शिंदे को सफाई देने की नौबत

महाराष्ट्र मंे सत्तारूढ़ महायुति के घटक दलों को कुछ असहज स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। सरकार के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता और राज्य के डिप्टी सीएम अजित पवार का महिला डीएसपी से टेलीफोन विवाद चर्चा का विषय बना ही हुआ था, इस बीच मराठों का आंदोलन समाप्त कराने के श्रेय पर बयानबाजी से पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे असहज स्थिति मंे दिख रहे हैं। एकनाथ शिंदे को इस मामले में सफाई तक देनी पड़ी है। महाराष्ट्र सरकार ने मराठों की मांग मानकर उनका आंदोलन समाप्त करवा दिया है। इसको लेकर विपक्ष के साथ सरकार मंे भी तरह-तरह की बयानबाजी होने लगी। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के ‘देवभाऊ’ बैनर ने राजनीति को और गर्मा दिया है। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कहते हैं कि सत्तारूढ़ महायुति सहयोगियों के बीच काम का श्रेय लेने की कोई होड़ नहीं है। वह मुख्यमंत्री के साथ एक टीम की तरह काम कर रहे हैं। उधर, एकनाथ शिंदे ने एक ऐसे नेता से हाथ मिलाया है जो भाजपा के सियासी दुश्मन माने जाते हैं।
मामला दो विज्ञापनों को लेकर गरमाया। एक विज्ञापन मंे मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को अनंतचतुर्दशी के मौके पर भगवान गणेश की पूजा करते हुए दिखाया गया जबकि दूसरे में छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए। दोनों विज्ञापनों के नीचे लिखा ‘देव भाऊ’। यह विज्ञापन किसने जारी किये, यह तो पता नहीं लेकिन इनमंे देवेन्द्र फडणवीस को मराठा आरक्षण के वास्तुकार के रूप मंे पेश किया गया है। इसी पर शिंदे ने बयान दिया कि वह श्रेय लेने की होड़ में नहीं हैं। ध्यान रहे कि सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे इसी मांग को लेकर अनशन कर रहे थे। मनोज जरांगे ने महाराष्ट्र के मंत्री और ओबीसी नेता छगन भुजबल पर अपने समूह के अन्य लोगों को आगे नहीं बढ़ने देने का आरोप लगाया। छगन भुजबल अजित पवार गुट के नेता हैं।
एकनाथ शिंदे अलग-थलग रह रहे थे। इसी बीच मुंबई से सटे उल्हासनगर के बाहुबली पप्पू कलानी परिवार के साथ एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने गठबंधन किया। पप्पू कलानी को क्षेत्र में कुख्यात अपराधी के तौर पर जानते हैं। वो उल्हासनगर के विधायक रह चुके हैं। उल्हासनगर में कलानी रसूखदार सियासी परिवार है। पप्पू कलानी के बेटे ओमी कलानी ने श्रीकांत शिंदे से मुलाकात की और आगामी उल्हासनगर पालिका चुनाव में शिवसेना को समर्थन देने का ऐलान किया। गौरतलब है कि, बीजेपी ने भी उल्हासनगर महानगर पालिका चुनाव की तैयारी शुरु कर दी है। उल्हासनगर से विधायक बीजेपी का है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार ने पप्पू कलानी के बेटे ओमी कलानी को हराया था।
1990 में पहली बार पप्पू कलानी ने कांग्रेस के टिकट पर उल्हासनगर से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1999 और 1999 के चुनाव में निर्दलीय लड़े और जीते। 2004 के चुनाव में वो आरपीआई के टिकट पर लड़े और जीते। इन चारों ही चुनाव में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को हराया। बाद मंे 2009 के चुनाव में पप्पू कलानी को हार का सामना करना पड़ा। उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार ने हराया। इसके बाद 2014 के चुनाव में शरद पवार की पार्टी के टिकट पर लड़े और जीते। हालांकि 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी उम्मीदवार ने ही उन्हें हराया। इसके बाद 2024 के चुनाव में शरद पवार की पार्टी ने कलानी के बेटे ओमी कलानी को टिकट दिया। हालांकि ओमी को हार मिली। कलानी के खिलाफ 19 केस दर्ज हैं। उन्हें 2013 में कोर्ट ने घनश्याम भाटीजा मर्डर केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। घनश्याम भटीजा की हत्या 27 फरवरी 1990 को ठाणे जिले के उल्हासनगर में पिंटो रिसॉर्ट्स के पास कर दी गई थी। कलानी परिवार शराब का व्यवसाय चलाता था और कई भट्टियों और होटलों का मालिक रहा है।
फडणवीस और शिंदे के बीच शीतयुद्ध को समाप्त कराने का प्रयास उच्च स्तर से किया गया। मुंबई में गणेशोत्सव के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस के सरकारी आवास ‘वरषा’ में पहुंचे। इस दौरान उनके साथ डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे भी थे। बाद में वो अपने बेटे जय शाह व पोते सहित पूरे परिवार के साथ लाल बाग के राजा के दर्शन करने पहुंचे। उसके साथ इस दौरान सीएम भी नजर आए। अमित शाह ने खुद अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से सीएम हाउस में गणपति पूजन की तस्वीरें शेयर की। अमित शाह का यह कदम महाराष्ट्र की बदलती राजनीति और सत्ता समीकरणों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। महाराष्ट्र में शिंदे गुट के सहयोग से बनी सरकार को भाजपा चला रही है, लेकिन सत्ता का असली केंद्र बिंदु अभी भी भाजपा ही है। अमित शाह का पहले शिंदे से मिलना और फिर सीधे फडणवीस के घर जाना इस बात का संकेत है कि पार्टी दोनों सहयोगियों के बीच संतुलन साधना चाहती है। फडणवीस भाजपा के भीतर निर्विवाद नेता हैं और संगठन पर उनकी पकड़ मजबूत है। शाह का उनके घर जाना दरअसल यह जताने जैसा है कि महाराष्ट्र में भाजपा की असली धुरी फडणवीस ही हैं।
इसे पहले एकनाथ शिंदे की नाराजगी को लेकर सियासी तापमान गर्म रहा। उनकी नाराजगी तब दिखने लगी जब वह लगातार चार महत्वपूर्ण बैठकों से अनुपस्थित रहे। दरअसल, 13 अगस्त को शुरू हुआ यह सिलसिला तब सामने आया, जब शिंदे ने राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। सूत्रों के अनुसार यह अनुपस्थिति स्वतंत्रता दिवस के ध्वजारोहण कार्यों को लेकर विवाद से जुड़ी थी। एकनाथ शिंदे के करीबी मंत्रियों दादा भुसे और भारत गोगावले को उनके गृह जिलों- नासिक और कोंकण में ध्वाजारोहण का अवसर नहीं दिया गया। इसके बजाय नासिक में भाजपा के गिरीश महाजन और रायगढ़ में राकांपा की अदिति तटकरे को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। इन दोनों जिलों में अभी तक पूर्णकालिक अभिभावक मंत्री नियुक्त नहीं हुए हैं। नाराज गोगावले ने इस मुद्दे को लेकर दिल्ली में भाजपा नेतृत्व से भी मुलाकात की। इस सिलसिले में वह कई बार दिल्ली गए। लेकिन, उनको दिल्ली में भी कोई खास भाव नहीं मिला। इसके बाद वह लगातार अहम बैठकों से दूर रहे हैं। इस बारे में शिवसेना ने सफाई दी कि शिंदे श्रीनगर में पारिवारिक दौरे पर थे, जिसके कारण वे बैठक में शामिल नहीं हुए। उसी हफ्ते फडणवीस ने गणेशोत्सव के लिए कानून-व्यवस्था की समीक्षा के लिए सह्याद्रि गेस्ट हाउस में बैठक बुलाई। मुंबई शहर के पालक मंत्री होने के नाते शिंदे की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी। यह दूसरी बड़ी बैठक थी, जिसमें शिंदे गायब थे और 19 अगस्त को मंत्रिमंडल की अगली बैठक में भी एकनाथ शिंदे नहीं
दिखे, हालांकि वे मुंबई में थे और भारी बारिश के बीच मिठी नदी का निरीक्षण करने गए थे। फिर 22 अगस्त को फडणवीस ने एएमआरयूटी और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं पर केंद्रित एक वॉर रूम समीक्षा बैठक की। इस बैठक में 9,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मार्च 2026 तक पूरा करने का सख्त निर्देश दिया गया। शहरी विकास विभाग के प्रभारी होने के बावजूद एकनाथ शिंदे इस बैठक में भी अनुपस्थित रहे। उनकी गैरमौजूदगी तब और उल्लेखनीय हो गई जब फडणवीस ने उनके विभाग की देरी पर नाराजगी जताई। अब तक यह शीतयुद्ध थमा नहीं है।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)