सम-सामयिक

अपराध की राह पर भटकता बचपन

उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक नाबालिग बेटे ने अपने दो दोस्तों की मदद से किसान पिता की गोली मारकर हत्या कर दी और वारदात को आत्महत्या का मामला बता दिया। अब पुलिस जांच में पाया गया है कि पिता का कुसूर इतना था कि इकलौते बेटे की किसी गलती पर पिटाई की थी जिसका अंजाम बेटे ने पिता को खेत पर बुला कर गोली से उड़ा दिया। यह वारदात बता रही है कि समाज में नाबालिग मन मस्तिष्क कितने शातिर ढंग से अपराध कर रहे हैं।
पिछले कुछ माह में राजधानी दिल्ली के मुंडका में नाबालिग की गला रेतकर हत्या। फर्श बाजार में 73 वर्षीय बुजुर्ग की चाकू घोंपकर हत्या। आनंद पर्वत में बदले के लिए युवक की हत्या। जहांगीरपुरी में वर्चस्व कायम करने के लिए युवक की हत्या। इन सभी हत्याओं का जिक्र कर रहे हैं, इन सभी को 14 से 17 साल के बीच के नाबालिग लड़कों ने अंजाम दिया। जिस उम्र में कंधे पर बस्ता और हाथों में कलम होना चाहिए, उसी उम्र में नाबालिग अपराध की दुनिया का रुख कर रहे हैं। इसके पीछे कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन पुलिस के लिए यह नाबालिग मुसीबत बन गए हैं।
पढ़ने की उम्र में नाबालिग अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा रहे हैं। चोरी, लूटपाट ही नहीं, लोगों का खून बहा रहे हैं। सगे संबंधी पडोसी और परिचित के साथ भी वारदात करने में उनको जरा भी हिचक नहीं हो रही। कई नाबालिग अपराधी तो ऐसे हैं, जो बाल सुधार गृह जाकर भी नहीं सुधर रहे। वह वहां से बाहर आने के बाद अपराध के क्षेत्र में फिर से सक्रिय हो रहे हैं।
बीते दिनों दिल्ली के विजय विहार इलाके में लूट का विरोध करने वाले एक ऑटो चालक की निर्मम हत्या में पांच नाबालिगों की गिरफ्तारी गंभीर चिंता बढ़ाने वाली है। देश में नाबालिगों के बालिगों की तर्ज पर गंभीर अपराधों को अंजाम देने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। वहीं दिल्ली की घटना में गिरफ्तार किशोरों की स्वीकारोक्ति डराने वाली है कि वे नशे के आदी हैं और पैसे जुटाने के लिये लूटपाट जैसे अपराधों में लिप्त रहते हैं। यह घटना हमारे समाज में पनप रही विकृतियों की ओर इशारा कर रही है
सीलमपुर में 13 वर्षीय करण की हत्या इसका स्पष्ट उदाहरण है। यह समाज के लिए चिंता की बात है। जघन्य अपराधों में संलिप्त नाबालिगों को लेकर कानून लचर होने के कारण यह दुस्साहस बढ़ रहा है। नाबालिग अपराधियों के हाथों जिनके अपने मारे गए, वह कानून में बदलाव के जरिये सख्ती करने की मांग कर रहे हैं।
जाफराबाद में 11 जुलाई 2024 को भाई व दोस्त के साथ कपड़े खरीद रहे 15 वर्षीय मोहम्मद फैज की दुकान से बाहर निकाल बीच बाजार में गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस वारदात में नाबालिग शामिल था। उसे पुलिस ने पकड़ कर बाल सुधार गृह भेजा था। अब वह बाहर है। बालिग हो चुका है और हाल में उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने उसे एक अन्य अपराध के मामले में गिरफ्तार किया है।
आरोपित गैंगस्टर बन चुका है। मृतक के पिता मोहम्मद गुफरान का कहना है कि यह न्यायोचित नहीं है कि हत्या जैसा गंभीर अपराध करने वाले को इस बात पर रहम दे दिया जाए कि वह नाबालिग है।
न्यू सीलमुर के 17 वर्षीय कुणाल की इसी वर्ष 17 अप्रैल को हत्या कर दी गई थी। इस वारदात में दो नाबालिग शामिल थे, जिन्हें पुलिस ने पकड़ा था। कुछ ही महीनों में वह बाल सुधार गृह से बाहर आ गए। अब वह खुली हवा में सांस ले रहे हैं। यह स्थिति देख कर कुणाल के स्वजन का दम घुट रहा है। उसकी मां प्रवीन अब न्याय की उम्मीद छोड़ चुकी हैं।
अब वक्त आ गया है कि किशोर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानूनों के प्रावधान हों। इसकी वजह यह है कि किशोरों को अपराध करने के बाद सामान्य जेलों में रखने के बजाय बाल सुधार गृहों में भेज दिया जाता है लेकिन बाल सुधार गृहों में रहने के दौरान भी ऐसे अपराधी किशोरों में बड़ा बदलाव नजर नहीं आता। अक्सर देखा जाता है कि बाल सुधार गृहों में रहने की सीमित अवधि के बाद कई किशोर फिर अपराधों की दुनिया में उतर जाते हैं। समाज विज्ञानियों का मानना है कि किशोर अपराधों को लेकर कानून के अस्पष्ट और लचर होने की वजह से भी दोषियों को दंडित नहीं किया जा सकता। अक्सर कहा जाता है कि नाबालिगों की सजा के मामले में अभियुक्त की उम्र को घटा दिया जाए। दरअसल, बदलते परिवेश में समय से पहले किशोरों में वयस्कों की नकारात्मक प्रवृत्तियां पनपने लगी हैं जिसके चलते वे बड़ों के जैसे अपराध तो करते हैं लेकिन उन्हें उस अनुपात में सजा नहीं दी जा सकती। वैसे यह भी हकीकत है कि किशोरों के सामने लंबा भविष्य होता है। यदि परिस्थितिवश या मजबूरी में वे कोई अपराध करते हैं तो उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। वैसे भी दंड का अंतिम उद्देश्य व्यक्ति में सुधार ही होता है।
किशोर सजा काटने के बाद भी लगातार अपराध की दुनिया में सक्रिय रहते हैं तो उसके लिये दंड के सख्त प्रावधान होने चाहिए। वहीं, अपराध के मूल में आर्थिक विषमताएं भी हैं, जिसके चलते वे पढ़-लिख नहीं पाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में तमाम सामाजिक विद्रूपताएं भी किशोर मन में नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। जैसेकि दिल्ली की घटना में लिप्त किशोरों ने स्वीकारा कि वे नशे के आदी हैं, यह घटना हमारे समाज में नशे के नासूर से उपजे संकट की ओर इशारा करती है। ऐसे में नशे पर अंकुश के साथ ही उन सामाजिक विसंगतियों पर नजर रखने की जरूरत है जो किशोर मन के भटकाव को जन्म देती हैं। दूसरा संकट भारतीय समाज में जीवन मूल्यों का तेजी से होता पराभव भी है। किशोरों को नैतिक शिक्षा का पाठ सही ढंग से न स्कूलों में मिल पा रहा है और न ही घरों में।
इस संकट का एक बड़ा पहलू इंटरनेट पर जहरीली व अश्लील सामग्री की प्रचुरता भी है। अक्सर किशोरों व वयस्कों के अपराधों के कारण जानने पर पता चला कि उन्होंने इंटरनेट पर अश्लील सामग्री देखने के बाद यौन हिंसा को अंजाम दिया। ऐसे में बच्चों को संस्कार स्कूल और घर के बजाय मोबाइल से मिल रहे हैं। इंटरनेट पर प्रसारित आपत्तिजनक सामग्री को कौन और किस उद्देश्य से डाल रहा है, कहना कठिन है। लेकिन इतना तय है कि सोशल मीडिया व इंटरनेट से जुड़े विभिन्न माध्यमों में परोसी जा रही विषैली सामग्री बाल मन पर बुरा असर डाल रही है। ऐसे में नशा, अश्लीलता और अपराध उन्मुख कार्यक्रम किशोरों को अपराध की गलियों में गुजरने के लिए उकसा रहे हैं। बहरहाल, अब समय आ गया है कि नीति-नियंताओं को विचार करना चाहिए कि हत्या-बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त किशोरों के लिए कैसे कानून बनें। निश्चय ही कानून का मकसद किसी अपराधी में सुधार ही होना चाहिए लेकिन इस छूट को सजा से छूट का हथियार बनने देने से भी रोकना चाहिए। कानून में समय परिस्थितियों की मांग के अनुसार परिवर्तन और सुधार करने की जरूरत है। अब ऐसे गिरोह भी सक्रिय हैं जो नाबालिगों को कच्चा लालच देकर हायर कर संगीन वारदातों को साजिशन अंजाम दिला रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि नाबालिगों की परवरिश के लिए समाज में स्वस्थ माहौल की स्थापना की जाए। उनके भीतर नैतिकता रोपी जाए ताकि बचपन को अपराधी बनने से बचाया जा सके।(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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