लेखक की कलम

शिन्दे के समक्ष चुनौतियां

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे 57 सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे से शिवसेना की विरासत की लड़ाई तो जीत चुके हैं, लेकिन ढाई साल तक सीएम रहने के बाद अब डिप्टी सीएम बनना एक तरह का डिमोशन माना जा रहा है। ऐसे हालात मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने भी पैदा हुए थे। वह महाराष्ट्र के ऐसे दूसरे सीएम थे जिसने निर्बाध पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इसके अलावा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिराने और महायुति की सरकार बनवाने में भी फडणवीस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद उनको एकनाथ शिंदे का उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा था। फडणवीस उस समय असहज हुए थे। उन्होंने बिना किसी पद के सरकार में रहने की बात कही थी लेकिन भाजपा में कोई गलत संदेश न जाए इसलिए उन्होंने डिप्टी सीएम बनना स्वीकार कर लिया था। फडणवीस के सामने उस समय बेहतर संभावनाएं थीं जो 5 दिसंबर को साकार भी हो गयी हैं लेकिन एकनाथ शिंदे के सामने बेहतर संभावनाएं नहीं हैं। शिवसेना तीन टुकड़े में बंट चुकी है। अब इसकी भी गारंटी नहीं कि और टुकड़े नहीं होंगे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पावर शेयरिंग में ताकतवर मंत्रालय शिंदे को नहीं मिले तो उनके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती शिवसेना के विधायकों को साथ में जोड़े रखने की होगी। शिवसेना के विस्तार की संभावनाएं तो बहुत कम दिख रही हैं। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना एमवीए में कांग्रेस को वर्दाश्त नहीं कर पा रही है । उसके लिए भाजपा ही बेहतर विकल्प लगेगी। एकनाथ शिंदे के सामने एक चुनौती यह भी होगी कि वह भाजपा का विश्वास कैसे अर्जित करेंगे। यह बात किसी से छिपी नहीं रह गयी कि शिंदे ने ही देवेन्द्र फडणवीस की सरकार बनने में देर करवाई। अजित पवार के खुले समर्थन के बाद एकनाथ शिंदे के सामने कोई रास्ता नहीं बचा था। वह डिप्टी सीएम मजबूरी में ही बने हैं। यह गांठ फडणवीस की आंख में चुभती रहेगी।
महाराष्ट्र में 12 दिन के मान मनौव्वल के बाद पांच दिसंबर को देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वहीं एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली है। उल्लेखनीय यह है देवेंद्र फडणवीस के बाद एकनाथ शिंदे को शपथ दिलाई गई। इससे यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि शिंदे ही दूसरे स्थान पर हैं। इसी तरह एकनाथ शिंदे ने शपथ लेने से पहले बाला साहेब ठाकरे को नमन किया। इसप्रकार शिंदे ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मराठा सम्राट बाला साहेब ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी वही हैं। यह संदेश शिवसैनिकों तक ठीक से
पहुंच गया तो शिंदे की राह आसान हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दो साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिंदे को आने वाले समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यही कारण है कि वे सरकार में अब अपनी पावर बढ़ाने में लगे
हुए हैं।
माना जा रहा है कि एकनाथ शिंदे का नई सरकार के पावर शेयरिंग में पावर कम हो रहा है। ढाई साल तक सत्ता की बागडोर संभालने वाले शिंदे का सीएम की कुर्सी छोड़कर डिप्टी सीएम बनना, उनके राजनीतिक करियर के लिए जोखिम भरा कदम माना जा रहा है, क्योंकि सत्ता की शक्ति से उन्होंने उद्धव ठाकरे को शिकस्त दी थी। अब जब सत्ता पर पकड़ कमजोर हुई है, तो शिंदे के सामने शिवसेना पर अपनी पकड़ मजबूत रखने की चुनौती बढ़ गई है। राज्य में कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी के सामने भी विधायकों को संभाले रखने की चुनौती होगी। इनके विधायक टूटने पर भाजपा की तरफ ही जाएंगे। एकनाथ शिंदे अगर उनको अपने साथ जोड़ने में कामयाव हो जाएंगे तो उनका कद बढ़ेगा। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे 57 सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे से शिवसेना की विरासत की लड़ाई जीत गये हैं, लेकिन शिवसेना का रुतबा वापस लाने का रास्ता अब आसान नहीं है । शिवसेना से बगावत करके जब शिंदे मुख्यमंत्री बने तब शिवसैनिकों ने गर्व महसूस किया था। विधानसभा चुनाव में उसका असर भी दिखा था।
एकनाथ शिंदे बाखूबी समझते हैं कि अपने हाथ में सत्ता रखने के चलते अपने विधायकों और सहयोगियों को ताकत देने में सक्षम थे। इसके चलते ही उद्धव ठाकरे से शिवेसना से असली-नकली की लड़ाई जीते हैं। शिवसेना के विधायकों की संख्या को बढ़ाया है। सत्ता की शक्ति के कारण सियासी शिखर को छुआ है, लेकिन
अब मुख्यमंत्री पद की ताकत नहीं
होगी और यदि कोई ताकतवर मंत्रालय नहीं होगा, तो उनकी पार्टी के लिए भविष्य की राह मुश्किल हो जाएगी। शिवसेना के कई विधायक शिंदे के
साथ कम और सियासी पावर के चलते ज्यादा हैं।
लगातार पांच बार विधायक बने एकनाथ शिन्दे 1997 में ठाणे महानगर पालिका से पार्षद चुने गए थे और 2001 में नगर निगम सदन में विपक्ष के नेता बने। इसके बाद साल 2002 में दूसरी बार निगम पार्षद बने। इसके अलावा तीन साल तक पॉवरफुल स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य रहे। हालांकि, दूसरी बार पार्षद चुने जाने के दो साल बाद ही विधायक बन गए, लेकिन शिवसेना में सियासी बुलन्दी को साल 2000 के बाद छुआ। एकनाथ शिन्दे ठाणे की कोपरी-पंचपखाड़ी सीट से साल 2004 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। शिवसेना के टिकट पर 2004 में पहली बार विधानसभा पहुंचे शिन्दे इसके बाद 2009, 2014 2019 और 2024 में भी विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। शिन्दे महाविकास अघाड़ी को तोड़ने और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबन्धन को फिर से स्थापित करने के पक्ष में थे उन्होंने वैचारिक मतभेदों और कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रवादी कांग्रेस द्वारा अनुचित व्यवहार के कारण उद्धव ठाकरे से महा विकास अघाड़ी गठबन्धन को तोड़ने का अनुरोध किया । उनके साथी शिवसेना सदस्यों ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने उनकी शिकायतों की अनदेखी की।उन्होंने अपने अनुरोध का समर्थन करने के लिए अपनी पार्टी से दो तिहाई सदस्यों को इकट्ठा किया। यह संकट 21 जून 2022 को शुरू हुआ जब शिन्दे और कई अन्य विधायक महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबन्धन छोड़कर भाजपा शासित गुजरात के सूरत में चले गये। शिन्दे के विद्रोह के परिणामस्वरूप, उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दे दिया और कहा कि वह महाराष्ट्र विधान परिषद से भी इस्तीफा दे देंगे। शिन्दे ने सफलतापूर्वक भाजपा-शिवसेना गठबन्धन को फिर से स्थापित किया और 20वें मुख्यमन्त्री के रूप में शपथ ली, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के देवेन्द्र फडणवीस उपमुख्यमन्त्री बने थे। (हिफी)

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