बजट से दीपेन्द्र हुड्डा को शिकवा

हरियाणा उन राज्यों में शामिल है जहां इसीसाल विधानसभा के चुनाव होने हैं। केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीता रमण ने 23 जुलाई को जब बजट पेश किया, तब अपेक्षा की जा रही थी कि हरियाणा को भी विशेष सौगात मिलेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस नेता दीपेन्द्र हुड्डा ने तो शिकायतों की झड़ी लगा दी है। बजट में हरियाणा की उपेक्षा चुनावी मुद्दा बन सकता है। दरअसल, बिहार और आंध्र प्रदेश ने इस बजट की दिशा ही बदल दी है। बिहार को 58 हजार करोड़ का विशेष पैकेज मिल गया। हरियाणा को इस बजट में एक तरह से नजरंदाज किया गया है। पांच किलो मुफ्त राशन योजना को जारी रखना ही हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के लिए सौगात बतायी जा रही है। वित्तमंत्री ने बजट भाषण में हरियाणा का जिक्रतक नहीं किया।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट पर कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीजेपी पर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा कि बजट में हरियाणा का नाम तक नहीं लिया गया। जनता आगामी चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाएगी।
दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, यह केंद्रीय बजट पूरी तरह निराशाजनक है। सरकार केंद्रीय बजट में हरियाणा का नाम लेना भी भूल गई लेकिन 2 महीने बाद विधानसभा चुनाव में हरियाणा की जनता बीजेपी को वोट देना भी भूल जाएगी। हुड्डा ने कहा, देश में ज्वलंत मुद्दे बढ़ती हुई महंगाई और रिकॉर्ड स्तर पर जो बेरोजगारी है, इसके लिए बजट में कोई आवंटन नहीं किया गया। किसान, गरीब को राहत की जरूरत थी, उन्हें कुछ नहीं दिया गया। रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, क्षेत्रीय संतुलन के नाम पर ये बजट एक मजाक है। सारा बजट आवंटन आंध्र प्रदेश और बिहार पर किया गया। अल्पमत की सरकार है। गठबंधन की वजह से हो सकता है कि ये उनकी मजबूरियां रही हों। हरियाणा का तो इस बजट में नाम नहीं लिया गया। बता दें कि हरियाणा में इस साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
दीपेन्द्र हुड्डा का हालांकि यह कहना उचित है कि बजट में किसानों की उपेक्षा हुई है। साल 2019-20 के बजट में बजट का 5.44 फीसदी कृषि पर खर्च हुआ, 2020-21 में बजट का 5.08 फीसदी कृषि पर खर्च किया गया, 2021-22 के बजट में 4.26 फीसदी कृषि पर खर्च किया गया, 2022-23 में बजट का 3.84 फीसदी कृषि पर खर्च हुआ. 2023-24 में बजट का 3.20 फीसदी किसानों पर खर्च किया गया और 2024-25 में बजट का 3.15 फीसदी किसानों पर खर्च किया गया।
यह सच है कि बिहार और आंध्र प्रदेश ने केंद्र सरकार का बजट गड़बड़ा दिया। बजट के बड़े हिस्से पर इन दोनों राज्यों का कब्जा हो गया है। बिहार को कुल 58 हजार करोड़ तो आंध्र प्रदेश को 15 हजार करोड़ का विशेष पैकेज का एलान करना पड़ा है। बजट पर गठबंधन सरकार का असर साफ दिख रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू बाजी मारते दिख रहे हैं। एनडीए सरकार ने फिलहाल दोनों राज्यों को स्पेशल स्टेटस तो नहीं दिया लेकिन उसके बदले सरकार को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इसके एवज में उन राज्यों को नजरअंदाज करना पड़ा है, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जोकि बीजेपी या एनडीए के लिए भी काफी अहम हैं। बजट और चुनाव में अलग रिश्ता है। अगर आम चुनाव हो तो अलग बजट और विधानसभा का चुनाव हो तो उन राज्यों पर फोकस- आमतौर पर यही रिवाज रहा है। लेकिन इस बार के बजट में तीन राज्यों के चुनाव से ज्यादा गठबंधन का दवाब है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड तीनों ही राज्यों में साल में अंत तक विधानसभा का चुनाव होने वाला है। एनडीए हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता बनाए रखने तो झारखंड में हेमंत सोरेन को सत्ता से बाहर करने की रणनीति में जुटी है। बीजेपी ने यहां चुनावी मुनादी कर दी लेकिन बजट ने बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया। विपक्ष इन राज्यों की उपेक्षा का आरोप लगाकर हमलावर है। चुनावों तक ये विरोध और भी तेज होने की संभावना जताई जा सकती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायाब सैनी खुद परेशान होंगे लेकिन वह आलोचना भी नहीं कर सकते।
महाराष्ट्र और झारखंड की तरह इस बजट से वैसे तो कई और राज्यों को मायूसी मिली है मसलन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात फोकस से बाहर हैं लेकिन चुनावी राज्यों में हरियाणा को इस बजट में कोई तवज्जो नहीं मिली। हरियाणा में भी इस साल अंत तक विधानसभा का चुनाव होने वाला है। जाहिर है इन राज्यों के लिए बजट में कोई विशेष फंड या स्कीम नहीं होने से विपक्ष को हमले करने का बड़ा मौका मिल सकता है, जबकि मोदी सरकार के तमाम पिछले बजट को देखें तो उनमें चुनावी राज्यों पर खूब फोकस किया गया है। चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव। कोई भी बजट इससे अछूता नहीं रहा। यानी बिहार और आंध्र प्रदेश के विशेष पैकेज ने कुल मिलाकर चुनावी राज्यों का समीकरण ही नहीं बल्कि बजट भी गड़बड़ा दिया।
बजट 2024 की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण के तहत मिल रहे 5 किलो मुफ्त अनाज की डेडलाइन बढ़ाने की घोषणा की है. सीतारमण ने कहा है कि अब यह मुफ्त अनाज अगले 5 साल तक दिया जाएगा। मुफ्त अनाज को लेकर की गई इस घोषणा को हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। इन तीनों ही राज्यों में अब से 3 महीने बाद विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। तीन में से 2 राज्य (महाराष्ट्र और हरियाणा) में वर्तमान में बीजेपी गठबंधन की सरकार है, जबकि झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की। अगर संख्या के हिसाब से लाभार्थियों की संख्या देखी जाए तो यह सीधे तौर पर 1.59 करोड़ के आसपास है। भारत सरकार के मुताबिक महाराष्ट्र में 1 करोड़ 10 लाख लोग मुफ्त राशन का लाभ लेते हैं। झारखंड में यह संख्या 34 लाख के आसपास है। वहीं हरियाणा में राशन का लाभ लेने वाले लोगों की संख्या करीब 12 लाख है। मुफ्त राशन का फायदा बीजेपी को कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिला है। इनमें गुजरात और उत्तर प्रदेश का विधानसभा का चुनाव प्रमुख है। सीएसडीएस के मुताबिक गुजरात में मतदान कर निकले 10 में से 7 लोगों ने मुफ्त अनाज योजना का जिक्र किया। राज्य के इस चुनाव में बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की थी। हरियाणा में भी इस साल अंत तक विधानसभा का चुनाव होने वाला है. जाहिर है इन राज्यों के लिए बजट में कोई
विशेष फंड या स्कीम नहीं होने से विपक्ष को हमले करने का बड़ा मौका मिल सकता है जबकि मोदी सरकार के तमाम पिछले बजट को देखें तो उनमें चुनावी राज्यों पर खूब फोकस किया गया है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)