लेखक की कलम

चरमपंथ पर अंकुश

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश की सीमाओं के बाहर तो चौकसी रखना जरूरी है ही देश के अंदर भी नजर रखनी पडती है। चरमपंथियों और अराजक तत्वों पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो वे देश के अंदर अशान्ति का कारण बनेंगे ही, विदेश में बैठे हमारे देश के दुश्मन भी उनको अपने नापाक इरादों का माध्यम बना सकते हैं। हम जम्मू-कश्मीर और पंजाब में इस तरह का संकट झेल रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों ने जोर पकड लिया है। मणिपुर, असम और मिजोरम में पिछले महीने में संघर्ष में जन-धन की बडी हानि भी हो चुकी है। इसलिए केंद्र सरकार ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और सुरक्षाबलों पर घातक हमले करने को लेकर 13 नवम्बर को नौ मेइती चरमपंथी समूहों तथा उनके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया, जो ज्यादातर मणिपुर में सक्रिय हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह फैसला सराहनीय है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन समूहों को पांच साल के लिए प्रतिबंधित किया गया है, उनमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, जिसे आम तौर पर पीएलए के नाम से जाना जाता है और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवॉल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) शामिल हैं। इनमें पीपुल्स रिवॉल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (पीआरईपीएके) और इसकी सशस्त्र शाखा रेड आर्मी, कांगलेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) तथा इसकी सशस्त्र शाखा (जिसे रेड आर्मी भी कहा जाता है), कांगलेई याओल कनबा लुप (केवाईकेएल), कोआर्डिनेशन कमेटी (कोरकॉम) और एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांगलेईपाक (एएसयूके) भी शामिल हैं।
पीएलए, यूएनएलफ, पीआरईपीएके, केसीपी, केवाई केएल को कई साल पहले गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित घोषित किया गया था और नवीनतम कार्रवाई में प्रतिबंध को पांच साल तक बढ़ा दिया गया है। अन्य संगठनों को गैरकानूनी घोषित किये जाने की घोषणा ताजा है। अपनी अधिसूचना में, गृह मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार की राय है कि यदि मेइती चरमपंथी संगठनों पर तत्काल अंकुश और नियंत्रण नहीं किया गया, तो उन्हें अपनी अलगाववादी, विध्वंसक, आतंकवादी और हिंसक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए अपने कैडर को संगठित करने का अवसर मिलेगा। इसमें कहा गया कि वे भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक ताकतों के साथ मिलकर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का प्रचार करेंगे, लोगों की हत्याओं में शामिल होंगे और पुलिस तथा सुरक्षाबलों के जवानों को निशाना बनाएंगे। अधिसूचना के अनुसार, अंकुश न लगाए जाने की स्थिति में ये समूह और संगठन अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से अवैध हथियार और गोला-बारूद हासिल करेंगे तथा अपनी गैरकानूनी गतिविधियों के लिए जनता से भारी धन की वसूली करेंगे। इसमें कहा गया, ‘परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार की राय है कि मेइती चरमपंथी संगठनों को३ ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित करना आवश्यक है और तदनुसार, केंद्र सरकार निर्देश देती है कि यह अधिसूचना 13 नवंबर, 2023 से पांच साल की अवधि के लिए प्रभावी होगी।’’
ध्यान रहे कि मणिपुर में इस साल मई में जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से हिंसा की घटनाएं देखी जा रही हैं और तब से अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। मेइती और कुकी समुदायों के बीच कई मुद्दों को लेकर झड़पें होती रही हैं। मई में शुरू हुई हिंसा का संबंध मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग से जुड़ा है। मणिपुर की आबादी में मेइती लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि नगा और कुकी आदिवासियों की संख्या 40 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से पर्वतीय जिलों में निवास करते हैं। मेइती और कुकी आदिवासियों के बीच संघर्ष के चलते ही पडोसी राज्य मिजोरम केन्द्र की भाजपा सरकार से नाराज है। मिजोरम में इसी महीने में 7 नवम्बर को विधान सभा के लिए चुनाव हो चुके हैं। इसीलिए मोदी सरकार के इस कदम को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। सरकार का दायित्व है कि अराजकता पर कडाई से अंकुश लगाए। यही कार्य नरेन्द्र मोदी की सरकार कर रही है। सरकार ने प्रतिबंध लगाते हुए कहा है कि ऐसे संगठन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक ताकतों के साथ मिलकर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का प्रचार करेंगे, लोगों की हत्याओं में शामिल होंगे और पुलिस तथा सुरक्षाबलों के जवानों को निशाना बनाएंगे। अधिसूचना के अनुसार, अंकुश न लगाए जाने की स्थिति में ये समूह और संगठन अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से अवैध हथियार और गोला-बारूद हासिल करेंगे तथा अपनी गैरकानूनी गतिविधियों के लिए जनता से भारी धन की वसूली करेंगे।इसमें कहा गया, ‘परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार की राय है कि मेइती चरमपंथी संगठनों को ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित करना आवश्यक है और तदनुसार, केंद्र सरकार निर्देश देती है कि यह अधिसूचना 13 नवंबर, 2023 से पांच साल की अवधि के लिए प्रभावी होगी।’’ मणिपुर में इस साल मई में जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से हिंसा की घटनाएं देखी जा रही हैं और तब से अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। मेइती और कुकी समुदायों के बीच कई मुद्दों को लेकर झड़पें होती रही हैं। मई में शुरू हुई हिंसा का संबंध मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग से जुड़ा है। करीब तीन महीने पहले कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शुरू हुए दंगों के बाद रह-रह कर हो रही हिंसा के डर, और दिमाग में चल रहे कोलाहल से एकदम विपरीत, इंफाल में एक चुप्पी है।
मणिपुर में जातीय संघर्ष होने पर मोबाइल इंटरनेट बंद हो जाता है। कोई न्यूज एलर्ट नहीं आता जो ये बता दे कि कब किस कोने में किस समुदाय ने कोई घर जला दिया, पुलिस की गाड़ी पर हमला कर दिया और कहाँ कर्फ्यू लग गया। घाटी में रहने वाले मैतेई और हिंसा के बाद पूरी तरह पहाड़ों पर चले गए कुकी समुदायों के बीच विभाजन की गहरी रेखा खिंच गई है। घाटी और पहाड़ के बीच की खाई ही इस वघ्क्त मणिपुर की जमीनी हकीकत है। जातीय हिंसा से पहले इंफाल घाटी मैतेई बहुल इलाका था। राजधानी में ज्यादातर बड़े स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय, सरकारी नौकरियां और रोजगार के मौके होने की वजह से यहां कुकी समुदाय के लोग भी रहने लगे थे। हिंसा के बाद वो सब घाटी छोड़कर पहाड़ी इलाकों में चले गए हैं. पहाड़ी इलाकों के कुछ गांवों में रहने वाले मैतेई भी वहां से भागकर इंफाल के राहत शिविरों में रहने लगे। मणिपुर के बीचोबीच बसी इंफाल घाटी के चारों ओर एक सरहद खिंच गई है। मैतेई पहाड़ों में नहीं जा सकते और कुकी घाटी में नहीं आ सकते। (हिफी)

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