिशी ने इससे पहले एक नई रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव नरेश कुमार ने अपने पद का इस्तेमाल करते हुए यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) और उस कंपनी के बीच ‘लाभप्रद सहयोग’ कराया, जिसमें उनका बेटा एक साझेदार है। सरकारी सूत्रों ने 17 नवम्बर को यह जानकारी दी। मुख्य सचिव की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन आईएलबीएस ने एक बयान में कृत्रिम मेधा (एआई) के लिए किसी भी सॉफ्टवेयर डेवलपर या कंपनी को कोई भी खरीद ‘ऑर्डर’ देने या भुगतान करने के ‘आरोप’ से इनकार किया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सौंपी गई ‘पूरक रिपोर्ट’ के अनुसार, मुख्य सचिव के रूप में 20 अप्रैल 2022 को नरेश कुमार की नियुक्ति होने के ठीक 20 दिन बाद कंपनी बनाई गई। यह रिपोर्ट 18 पन्नों की है। इससे पहले, दक्षिण पश्चिम दिल्ली के बामनोली गांव में भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर आतिशी ने एक रिपोर्ट सौंपी थी। पहले की 670 पन्नों की रिपोर्ट में भूमि अधिग्रहण के विषय में कुमार पर ‘प्रथम दृष्टया मिलीभगत’ का आरोप लगाया गया था और दावा किया गया था कि संभवतरू इससे हितधारकों को 897 करोड़ रुपये का लाभ हुआ होगा। कुमार ने एक बयान में सवाल किया, इस तरह के आरोप किस आधार पर लगाए गए हैं, खासकर जब मुख्य सचिव ने पिछले साल ही, यानी 2022 में पद संभाला है। रिपोर्ट की प्रति साझा नहीं की गई है, तो कोई किस आधार पर रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दे सकता है। उधर, केजरीवाल ने निलंबन की मांग की है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)