नागरिकता संशोधन कानून सामयिक

यह समय की मांग भी है और जरूरत भी है। ईसाई अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। इसके लिए प्रलोभन भी देते हैं। हमारे देश में कितने ही गरीब ईसाई धर्म को अपनाने को बाध्य हो गए। इसी तरह मुसलमान अपने धर्म का प्रचार प्रसार करते रहते हैं। भारत में तो मुगलकाल में हिंदुत्व को तलवार के बल पर रौंदकर लोगों को मुसलमान बनाया गया। हजार साल की गुलामी के बाद हमारा भारत आजाद हुआ है तो हिंदुत्व की रक्षा का दायित्व हमें निभाना ही चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून अर्थात सीएए इसी दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण और सामयिक कदम है।
केंद्र की मोदी सरकार ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार का यह बड़ा कदम है। इसके तहत अब तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी। इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए ऑनलाइन पोर्टल पर आवेदन करना होगा। उधर, केंद्र द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने के बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। कुछ स्वार्थी नेताओं ने विरोध भी जताया है। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता इसे विभाजनकारी बता रहे हैं लेकिन उनके पास भी इसका जवाब नहीं है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में मुसलमान तो बहुसंख्यक हैं। उनका भारत में पलायन नहीं हो रहा है बल्कि वे किसी साजिश के चलते हिंदुस्तान आना चाहते हैं। इसलिए उनको नागरिकता देने का औचित्य ही नहीं बनता है।
दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने सीएए को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। इसे पार्टी ने बड़ा मुद्दा बनाया था। गृह मंत्री अमित शाह हाल ही के अपने चुनावी भाषणों में कई बार नागरिकता संशोधन कानून या सीएए को लागू करने की बात कर चुके थे। उन्होंने ऐलान किया था कि लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू कर दिया जाएगा। अब केंद्र सरकार ने इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करते हुए इसे लागू कर दिया है। सीएए के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से आने वाले बाकी धर्मों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। सीएए दिसंबर 2019 में पारित हुआ था और बाद में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी लेकिन इसके खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। यह कानून अब तक लागू नहीं हो सका क्योंकि इसके कार्यान्वयन के लिए नियमों को अधिसूचित किया जाना था। सीएए नियम जारी होने के बाद जो लोग बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे केवल उन्हें ही केंद्र सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीयता दी जाएगी। सीएए में छह गैर-मुस्लिम समुदायों हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी शामिल हैं। इन्हें केवल भारतीय नागरिकता तब ही मिल सकती है, जब इन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में शरण ली हो। नागरिकता अधिनियम, 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत कानून है। इसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए जरूरी शर्तें क्या हैं।
इस अधिनियम में पहले भी कई बार संशोधन हो चुका है। इसीक्रम में 2019 में एक बार केंद्र की बीजेपी सरकार इस कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाई थी, जिसे नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 कहा गया। संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद जब इस विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर लगी तो यह कघनून बन गया। अब 11 मार्च, 2024 को इस कानून को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी की गई है। नागरिकता संशोधन कानून से असम एनआरसी द्वारा बाहर किए गए लोगों की मदद करने की उम्मीद जताई गई है।
प्रदर्शनकारियों को लगता है कि सीएए से राज्य में गैर-मुस्लिम प्रवासियों को लाभ होगा। नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया, जिसमें 125 मत पक्ष में थे और 105 मत विरुद्ध में थे। बिल पास हो गया और इस विधेयक को 12 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिल गई। बिल के पारित होने से उत्तर-पूर्व, पश्चिम बंगाल और नई दिल्ली सहित पूरे देश में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। राष्ट्रीय राजधानी 15 दिसंबर को ठप पड़ गई, जब जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा विरोध मार्च का आयोजन किया गया और इसने हिंसक रुख अपना लिया। छात्र और पुलिस आमने-सामने थे। झड़पें हुईं और सार्वजनिक बसों में आग तक लगाई गई। हिंसक झड़पों के बाद, दिल्ली पुलिस ने हिंसा में शामिल होने के लिए कथित तौर पर जामिया के 100 से अधिक छात्रों को हिरासत में लिया। जामिया के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के विरोध में और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई की मांग को लेकर 15 दिसंबर को देर शाम जेएनयू और डीयू जैसे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों सहित हजारों लोग दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर एकत्र हुए।
नागरिकता संशोधन कानून, 2019, अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोलता है, जो भारत के तीन पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) से उत्पीड़न या किसी और कारण से अपना देश छोड़कर भारत में आना चाहते हैं। इसका किसी भी भारतीय नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से आते हो। इस संशोधन बिल के आने से पहले तक, भारतीय नागरिकता के पात्र होने के लिए भारत में 11 साल तक रहना अनिवार्य था। नए बिल में इस सीमा को घटाकर छह साल कर दिया गया है। नागरिकता संशोधन कानून, 2019 से असम एनआरसी द्वारा बाहर किए गए लोगों की मदद करने की उम्मीद जताई गई है। हालांकि, राज्य के कुछ समूहों को लगता है कि यह 1985 के असम समझौते को रद्द करता है।
1985 के असम समझौते ने 24 मार्च, 1971 को अवैध शरणार्थियों के निर्वासन की कट-ऑफ तारीख तय की थी, जबकि एनआरसी का पूरा उद्देश्य गैरकानूनी प्रवासियों को उनके धर्म से बेदखल करना था, असमिया प्रदर्शनकारियों को लगता है कि सीएए से राज्य में गैर-मुस्लिम प्रवासियों को लाभ होगा। एनआरसी के तहत, एक शरणार्थी भारत का नागरिक होने के योग्य है यदि वे साबित करते हैं कि या तो वे या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 को या उससे पहले भारत में थे। असम में इस प्रक्रिया को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को बाहर करने के लिए शुरू किया गया था, जो भारत आए थे। बता दें कि 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
सीएए के लागू होने पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने फैसले का विरोध किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि सीएए को अधिसूचित करने में मोदी सरकार को 4 साल और 3 महीने लग गए. पीएम दावा करते हैं कि उनकी सरकार प्रोफेशनल ढंग से और समयबद्ध तरीके से काम करती है. सीएए को लागू करने में लिया गया इतना समय पीएम के सफेद झूठ की एक और झलक है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अधिसूचना के लिए जानबूझकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले का समय चुना है। यह साफतौर पर चुनाव को ध्रुवीकृत करने के लिए किया गया है। यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कहते हैं कि जब देश का नागरिक रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं तो दूसरे के लिए नागरिकता कानून लाने से क्या होगा? जनता अब भटकावे की राजनीति का भाजपाई खेल समझ चुकी है। बीजेपी सरकार ये बताए कि उनके 10 सालों के शासन में लाखों नागरिक देश की नागरिकता छोड़कर क्यों चले गए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि जब चुनाव आता है तो बीजेपी ऐसा करने लगती है। कानून में अगर भेदभाव है तो हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं फिर चाहे वो धार्मिक हो, भाषाई हो या फिर जाति आधारित हो। दो दिन में किसी को नागरिकता नहीं दे सकते हैं। ये सिर्फ लॉलीपॉप और दिखावा है। अगर सीएए के बाद ही कुछ लोगों को नागरिक कहते हैं तो क्या ये लोग पहले नागरिक नहीं थे? (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)