उत्तराखण्ड में मोटे अनाज

मोटे अनाजों ने आज दुनिया भर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है क्योंकि इनसे हमंे तमाम बीमारियों से भी छुटकारा मिल सकता है। चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों का यह मानना है कि मोटे अनाज खाने से पाचन क्रिया तो दुरुस्त रहती ही है, हड्डियां भी मजबूत होती हैं। सबसे बड़ी बात यह कि रसायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से खेत की मिट्टी जहरीली होती जा रही थी, अब मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने की मुहिम से खेतों की मिट्टी भी उपजाऊ और प्रदूषण रहित हो जाएगी। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने राज्य मंे मोटे अनाजों की खेती को विशेष प्रोत्साहन देने की रणनीति बनायी है।
हिमाचल की गोद मंे बसे उत्तराखंड लगभग 53453 वर्ग किलामीेटर मंे फैला हुआ है। असीम जैव विविधता लिये हुए यह राज्य प्राकृतिक संपदा का भंडार है। यहां के सीढ़ीनुमा खेत आज भी सोना उगल रहे हैं। एक दौर था जब उत्तराखंड के गांवों मंे कई तरह की फसलें लहलहाती थीं। अनेक प्रकार के मोटे अनाज इन सीढ़ीनुमा खेतों मंे पैदा होते थे। पहाड़ पर की जाने वाली खेती संस्कृति और परम्पराओं की हिस्सा थीं। पहाड़ों पर उगने वाला कोंदा, इंगौरा, कोंगी, चीड़ा, पारसा आदि यहां के पूजा-पाठ में प्रयोग किया जाता था। मोटा अनाज पहाड़ के हर व्यक्ति के भोजन का एक हिस्सा था। समय बीता और आधुनिकता के चलते मोटे अनाज को केवल गरीबों का भोजन माना जाने लगा। इसलिए उत्तराखंड मंे भी मोटे अनाज की खेती धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी थी। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मोटे अनाज की पैदावार को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया है।
इस वर्ष मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष में आठ अनाजों को शामिल किया है जिसमें, बाजरा, ज्वार, रागी (मंडुआ), सांवा, कंगनी, कोदो, कुटकी और चेना शामिल हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे किसान मंडुवा की खेती करते हैं। इन सभी किसानों से मंडुवा एकत्रित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रति किलो के हिसाब से प्रोत्साहन राशि देने की योजना बनाई गई है। मंडुवे का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को मंडुआ की उन्नत किस्मों का बीज दिया जाएगा और साथ ही प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
उत्तराखंड में लगभग 86 हजार हेक्टेयर में मंडुए की खेती की जाती है। इसमें 1.27 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। राज्य के गठन के बाद से प्रदेश में मंडुए की खेती का रकबा थोड़ा कम हुआ है। वर्ष 2000 में राज्य में मंडुए का क्षेत्र 1.32 लाख हेक्टेयर था जो अब वर्ष 2021-22 तक 86 हजार हेक्टेयर हो गया। पहाड़ों में मंडुए की खेती एक जगह पर नहीं हो पाती है। इस वजह से किसान छोटे-छोटे खेतों में मंडुआ का उत्पादन करते हैं।
भारत के कई राज्यों में मंडुआ की खेती अच्छी मात्रा में की जाती है। इन राज्यों में शामिल हैं उत्तराखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश। मंडुआ का उपयोग रोटी, ब्रेड, खीर, इडली और डोसा बनाने में किया जाता है। सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार जागरूकता अभियान चला रहे हैं जिससे किसान इसकी खेती कर सकें और लोग अपने आहार में इन मोटे अनाजों को शामिल कर सकें।
मोटा अनाज दुनिया के सबसे पुराने उत्पादित अनाजों में से हैं। हजारों साल पहले पूरे अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में मिलेट्स उगाए जाते थे। इनका उपयोग अनेक तरह के खाद्य और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता था। उत्तराखंड में भी मिलेट्स यानी मोटा अनाज की समृद्ध परंपरा रही है। मोटे अनाजों को लेकर जिस तरीके से जागरूकता बढ़ गई है। इसी अनुरूप डिमांड भी बढ़ रही है। अब घरों में ही नहीं, बल्कि रेस्टोरेंट्स में भी मोटे अनाज से बने भोजन आर्डर किया जाने लगा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसका रकबा लगातार कम होता जा रहा है। इसका कारण खेती के प्रति किसानों का मुंह मोडना है। वह गेहूं, चावल, चना, मटर, मसूर, सोयाबीन में ही लाभ की संभावनाएं देखते हुए अधिक उत्पादन कर रहे हैं। नई पीढ़ी का भी रुझान खेती को लेकर नहीं दिखता। हमने बदलते समय के साथ ही पारंपरिक उपज और खानपान की घोर उपेक्षा की है। यही कारण है कि वर्ष 2001- 2002 में जहां हम एक लाख 31 हजार हेक्टेयर पर्वतीय भूमि में मंडुवे का उत्पादन करते थे। जो 2021-22 में सिमटकर 90 हजार हेक्टेयर रह गया है। इसी प्रकार झिंगुरे का उत्पादन क्षेत्रफल 67 हजार हेक्टेयर से घटकर 40 हजार हेक्टेयर हो गया है। इन दोनों ही अनाजों के उपज के क्षेत्रफल में राज्य गठन के बाद से करीब 35 प्रतिशत कमी हुई है।मोटे अनाज में पौष्टिकता होने के साथ ही अनेक प्रकार के खाद्य-औषधीय गुण भी हैं। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। मोटे अनाज में कैल्शियम आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जस्ता, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और विटामिन बी-3 पाया जाता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कूनो में मोटे-अनाज का जिक्र करके लोगों का ध्यान एकाएक इस ओर खींचा था।
संयुक्त निदेशक कुमाऊं मंडल प्रदीप सिंह ने बताया कि मोटे अनाज की डिमांड बढ़ी है, इसलिए रकबा बढ़ाने को लेकर किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए सेमीनार और कार्यशालाएं भी आयोजित की जा रही हैं। पिछले तीन वर्षों में पारंपरिक कृषि विकास योजना से हमने कम क्षेत्रफल में मोटे अनाजों का अधिक उत्पादन किया है।
देहरादून में पद्मश्री से सम्मानित डॉ. बी.के.एस. संजय बताते हैं कि हड्डियों को मजबूत करने के लिए मोटा अनाज एक अच्छा, सस्ता और सुलभ उपाय है। हड्डियों को मजबूत करने के लिए संतुलित भोजन एवं नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन 2012 से लगातार बोन एवं ज्वाइंट सप्ताह मना रहा है।
डॉ. बी.के.एस. संजय ने कहा कि मोटे अनाजों का खाने में प्रचलन बढ़ना चाहिए क्योकि मोटे अनाज ऊर्जा के अच्छे स्रोत तो हैं ही और इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्त्व हमारी हड्डियों के स्वास्थ के लिए बहुत लाभदायक होते हैं। इनसे न केवल शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति होती है बल्कि इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्त्वों से हड्डियां भी मजबूत होती हैं। डॉ. संजय ने बताया कि पहले लोगों का मानना था कि मोटा अनाज केवल गरीबों का खाद्यान्न है लेकिन आज मोटा अनाज ना केवल गरीबों का खाद्यान्न बल्कि यह अमीरों के भोजन का भी हिस्सा बन रहा है। हड्डियों को मजबूत करने के लिए मोटा अनाज एक अच्छा, सस्ता एवं सुलभ उपाय है। मोटे अनाज को खाने और नियमित व्यायाम की आदत हमे बड़े या बूढ़े होने पर ही नहीं बल्कि बचपन से ही डालनी चाहिए। हड्डियों को मजबूत करने के लिए प्रोटीन के अतिरिक्त विटामिन और मिनरल्स की आवश्यकता होती है। मुख्यमंत्री धामी इसीलिए मोटे अनाज उगाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)