विकसित भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

एक तरफ विपक्षी गठबंधन इंडिया के सनातन विरोधी कई नेता बेलगाम हैं। वह राजनीतिक स्वार्थ में समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं, दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर एक भारत श्रेष्ठ भारत का अभियान चला रहे हैं। नरेंद्र मोदी की काशी यात्रा में विकास और सनातन का विचार समाहित है। वह भारत विकास संकल्प यात्रा में सहभागी हुए। मोदी ने केन्द्रीय योजनाओं के लाभार्थियों से संवाद भी किया। उन्हेांने कहा कि गरीबों का जीवन स्तर उठाने के लिए इतनी योजनाओं का क्रियान्वयन पहले कभी नहीं हुआ था। जिन्होंने कभी अपने घर का सपना नहीं देखा था, ऐसे चार करोड़ से अधिक परिवारों को अपना घर मिल चुका है। यह कार्य निरन्तर जारी है। पचपन करोड़ लोगों को आयुष्मान योजना का लाभ मिल रहा है। करीब इतने ही लोगों के जन-धन खाते खुले। विभिन्न योजनाओं का शतप्रतिशत लाभ मिलना सुनिश्चित हुआ। बिचैलियों को बाहर किया गया। अस्सी करोड़ लोगों को निशुल्क राशन मिल रहा है।
इसके साथ ही साँस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार मजबूत हो रहा है। नरेंद्र मोदी ने नमोघाट पर काशी और तमिलनाडु के रिश्ते को प्रगाढ़ करने वाले काशी तमिल संगमम के दूसरे संस्करण का उद्घाटन रिमोट से किया। साथ ही काशी तमिल एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाकर रवाना भी किया। कार्यक्रम में दक्षिण भारत के पंडितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु से आए छात्रों के दल का ‘वणक्कम काशी’ कह स्वागत किया। प्राचीन शिक्षा केंद्रों काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने संबंधों को पुष्ट किया जा रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि काशी में उत्तर से लेकर दक्षिण तक विस्तृत भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता परिलक्षित हो रही है। तमिलनाडु के बारह प्रमुख मठों के महंत उपस्थित हैं। काशी के हनुमान घाट को छोटा तमिलनाडु कहा जाता है। यहां अधिसंख्य लोग तमिलनाडु से आए हुए लोग ही बसे हुए है। यहां के मठ और मंदिर भी तमिलनाडु की तरह बने हुए हैं। तमिलनाडु से काशी आने का मतलब है भगवान महादेव के एक घर से दूसरे घर आना। काशी और मदुरै का उदाहरण हमारे सामने हैं। दोनों ही महान मंदिरों के शहर हैं। दोनों महान तीर्थ स्थल हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि जहां मदुरै वगई के तट पर स्थित है और काशी गंगा तट पर स्थित है। तमिल साहित्य में वगई और गंगई दोनों के बारे में लिखा गया है। जब हम इस विरासत को जानते हैं हमें इस रिश्तों के गहराई का भी एहसास होता है। काशी विश्वनाथ धाम आने वाले तमिल तीर्थयात्रियों में भारी वृद्धि हुई है। भारत में संस्कृत और तमिल साहित्य सबसे प्राचीन है। यह समावेशी साहित्य समाज में एकता और समानता पैदा करता है। काशी तमिल संगमम हमारे देश के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत करेगा। तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्य भारती काशी के विद्यार्थी रहे। उन्होंने लिखा था कि काशी में जो मंत्रोच्चार होते हैं, उन्हें तमिलनाडु के कांची शहर में सुनने की व्यवस्था हो जाए तो कितना अच्छा होता। आज महाकवि सुब्रमण्य भारती की वो इच्छा पूरी हो रही है। एक भारत, श्रेष्ठ भारत के अनुरूप नए संसद भवन में पवित्र सेंगोल की स्थापना की गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पंच प्रण के के बारे मंे बताया था। मोदी के पंच प्रण के अंतर्गत विकसित भारत के रूप में आगे बढ़ाने का संकल्प विशेष रूप से है। काशी-तमिल संगमम’ पंच प्रण विचार के अनुरूप है। भारतीय संस्कृति का दायरा व्यापक है। इसमें विविधता है। इसके साथ ही एकता के शास्वत सूत्र भी हैं। एकता एकात्मता का यह सिद्धांत भारतीय संस्कृति का प्राण है। एकात्मकता के इस सिद्धांत को आधुनिक वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल के रूप में स्वीकार किया है, जबकि भारतीय मनीषियों ने युगों पहले इसको प्रमाणित किया था। उनके अनुसन्धान अचंभित करते हैं। यह बताया गया कि जड़ और चेतन दोनों में परमात्मा है और जिसकी सत्ता होती है वह सत्य है।
भारतीय ऋषि ज्ञान के उपासक थे। यहां ज्ञान के केंद्रों की सुदीर्घ श्रंखला थी। ज्ञान अर्जित करते रहे और उसे दूसरों तक पहुंचाते रहे हैं। जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया, ब्रह्म को प्राप्त कर लिया। इसके साथ ही भक्ति का मार्ग भी था। प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति और रूचि के अनुरूप किसी भी मार्ग का अनुशरण कर सकता है। यह स्वतंत्रता केवल भारतीय संस्कृति में ही सम्भव रही है। इसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। भारत आध्यात्मिक शक्ति के साथ ही अर्थशास्त्र खगोल शास्त्र विज्ञान सामाजिक व्यवस्था के विषयों में भी यूरोप और अन्य सभ्यताओं से अधिक आगे रहा था। राष्ट्र की संस्कृति का आधार कर्तव्यबोध पर आधारित है। श्रीराम ने वनवास के दिन ही संसार को निशिचरहीन करने का संकल्प लिया था। यह कर्तव्यबोध है। भारत तीर्थों, त्योहारों और मेलों का देश है। तीर्थ,त्योहार और मेले ही एकता और एकात्मता का मार्ग है। भारतीय मानवता और जीवन मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। मेलों और त्योहारों से करोड़ों लोगों को रोजगार, रोटी मिलती है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
भोग में सम्मान हो सकता है, पूजा नहीं हो सकती। त्याग में पूजा होती है। इसी बल पर भारत विश्वगुरु बना। हम भोगवाद की दुनिया नहीं है। भारत के पर्व और त्योहार समूचे समाज और देश को एकजुट बनाये हुए हैं। काशी में पुरातन आध्यात्मिक संस्कृति के मिलन के क्षण ऐतिहासिक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि काशी हो या तमिलनाडु, हमारी संस्कृति, आध्यात्मिकता और दर्शन की विरासत एक ही है। काशी-तमिल संगमम इस एकीकृत राज्य की पवित्र और समृद्ध भावना को व्यक्त करने का एक विशिष्ट अवसर है। काशी-तमिल संगमम का उद्देश्य देश के दो सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन शिक्षा केंद्रों काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने संबंधों को फिर से उजागर और पुष्ट करना है। काशी में उत्तर से लेकर दक्षिण तक विस्तृत भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता परिलक्षित हुई। काशी के हनुमान घाट को छोटा तमिलनाडु कहा जाता है। यहां अधिसंख्य तमिलनाडु से आए हुए लोग ही बसे हुए है। यहां के मठ और मंदिर भी तमिलनाडु की तरह बने हुए हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य दोनों क्षेत्रों के विद्वानों, छात्रों, दार्शनिकों, व्यापारियों, कारीगरों, कलाकारों और जीवन के अन्य क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाने, अपने ज्ञान, संस्कृति और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और एक दूसरे के अनुभव से सीखने का अवसर प्रदान कराना है। यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ज्ञान की आधुनिक प्रणालियों के साथ भारतीय ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करने पर जोर देने के अनुरूप है। (हिफी)
(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)