लेखक की कलम

चिराग भी पीके की सियासत के मुरीद

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पिछले तीन दशक को छोड़ दें तो बिहार में सवर्ण राजनीति का दबदबा रहा है, जिससे चार कदम आगे चलकर प्रशांत किशोर ने दलित राजनीति का रुख किया है। बहरहाल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में सक्रिय जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर की इसी संदर्भ में सराहना की है। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर एक ईमानदार और साफ-सुथरी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उनका नजरिया जाति की राजनीति से ऊपर है, जो बिहार जैसे राज्य में बदलाव की दिशा में अहम है। हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चिराग ने यू टर्न ले लिया है। अब वह कहते हैं कि अभी बीजेपी, जेडीयू और अन्य सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे की बातचीत शुरू नहीं हुई है। अपने पहले दिए बयान कि एलजेपी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी- पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा, मैंने ये एनडीए की जीत सुनिश्चित करने के नजरिए से कहा था। हमारा लक्ष्य गठबंधन को मजबूती देना है। इस दौरान उन्होंने विपक्षी दलों पर बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर झूठा नैरेटिव फैलाने और लोगों में डर पैदा करने का आरोप भी लगाया। साथ ही, उन्होंने चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की निष्पक्ष भूमिका और जाति निरपेक्ष दृष्टिकोण की खुले शब्दों में सराहना की। चिराग पासवान ने कहा कि कांग्रेस समेत विपक्षी दल चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर राजनीति कर रहे हैं, जबकि खुद उन्हीं ने पहले वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायतें की थीं। उन्होंने कहा, जब आयोग कार्रवाई कर रहा है, तो अब विपक्ष को फिर आपत्ति है। ये लोग जनता को डरा कर वोट बटोरना चाहते हैं। उन्होंने साफ किया कि एसआईआर एक नियमित प्रक्रिया है, जिससे वोटर लिस्ट की शुद्धता सुनिश्चित होती है और इससे किसी को डरने की जरूरत नहीं है।
जन सुराज पार्टी (जसुपा) के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) ने कुछ दिनों पहले बयान जारी कर कहा था कि जातियों के वर्गीकरण में हेरफेर चुनावी लाभ के लिए किया गया। जातियों का वर्गीकरण बदलना सरकार की राजनीति का हिस्सा रहा है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर द्वारा अनुशंसित एनेक्चर-1 में आज 23 नई जातियां जोड़ी गई हैं। एनेक्चर-2 की जातियों को एनेक्चर-1 में डालना या एनेक्चर-1 की जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देना नीतीश कुमार की राजनीति का हिस्सा रहा है। एनेक्चर में जातियों की सूची में राज्य सरकार बदलाव कर सकती है, लेकिन संविधान के अनुसार राज्य सरकार मात्र ओबीसी, अनुसूचित जाति या जनजाति की सूची में नाम प्रस्तावित कर सकती है। प्रशांत किशोर ने कहा कि दर्जा देना या नहीं देना, पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन है। तांती-तंतवा समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की घोषणा कर दी गई, लेकिन केंद्र सरकार या न्यायालय के सामने गुहार नहीं लगाई। जन सुराज के सूत्रधार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नाम में अक्सर पांडेय जोड़कर बयानबाजी होती रही है। कई नेताओं ने कहा है कि उनका नाम प्रशांत पांडेय है। अब पांडेय जोड़कर उनका नाम लेने वालों को प्रशांत किशोर ने करारा जवाब दिया है। पीके ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा है कि संविधान में कहां लिखा है कि सवर्ण राजनीत नहीं कर सकता है या कोई राजनीतिक प्रयास नहीं कर सकता है? एक सवाल के जवाब में प्रशांत किशोर ने कहा, आपने मुझे कहा पांडेय जी के लड़के, नीतीश कुमार जिस समाज से आते हैं उनको कुर्मी कहा जाता है तो कुर्मी समाज की संख्या बिहार में कितनी है? मेरा जातियों में यकीन नहीं है। मेरे नाम में पांडेय नहीं है, लेकिन लोग राजनीत के लिए चला रहे हैं। अगर आप ब्राह्मणों की संख्या जोड़ें तो बिहार में कुर्मियों से ज्यादा है।
प्रशांत किशोर ने कहा, अगर कोई कुर्मी समाज का आदमी बिहार को लीड कर सकता है तो कोई ब्राह्मण, कुशवाहा, नोनिया, सहनी, मुसहर या पासवान क्यों नहीं कर सकता है? जिन लोगों ने ये भ्रम फैला रखा है कि अगर आपकी जाति की संख्या नहीं होगी तो आप कैसे चुनाव लड़ोगे? कैसे चुनाव जीतोगे? तो नीतीश कुमार की जाति की संख्या कितनी है? बता दें कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बराबर अलग-अलग जिलों में जाकर लोगों से मिल रहे हैं। ध्यान रहे 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज से 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का पीके ने ऐलान कर दिया है। इससे पहले दो अक्टूबर को जन सुराज को पार्टी में तब्दील करेंगे। उन्होंने कहा है कि 243 सीटों में से 40 पर मुस्लिम उम्मीदवारों को मौका देंगे। उसी तरह महिलाओं का भी ख्याल रखा गया है।
आमतौर पर यह माना जाता है कि फिल्म कलाकारों के लिए सभी दलों के दरवाजे खुले होते हैं। दूसरे फिल्म कलाकार हमेशा सत्ता की नजदीकी चाहते हैं। दरअसल धन संपत्ति बढ़ने के साथ-साथ हर कलाकार को सुरक्षा गारंटी की जरूरत होती है। ये केवल और केवल सत्ताधारी पार्टी से मिल सकती है। इसके बावजूद जिस तरह प्रशांत किशोर को वर्तमान फिल्म कलाकारों का सपोर्ट मिल रहा है वह
ध्यान देने वाली बात है।
बिहार विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर और उनके राजनीतिक दल जनसुराज की चाहे जो गति हो पर इतना तो मानना ही पड़ेगा कि हर क्षेत्र का महारथी उनके पास आना चाहता है। बिहार में पिछले छह महीने में गैर राजनीतिक दलों के लोगों की आवाजाही में जनसुराज नंबर एक पर रही है। फिल्म कलाकर, पूर्व नौकरशाह, राजनीतिक, प्रोफेशनल सभी तरह के लोगों ने जनसुराज जॉइन किया है। यह क्रम अभी भी बना हुआ है। अभी ताजा क्रम में भोजपुरी फिल्मों के एक और कलाकार रितेश पांडेय जनसुराज में शामिल हुए हैं। सवाल उठता है कि इतने कम समय में अचानक फिल्म कलाकारों ही नहीं हर फील्ड के लोगों की पहली पसंद कैसे बन गई जनसुराज?
जनसुराज बिहार में एक नई तरह की राजनीति को लेकर आई है। बिहार की राजनीति अभी तक जाति आधारित और भ्रष्टाचार में डूबी रही है। जाहिर है कि राज्य के लोगों को प्रशांत किशोर की आदर्शवादी बातें बहुत लुभा रही हैं। बिहार का हर शख्स जानता है कि प्रशांत किशोर एक पढ़े लिखे चुनावी रणनीतिकार हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी-नीतीश से लेकर ममता बनर्जी आदि को जिताने में मुख्य भूमिका निभाई है। लोगों को लगता है कि प्रशांत किशोर एक दिन देश के बड़े नेता बनेंगे। यही कारण है कि बिहार की राजनीति के कई दिग्गज नेताओं
ने भी पार्टी में शामिल होकर इस बदलाव का समर्थन किया है। लोग एक
ऐसी पार्टी की तलाश में हैं जो शिक्षा, रोजगार और शराबबंदी जैसे मुद्दों पर ठोस समाधान दे सके। क्या चिराग पासवान भी यही मानकर बयान दे
रहे हैं। (हिफी)

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