राजनीति

तीसरे कार्यकाल में मोदी का अध्याय

 

18वीं लोकसभा के नतीजे भाजपा की उम्मीदों से विपरीत रहे लेकिन निष्पक्ष राजनीति में रुचि रखने वाले यही कहते थे कि भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए चार सौ के पार नहीं जाएगा लेकिन बहुमत अर्थात 272 सीटों से कम पर भी नहीं रहेगा। जनता ने इस बार भाजपा सरकार की जगह एनडीए सरकार को चुना है। देश की 543 सदस्यीय लोकसभा मंे भाजपा को सिर्फ 240 सीटें मिली हैं। जाहिर है कि भाजपा सिर्फ अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है लेकिन एनडीए को 291 सांसद मिले हैं। बहुमत के लिए सिर्फ 272 सांसद चाहिए। इस प्रकार मोदी की लगातार तीसरी बार सरकार बनना तय है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए प्रधानमंत्री उसी का होगा लेकिन तेलुगुदेशम (टीडीपी), जद(यू), शिवसेना (शिंदे) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जैसे 12 सहयोगी दलों से सलाह-मशवरा करके ही सरकार चलानी होगी। यही कारण है कि जब चुनाव के नतीजे घोषित हो रहे थे और यह भी लगभग तय हो चुका था कि भाजपा अकेले दम पर सरकार नहीं बना पाएगी, तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वरिष्ठ सहयोगियों के साथ बैठक करने के बाद कहा कि एनडीए सरकार अपने लगातार तीसरे कार्यकाल मंे फैसलों का नया अध्याय लिखेगी। यह नया अध्याय कैसा होगा, इस पर अभी निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि देश मंे एक राष्ट्र एक चुनाव की तैयारियां तो मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के अंतिम समय में ही शुरू करवा दी थीं। इसी तरह समान नागरिक संहिता लागू करने का काम भी राज्यों के माध्यम से होने लगा। पीएम मोदी ने कहा भी है कि कुछ दिनों मंे भारतीय संविधान लागू होने के 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे। संविधान हमारा मार्गदर्शक है। उन्हांेने कहा कि मैं भरोसा दिलाता हूं कि विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए हर राज्य चाहे वहां किसी की भी सरकार हो, मिलकर काम करेंगे। यही नये अध्याय के अनुमान हैं। सहयोगी दल कितना साथ देंगे, यह देखने की बात होगी। कांग्रेस को इस बार 99 सांसद मिले हैं जबकि विपक्षी गठबंधन के पास 206 सांसद हैं। चुनाव के समय ये बिखरे हुए थे।

आरक्षण बचाओ और ‘संविधान बचाओ’ का मुद्दा लोकसभा चुनाव में विपक्ष के मुख्य अभियान बिंदुओं में से एक था। इसने अनुसूचित जाति (84 सीटें) और अनुसूचित जनजाति (47 सीटें) के लिए रिजर्व 131 सीटों पर दो राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस के प्रदर्शन पर साफ असर डाला। नतीजों से साफ दिखा कि भाजपा को इन सीटों पर विपक्षी गठबंधन से कड़ी टक्कर मिली। सत्तारूढ़ भाजपा को 53 एससी-आरक्षित सीटों पर जीत मिली जबकि कांग्रेस को 34 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके गठबंधन सहयोगियों ने चुनाव प्रचार के दौरान संविधान और आरक्षण पर खतरे की आशंका का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। विपक्षी दलों के अभियान ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया क्योंकि दलितों और आदिवासियों के मन में आरक्षण खत्म होने की आशंका थी जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 131 में से 82 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि इस बार इस आंकड़े में भारी गिरावट देखने को मिली है। पिछले लोकसभा चुनाव में महज 10 सुरक्षित सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को 34 सीटें मिल गईं। कांग्रेस को दक्षिण भारत, महाराष्ट्र में सुरक्षित सीटों पर ज्यादा फायदा मिला है। इस मुद्दे की काट के लिए बीजेपी ने आरक्षण के कोटे में मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने के खतरे का मुद्दा उठाया। बीजेपी ने कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में इस तरह कोशिशों का उदाहण देते हुए साफ कहा कि वह आरक्षण के कोटे में मुसलमानों को शामिल करने का विरोध करती रहेगी। मगर रिजर्व सीटों पर वोटरों ने बीजेपी के इस दावे पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। पीएम नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने इस पर मुखर रुख अपनाया था। मगर नतीजों में साफ हो गया कि इन मुद्दे को वोटरों ने कोई खास तवज्जो नहीं दी है।

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा उनकी कैबिनेट के 11 केंद्रीय मंत्री मैदान में उतरे थे। लेकिन अखिलेश यादव और राहुल गांधी की सोशल इंजीनियरिंग के सामने 7 मंत्रियों को करारी हार मिली। इनमें स्मृति ईरानी, अजय मिश्रा टेनी और महेन्द्रनाथ पांडेय का नाम भी शामिल है। हालांकि वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लखनऊ से राजनाथ सिंह जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे।

अमेठी लोकसभा सीट से 2019 में बड़ा उलटफेर कर राहुल गांधी को शिकस्त देने वाली स्मृति ईरानी को इस बार बड़ी हार मिली है। गांधी परिवार के करीब किशोरी लाल शर्मा ने उन्हें डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हराकर अमेठी की सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी। वहीं लखीमपुर खीरी सीट से दो बार के सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी हैट्रिक लगाने से चूक गए। उन्हें समाजवादी पार्टी के उत्कर्ष वर्मा ने 33 हजार से अधिक वोटों से हराया। तीसरा झटका चदौली सीट से लगा, जहां केंद्रीय मंत्री महेन्द्रनाथ पांडेय अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे। उन्हें समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह ने 21 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी। महेन्द्रनाथ पांडेय चदौली सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे थे। मोदी सरकार के मंत्रियों का हार का सिलसिला यहीं नहीं थमा। फतेहपुर सीट से केंद्रीय मंत्री रहीं साध्वी निरंजन ज्योति को सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 33 हजा से अधीक वोटों से हराया।
लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। समाजवादी पार्टी के आरके वर्मा ने उन्हें 70 हजार से अधिक मतों से हराया। वे तीसरी बार इस सीट से ताल ठोक रहे थे। इसके अलावा बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम यूपी की मुजफ्फरनगर सीट पर लगा, जहां रालोद से गठबंधन के बावजूद केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान हार गए। उन्हें सपा के हरेंद्र मलिक ने 24 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया। जालौन लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह भी हार गए। समाजवादी पार्टी के नारायण दास अहिरवार ने उन्हें 53 हजार से अधिक मतों पर हराया।

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान टिकट बंटवारे के चलते उठाना पड़ा। पार्टी ने इस बार 2019 में जीते 100 से ज्यादा सांसदों के टिकट काट दिये थे। ज्यादातर जगह नए चेहरे उतारे। इसमें भी अधिकतर ऐसे नेता थे, जो दूसरी पार्टियां छोड़कर बीजेपी में आए थे। राजनीति को करीब से समझने वाले कहते हैं कि चुनाव में पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ा। मोदी की गारंटी’ जैसे दावे और मुफ्त राशन जैसी स्कीम के बावजूद महंगाई और बेरोजगारी इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बनकर उभरा। कई राज्यों में विपक्षी पार्टियां महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रही थीं। चुनाव में भी मुद्दा बनाया। पेपर लीक, नौकरियों के खात्मे का मुद्दा उठाया, पर बीजेपी ने इसको नजरंदाज किया। बीजेपी की राजनीति पर नजर रखने वाले एक जानकार कहते हैं कि हिंदी पट्टी के ज्यादातर राज्यों में लोग पार्टी के सांसदों से नाराज थे, क्योंकि पिछले 5 साल के दौरान अधिकतर सांसद क्षेत्र में गए नहीं। एक तरीके से वे जनता से कट गए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तमाम रैलियों में विपक्ष पर आरक्षण की राजनीति का आरोप लगाया। पर ऐसा लगता है कि यह मुद्दा बीजेपी पर बैकफायर कर गया। मुस्लिम बहुल सीटों पर विपक्ष को एकमुश्त वोट गया है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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