जनहित में सरकार के साथ सीजेआई

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
अभी कुछ ही दिनों पहले कर्नाटक के एक जज ने एक विशेष जगह को मिनी पाकिस्तान कहा था तब भारत के मुख्य न्यायाधीश अर्थात सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कड़ा एतराज जताया। जज साहब को माफी भी मांगनी पड़ी। यह सर्वोच्च न्यायालय का स्वतंत्र रूप से काम करने का उदाहरण है। जनहित में यह अदालत सरकार के साथ भी खडी रहती है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा भी है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज अदालत से संबंधी कामों को आजादी के साथ करते हैं लेकिन जब अदालत के बुनियादी ढांचे और बजट से संबंधित मुद्दों की बात होती है तो हम सरकार के साथ खड़े होते हैं क्योंकि हमारा मिशन एक ही है। सीजेआई ने बताया कि इसके पीछे वजह यह है कि ऐसे प्रोजेक्ट सीधे आम लोगों से जुड़े होते हैं। सीजेआई ने अपनी बात को और ज्यादा साफ करते हुए कहा कि यह प्रोजेक्ट जजों या वकीलों के निजी प्रोजेक्ट नहीं हैं और हमारे नागरिकों से जुड़े हुए हैं। चंद्रचूड़ 29 मार्च, 2000 को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने थे। 31 अक्टूबर, 2013 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस और 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त होने से पहले चंद्रचूड़ भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी रहे हैं। वह मुंबई विश्वविद्यालय और अमेरिका की ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ 23 सितंबर को बांद्रा (पश्चिम) के ताज लैंड्स एंड में मुंबई हाई कोर्ट की नई बिल्डिंग की नींव रखने के कार्यक्रम में बोल रहे थे। सीजेआई ने कहा कि देश के निर्माण में और कानूनी संस्कृति के विकास में मुंबई हाई कोर्ट का जो रोल रहा है उसे कम करके नहीं आंका जा सकता। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक शासन के दौरान भी मुंबई हाई कोर्ट एक स्वतंत्र संस्था रहा।
सीजेआई ने कहा कि अदालत के नए परिसर के निर्माण में तेजी लाई जानी चाहिए। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि लोग महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं के मामलों में जल्द से जल्द न्याय मिलने की उम्मीद करते हैं और सरकार इसके लिए बुनियादी ढांचा और सहायता उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है जिससे आरोपियों को जल्द सजा दी जा सके। फडणवीस ने कहा कि नए परिसर का काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया जाएगा।
याद दिलाना होगा कि कुछ दिन पहले ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गणेश पूजा में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर गए थे तो इसे लेकर काफी सियासी बवाल हुआ था। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली के मंच से इसका जवाब दिया था। मोदी ने कहा था कि पहले अंग्रेजों को गणेश उत्सव खटकता था और अब कांग्रेस और उसके साथी विपक्षी दलों को गणेश पूजा से परेशानी हो रही है।
ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी पॉक्सो एक्ट की धारा 15 और आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है। सीजेआई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट जनहित के मामलों में सरकार के साथ खड़ी रहती है। देश के ही किसी हिस्सा को मिनी पाकिस्तान कहने पर कट सीजेआई ने जनहित को प्राथमिकता दी है। कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस सी श्रीशानंदा ने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम इलाके को मिनी पाकिस्तान कहा था। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने इस पर संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट से जवाब मांगा। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस राजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी। बेंच ने कहा, हमारा ध्यान न्यायिक सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस वी श्रीशानंद द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों की ओर आकर्षित हुआ है। हमने एजी और एसजी से सलाह मांगी है। हमने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस श्रीशानंद के दो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। इनमें वे विवादास्पद टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं। इसमें वे एक में बेंगलुरु के मुस्लिम बाहुल्य इलाके को मिनी पाकिस्तान कहते नजर आ रहे हैं वहीं, दूसरे वीडियो में वे महिला वकील पर असंवेदनशील टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी इस वीडियो को शेयर किया था।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने जज की टिप्पणी पर संज्ञान लेते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, हम कुछ बुनियादी दिशानिर्देश तय कर सकते हैं। इस दौरान सीजेआई ने कहा, सोशल मीडिया के इस युग में, हम पर कड़ी नजर रखी जाती है और हमें उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।
सीजेआई ने एक ऐसे मुद्दे को हाईलाइट कर दिया जो साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ सकता है। दिल्ली से मात्र डेढ़ घंटे की दूरी पर बसे मेरठ शहर का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाजवाब है। ध्यान रहे 1857 में भारत में शासन कर रही ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहली बार बंदूकें मेरठ में ही उठी थीं। भारत की आजादी के 77 साल बाद उसी मेरठ की कैंची बाजार के पास काम करने वाले लोग अक्सर अपने रिश्तेदारों से सुनते हैं, तू यार, रोज मिनी पाकिस्तान काहे को जाता है। पूरे मेरठ में काम न है और कहीं? मुस्लिम लीग की स्थापना भारत के मुसलमानों के ‘हितों की रक्षा करने के लिए’ हुई बताई जाती है जबकि हिंदू महासभा की स्थापना भी उसी दौरान हुई जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग में हुए समझौते से सभी प्रांतों में मुसलमानों को विशेष अधिकार और संरक्षण मिले लेकिन इलाकों की ‘ब्रैंडिंग’ अर्थात नामकरण आजादी के पहले वाले भारत में ही शुरू हो चुका था। राजनीतिक विश्लेषक नाजिमा परवीन अपनी किताब ‘कंटेस्टेड होमलैंड्स: पॉलिटिक्स ऑफ स्पेस एंड आइडेंटिटी’ में इलाकों के सांप्रदायिक बँटवारे के इतिहास की वजह को ‘एक मॉडर्न वाकया बताती हैं’। भारत पर हुकूमत करने वाली ब्रिटिश सरकार ने धर्म के आधार पर मोहल्लों को पहचान दी। उन्होंने तीन तरह के इलाक बनाए, हिंदू इलाका, मुस्लिम इलाका और मिक्स्ड जोन। जब 1940 में भारत के विभाजन की मांग बढ़ती चली गई तो हिंदू राष्ट्र या पाकिस्तान की डिमांड इसी आधार पर गहराती गई।
इस बात का शायद सबसे बड़ा उदाहरण राजधानी दिल्ली में ही दिख जाता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के बड़े नेता और आजादी के बाद में नेहरू कैबिनेट में मंत्री रहने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद ने विभाजन के करीब 24 साल पहले ही आगे आने वाले दिनों और दो अलग देशों में अल्पसंख्यकों की दशा पर अपनी चिंता जाहिर कर दी थी। मौलाना अबुल कलाम आजाद: ए क्रिटिकल एनालिसिस, लाइफ एंड वर्क के मुताबिक 1923 के कांग्रेस पार्टी अधिवेशन में अध्यक्ष होते हुए अपने भाषण में मौलाना आजाद ने कहा था, अगर बादलों के बीच से एक फरिश्ता उतर कर आए और दिल्ली की कुतुब मीनार पर बैठ कर कहे कि भारत को स्वराज मिल सकता है, बस हिंदू-मुसलमान एकता छोड़नी पड़ेगी तो मैं स्वराज को त्याग हिंदू-मुस्लिम एकता को चुनूँगा। जाने-माने लेखक-पत्रकार और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद और उपाध्यक्ष बलबीर पुंज का मत है कि, पाकिस्तान की डिमांड कहाँ से आई? ये डिमांड पाकिस्तान के लाहौर या पेशावर से नहीं आई। इसकी 90 फीसदी डिमांड तब के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों के मुस्लिमों ने की थी और वे बँटवारे के बाद वहाँ गए भी नहीं। उनका माइंडसेट भी वही है, लोग भी वही हैं। बस उन्होंने दो काम किए हैं। पहला, घर के बाहर मुस्लिम लीग का बैनर हठा कर कांग्रेस का बोर्ड लगा लिया और दूसरा 1930 और 1940 के दशक में जैसे वे कांग्रेस को गाली देते थे, अब वैसी ही गालियाँ भाजपा को देते हैं। (हिफी)