लेखक की कलम

महाकुंभ में आस्था व आधुनिकता का संगम

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत तो लगभग एक महीने बाद (13 जनवरी, 25) से होगी लेकिन मार्गशीर्ष की पूर्णिमा 15 दिसम्बर को श्रद्धालुओं का रेला पहुंचा था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस महाकुंभ को आस्था और आधुनिकता का संगम बता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेला क्षेत्र मंे ही करोड़ों के विकास कार्य की आधारशिला रखी है और उद्घाटन भी किया है। पहली बार संगम मंे पक्के घाटों पर श्रद्धालु स्नान-दान कर सकेंगे। यहां के प्रमुख घाटों तक पहुंचने की सुगम व्यवस्था की गयी है। प्रयागराज में महाकुंभ की कहानी मंे समुद्र मंथन का उल्लेख किया जाता है। समुद्र मंथन जिन वासुकि नाग को रस्सी बनाकर किया गया था, उनका मंदिर भी यहां बना हुआ है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने प्रयागराज में गंगा नदी पर रिवर फ्रंट बनाया है। यह भी प्रयास किया जा रहा है कि महाकुंभ के अवसर पर संगम का जल अविरल एवं निर्मल रहे। मेला क्षेत्र में आधुनिकता का दर्शन हो रहा है। भरद्वाज आश्रम कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। इसी प्रकार विलुप्त हो गयी सरस्वती नदी का कूप भी भव्य रूप ले चुका है।
धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर हैं। इस मेले में देश-विदेश से लोग स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। मेले के दौरान सभी स्नान घाटों का नजारा देखते ही बनता है। इस अद्वितीय धार्मिक उत्सव के दौरान प्रयागराज के संगम समेत प्रमुख घाटों पर स्नान करना सुखद अनुभव हो सकता है। इन्हीं में से एक है किला घाट। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर को प्रयागराज के महाकुंभ का दौरा किया था। वे किला घाट पहुंचे थे, फिर अक्षयवट और भरत कूप मंदिरों का दौरा किया था। किला घाट प्रयागराज के प्रमुख स्नान घाटों में से एक है। यह घाट अकबर किले के पास स्थित है। किला घाट की सबसे अच्छी बात यह है कि यह प्रयागराज के अन्य घाटों की तरह भीड़भाड़ वाला नहीं है। अगर आप शांतिपूर्ण जगह पर कुछ सुकून के पल बिताना चाहते हैं, तो इस घाट पर जरूर जाएं। किला घाट बहुत ही शांत और सुंदर है। इसके अलावा, प्रयागराज की बहती नदियों और खूबसूरत नजारों का आनंद भी ले सकते हैं। प्रयागराज में किला घाट पहुंचने का सबसे सुगम तरीका रेलमार्ग है। सबसे पहले आपको प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा। हालांकि, आप शहर के किसी भी हिस्से से टैक्सी लेकर प्रयागराज में किला घाट पहुंच सकते हैं। अगर आप चाहें, तो ऑटो-रिक्शा या साइकिल-रिक्शा भी ले सकते हैं।
इसी प्रकार अक्षयवट मंदिर भारत के प्रयागराज में स्थित एक प्राचीन और प्रमुख हिंदू मंदिर है। इसका नाम इसके परिसर में स्थित अमर अक्षय वट वृक्ष से लिया गया है, जिसे भक्त भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजते हैं। पुराणों के अनुसार प्रलय के समय जब समूची पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है, वही अक्षयवट है। इसे सनातनी परंपरा का संवाहक भी कहा जाता है। इसके एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में रहकर सृष्टि को देखते हैं।
प्रयागराज का सबसे प्रमुख घाट संगम घाट है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियां बहने से इसको त्रिवेणी घाट के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि संगम घाट पर डुबकी लगाने से तीनों नदियों का आशीर्वाद मिलता है। महाकुंभ मेले के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है। यहां पहुंचने की बात करें तो प्रयागराज रेलवे स्टेशन से संगम घाट की दूरी लगभग 7 से 8 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के लिए आप टैक्सी या शेयरिंग ऑटो ले सकते हैं। संगम घाट पर नाव की सवारी का भी आनंद लिया जा सकता है।
प्रयागराज के संगम घाट के पास स्थित राम घाट भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस घाट पर बोटिंग की सबसे शानदार सुविधा है। इस घाट पर पहुंचने की बात करें तो राम घाट से संगम घाट की दूरी मात्र 3 मिनट की है। वहीं, प्रयागराज जंक्शन से 6-7 किलोमीटर है। यहां जानें के लिए टैक्सी और शेयरिंग ऑटो उपलब्ध हैं। शाम के समय यहां होने वाली आरती का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है।
यमुना नदी के किनारे स्थित अरैल घाट प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, महाकुंभ के दौरान यहां भीड़ के कारण शांति का अनुभव करना थोड़ा कठिन हो सकता है। बता दें कि, अरैल घाट से संगम घाट सड़क मार्ग द्वारा लगभग 30 मिनट की दूरी पर है। महाकुंभ के दौरान गाड़ियों का आवागमन सीमित हो सकता है, इसलिए पैदल चलकर यहां पहुंचना बेहतर विकल्प हो सकता है।
महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है, जोकि 13 जनवरी 2025 को है। वहीं, महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2025 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा। इस तरह से महाकुंभ 45 दिन तक चलता है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। संगम नगरी प्रयागराज में लगने वाले इस मेले में देश-विदेश से लोग स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। इस अद्वितीय धार्मिक उत्सव के दौरान प्रयागराज के प्रमुख घाटों के अलावा यहां स्थित कुछ मंदिरों के दर्शन करना एक यादगार अनुभव हो सकता है। इन्हीं में से एक है नागवासुकी मंदिर। इस मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन किए बिना संगम से लौटना अधूरी यात्रा के बराबर है। इसलिए यदि आप महाकुंभ जाएं तो नागवासुकी मंदिर के दर्शन कर खुद को कृतार्थ करें। संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान रहते हैं।
कहा जाता है कि, जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था। जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक दूध की धार निकली और चेहरे के ऊपर पड़ने से वो बेहोश हो गया था। अंत में उसे हताश और निराश होकर वापस लौटना पड़ा। तब से लेकर आज तक इस प्राचीन मंदिर की महिमा का गुणगान चारों दिशाओं में हो रहा है। (हिफी)

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