सम-सामयिक

शिक्षा मंत्रालय का सराहनीय निर्णय

 

हम सभी के जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व होता है। मनुष्य गरीब, अमीर कोई भी हो, शिक्षा हर किसी को प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध मनुष्य की उन्नति व उसकी क्षमताओं का ज्ञान कराने से होता है जबकि मौजूदा हालात में शिक्षा को सिर्फ रोजगार पाने का मतलब समझा जा रहा है। ‘अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे तो अच्छा रोजगार कर सकोगे’ यह सोच विकसित हो गयी है।

शिक्षा को व्यावहारिक बनाना नरेन्द्र मोदी सरकार का लक्ष्य दिखता है। इसी के चलते नयी शिक्षा नीति बनायी गयी। नयी शिक्षा नीति को कार्यान्वित करने के लिए शिक्षा प्रणाली मंे भी परिवर्तन करना जरूरी होगा। इसी के चलते केन्द्रीय स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता सचिव संजय कुमार ने शिक्षा का नया ढांचा प्रस्तुत किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार पांचवीं तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा मंे भी पढ़ाया जाएगा। इसलिए एनसीआईआरटी हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही 22 भारतीय भाषाओं में किताबों को प्रकाशित करेगी। इतना ही नहीं, नयी शिक्षा नीति में रोजगार की क्षमता अर्जित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है, इसलिए कर्मचारी चयन आयोग 22 भारतीय भाषाओं की प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित कराएगा। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री जितेन्द्र सिंह ने इस प्रकार की जानकारी पहले ही दी थी। भारतीय भाषा उत्सव के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा था कि 2014 से पहले तो अंग्रेजी का हिन्दी मंे अनुवाद भी बहुत खराब तरीके से किया जाता था। इससे कई छात्रों को नुकसान भी होता था। ध्यान रहे कि केन्द्र सरकार ने अगस्त 2023 मंे कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) द्वारा आयोजित की जाने वाली भर्ती परीक्षाओं को 15 भाषाओं में कराने का निर्णय लिया था। अब 22 भारतीय भाषाओं में इसी प्रकार की परीक्षा आयोजित कराने का प्रयास हो रहा है।

शिक्षा मंत्रालय ने एक बड़ा फैसला लिया है। सीबीएसई में अब तक हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में ही पढ़ाई होती थी लेकिन अब 22 भारतीय भाषाओं में पढ़ाई की जा सकती है। स्कूल शिक्षा और साक्षरता सचिव संजय कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मुताबिक पांचवीं तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाया जाना चाहिए और इस बार नए पाठ्यक्रम के मुताबिक ये फैसला लिया गया है कि एनसीईआरटी हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही 22 भारतीय भाषाओं में किताबों को छापे। स्कूल शिक्षा और साक्षरता सचिव ने कहा कि हमने एनसीआईआरटी से कहा है कि पूरा सिलेबस 22 भाषाओं में छापे। ये भाषाएं भारत के संविधान अनुच्छेद 8 में हैं। सीबीएसई ने भी अपने सभी 28 हजार स्कूलों को एडवाइजरी दे दी है। संजय कुमार ने कहा कि बच्चे बोर्ड की परीक्षा भी इन भाषाओं में दे सकते हैं। ये कदम समानता को बढ़ावा देगा। राज्य भी अपने बोर्ड में इन भाषाओं में पढ़ा सकते हैं। ये किताबें एनसीआईआरटी जल्द ही डिजिटली उपलब्ध करा देगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत ये बहुत ही दूरगामी फैसला लिया गया है। क्योंकि मैं समझता हूं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के भविष्य का डीएनए है।

इसी तरह कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) का लक्ष्य भविष्य में 22 भारतीय भाषाओं में प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करना है। कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारतीय भाषा उत्सव प्रौद्योगिकी एवं भारतीय भाषा शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि उनका इरादा सभी इच्छुक उम्मीदवारों को भाषाई बाध्यताओं से परे समान अवसर प्रदान करना है। सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आदेश पर इस वर्ष से, एसएससी परीक्षाएं 13 भाषाओं- 11 क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी एवं अंग्रेजी- में आयोजित की जा रही हैं। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि केंद्र ने सरकारी नौकरियों के लिए कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी )द्वारा आयोजित की जाने वाली भर्ती परीक्षा 15 भाषाओं में कराने का निर्णय लिया है ताकि देश का कोई भी युवा नौकरी के अवसर से न चूके। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की 14वीं हिंदी सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक निर्णय स्थानीय युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देगा और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित करेगा।

शिक्षा और रोजगार का सम्बन्ध गहरा होता है। आज के समय में शिक्षा नौकरी में सफलता पाने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करती है। सेन्टर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकॉनमी की जनवरी 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में दिसम्बर 2021 तक बेरोजगारों की संख्या 5.3 करोड़ थी, जिसमें 3.5 करोड़ लगातार काम खेज रहे थे। भारत में रोजगार मिलने की दर कम है। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। जून, 2023 में यह 8.45 फीसदी के पार हो गयी जबकि मई, 2023 में यह 7.68 फीसदी पर था। रोजगार सभी की जरूरत है। अधिकांश शिक्षित होकर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। इनमें कुछ तो नौकरी को प्राप्त कर लेते हैं परंतु अधिकांश इससे वंचित ही रह जाते हैं। जीवन में भोजन, कपड़ा व मकान सभी की जरूरत है। गुजारा रोजगार के बिना मुमकिन नहीं है। रोजगार से सिर्फ धन ही नहीं कमाया जाता है बल्कि प्रगति करने के मौके भी मिलते हैं। रोजगार हमे ज्ञान के साथ-साथ अपने क्षेत्र में कामयाब कैसे हो सकते हैं? यह भी सिखाता है। वर्तमान समय में शिक्षा के बाद उसी क्षेत्र में नौकरी करने वालों की संख्या ना के बराबर होती है। अक्सर मनुष्य को अपने क्षेत्र से अलग क्षेत्रों में कार्य करना पड़ता है। वर्तमान समय में शिक्षा को रोजगार से जोड़ा जाता है। जो व्यक्ति जितना अधिक शिक्षित या अनुभवी होता है नौकरी में उसका महत्व उतना ही अधिक होता है लेकिन शहरों की अपेक्षा देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर आज भी बहुत खराब है। गांवों में न तो ढंग का स्कूल है और न ही उसमें बुनियादी सुविधाएं। यदि कुछ स्कूलों में होती भी है तो शिक्षक नियमित रूप से नहीं आते हैं। यदि सब कुछ सही होता है तो जागरूकता और शिक्षा के महत्व से अनजान अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं जबकि कुछ अभिभावक इन समस्याओं के कारण अपने बच्चों को शहरों के स्कूलों में पढ़ाने के लिए मजबूर हो जाते हैं, लेकिन जो अभिभावक आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, उनके बच्चों को उन्हीं स्कूलों में पढ़ने की मजबूरी होती
है। इसका सबसे अधिक नुकसान किशोरियों को होता है जो पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन शिक्षा की जर्जर व्यवस्था की उनके सपनों को तोड़ देता है। वर्तमान समय में शिक्षा सबकी जरूरत है। (हिफी)

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

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