चीन ने दी अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती

चीन ने केवल सैन्य ताकत में बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी सीधे तौर पर अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दी है। आंकड़ों के मुताबिक बीते साल चीन और अमेरिका के बीच 575 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। यह व्यापार पूरी तरह एकतरफा है। इसमें से चीन से अमेरिका को 501 अरब डॉलर का निर्यात हुआ जबकि अमेरिका से चीन ने केवल 74 अरब डॉलर का आयात किया। व्यापार में इसी असंतुलन से निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चिढ़े हुए हैं। वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलने की बात कह रहे हैं। लेकिन, यह बात भावनात्मक ज्यादा है। वास्तविकता यह है कि वह चाहकर भी चीन के खिलाफ बहुत आक्रामक नहीं हो सकते हैं। हालांकि इस भावनात्कम मुद्दे पर उन्हें अमेरिका में फिर से शानदार जीत मिली है। अमेरिका को भले ही दुनिया का अंकल सैम कहा जाता हो लेकिन, वो अमेरिका अब अमेरिका नहीं रहा। बीते करीब साढ़े तीन दशक में दुनिया काफी बदल चुकी है। शीत युद्ध के बाद की दुनिया पूरी तरह अलग है। चीन, अमेरिका के धुर विरोधियों का केंद्र बन चुका है। इतना ही नहीं वह अमेरिका को पूरी तरह अपना शिकंजा कस चुका है। उस शिकंजे से निकलने के लिए अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हों या कोई और३ कोई भी फड़फड़ाने के अलावा कुछ खास नहीं कर पाएंगे।
यूएसए टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अहम बात यह है कि कहने को यह अच्छा लगता है कि अमेरिका चीनी उत्पादों पर 100 फीसदी से अधिक का टैरिफ लगा देगा। इससे चीन के माल महंगे हो जाएंगे और वे फिर अमेरिकी बाजार में डंप नहीं किए जाएंगे लेकिन, क्या आपको पता है कि इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण महंगाई की मार झेल रही अमेरिकी जनता ट्रंप के इस कदम से खुश होगी? दुनिया के अर्थशास्त्री ट्रंप के इस फैसले से चिंतित हैं। इससे अमेरिका में बेतहाशा महंगाई बढ़ेगी। ट्रंप अगर ऐसा करते हैं तो एक आम अमेरिकी परिवार पर हर साल 2600 अमेरिकी डॉलर 2.20 लाख रुपये का बोझ पड़ेगा।